भारतीय इतिहास में दूसरा परशुराम कौन थे ?

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परशुराम
परशुराम

मगध में चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से मौर्य साम्राज्य की स्थापना की. इससे पहले वहां पर नंद वंश का शासन होता था. नंद वंश का एक महान् शासक हुआ है. जिसका वर्ण पुराणों में भी मिलता है. उस शासक का नाम महापदमनंद था. जिसे उग्रसेन के नाम से भी जाता है. अनेंक उपाधि धारण की थी. जिसमें एक उपाधि अपरोपरशुराम भी थी. जिसका अर्थ है- द्वितीय परशुराम. नंद वंश में इस शासक का विशेष महत्व रहा है. इसी को दूसरा परशुराम कहा जाता है.

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परशुराम

इस शासक की महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय इतिहास में महापद्मनंद के शासन काल में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसके साम्राज्य की सीमा गंगाघाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर रही थी. विन्ध्यपर्वत के दक्षिण में विजय पताका फहराने वाला वह प्रथम मगध शासक था.  

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नंद वंश

परशुराम नें त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के घर जन्म लिया. इसको विष्णु का छठा अवतार माना जाता है. वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे. महाभारत काल में उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी. परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है. ऐसा बताया जाता है कि उन्होने 20 से अधिक बार इस धरती से क्षत्रियों को खत्म कर दिया था. महाभारत काल में उन्होंने कर्ण को श्राप भी दिया था कि जब तुमको मेरी शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत होगी ये तेरे काम नहीं आएगी.

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परशुराम धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे. कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये. जिस मे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पिछे धकेल दिया जिससे वहां नई भूमि का निर्माण हुआ.