क्या होती है ‘पपराजी’ पत्रकारिता? कैसे होता है यह काम?

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जब कोई फोटोग्राफर किसी हस्ती की बिना इजाजत या चुपके से तस्वीर खींच लेता है और बाद में फोटो के संदर्भ में कोई आर्टिकल लिखा जाता है तो वह ‘पपराजी पत्रकारिता’ कहा जाता है और फोटो खींचने वाले ‘पपराजी’ कहे जाते हैं। यह ठीक उसी तरह होता है जैसे किसी का वीडियो बना कर अपलोड कर देने पर हम उसे स्कैंडल कहते हैं। लोग अक्सर खोजी पत्रकारिता और पपराजी पत्रकारिता में अंतर नहीं कर पाते हैं। लेकिन दोनों में कई समानताएं और असमानताएं होते हुए भी एक चीज महत्वपूर्ण हो जाती है वह है सूत्र अर्थात सोर्स। इन्ही सूत्रों के जरिये जब कोई खबर प्रकाशित होती है तो उसे सूत्रों के मुताबिक करके सम्बोधित किया जाता है।

‘पपराजी’ की उत्‍पत्ति महान इतालवी फिल्‍मकार फेरेरिको फेलिनी की 1960 में बनी फिल्‍म ‘ला डोल्‍से विटा’ नाम की फिल्‍म के एक पात्र ‘पपराजो’ से हुई। इस फिल्म में एक फ्रीलांस फोटोग्राफर था जो हॉलीवुड के सितारों की निजी जिन्‍दगी के फोटो खींचने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था।

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भारत में ऐसा देखा गया है कि प्रेस फोटोग्राफर ही पपराजी की भूमिका निभाते हैं। उनकी द्वारा ही खींची गयी फोटो ही गॉसिप बनती हैं। हालांकि पपराजी पत्रकारिता के हथकण्‍डे खोजी पत्रकारिता के लिए खूब अपनाए जाते रहे हैं। पपराजी पत्रकारिता को कभी भी सम्‍मान की दृष्टि से नहीं देखा गया।

पपराजी पत्रकारिता यूरोप में ज्यादा मशहूर हुई है। वहाँ मशहूर हस्तियों के निजी जीवन में ताक-झांक का चलन रहा है, इसलिए पपराजी लोगों का व्‍यवसाय भी खूब फलता-फूलता रहा। पपराजी फोटोग्राफर्स का काम कभी भी आसान नहीं होता है। कभी कभी कई-कई पपराजी साल भर एक ऐसे बिकाऊ फोटो के लिए भटकते रहते हैं। लेकिन इसके बाद अगर उनको एक भी फोटो कोई गुप्त क्लिक हो गयी तो वह इतनी महंगी बिकती है कि पपराजी मालामाल हो जाता है।

यूरोप में दो मशहूर पपराजी फोटोग्राफर्स हुए। उनका नाम था जैम्‍स टेलर और बेन ब्रेट। नाम के दो पपराजी 22 साल की उम्र में ही यूरोप के सबसे चर्चित फोटोग्राफर बन गए। ये दोनों रात भर नाइट क्‍लबों में आने वाली मशहूर हस्तियों, फिल्‍मी सितारों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। एक-एक शॉट के लिए इन्‍हें कई-कई रातें खराब करनी पड़ती हैं। इनका काम किसी जासूस से कम नहीं होता।

जैम्‍स टेलर और बेन ब्रेट पहले मामूली फोटोग्राफर थे। एक रात अचानक इन्‍हें अभिनेत्री विक्टोरिया बेखम के साथ अभिनेता डेविड दिखाई पड़े। इनका यह फोटो 30 हजार पाउण्‍ड का बिका। इसी तरह बेन ब्रेट जेम्‍स हेविट नामक हस्‍ती के पीछे पड़ गए। जेम्‍स हेविट भी कभी राजकुमारी डायना के प्रेमी रह चुके थे। सन् 2000 में हेविट किसी मामले में गिरफ्तार हुए, तब बेन ही अपने कैमरे के साथ वहां मौजूद थे। हेविट की तो जमानत हो गई लेकिन गिरफ्तारी का दुर्लभ फोटो होने के कारण यह फोटो बेन को एक लाख पाउण्‍ड दिला गया।

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जिस तरह से पत्रकारिता को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है उस तरह से पपराजी काम को कभी भी आदर की उस नजर से नहीं देखा जाता है। प्रोफेशनल फोटोग्राफर अपने नाम के आगे ‘पपराजी’ शब्‍द जुड़ा नहीं देखना चाहते हैं। पपराजी कभी भी प्रेस फोटोग्राफरों की जगह धड़ल्‍ले से नहीं घूम सकते। उन्‍हें अपनी पहचान छिपा कर रखनी पड़ती है। वे हस्तियों की नजर बचाकर उनकी इच्‍छा के विरूद्ध उनके फोटो खींचते हैं।

कभी कभी पपरजियों की वजह से हस्तियों को परेशानियों को सामना करना पड़ता है। इसका सबसे मशहूर उदहारण है राजकुमारी डायना की मौत। 31 अगस्‍त, 1997 को पेरिस में राजकुमारी डायना अपने बॉयफ्रेंड डोडी-उल-फहद के साथ मर्सिडीज में जा रही थीं कि उनकी एक झलक को अपने कैमरे में क्लिक करने के लिए पपराजियों ने उनका पीछा शुरू किया। पपराजी मोटरसा‍इकिलों पर थे और उनके कैमरे मोटरसाइकिलों में ही फिट थे। पपराजियों से पीछा छुडाने के चक्‍कर में डोडी ने ड्राइवर को कार तेज चलाने का आदेश दिया। हड़बड़ी में कार सुरंग के एक खम्‍भे से टकरा गई और डायना व डोडी सहित ड्राइवर की वहीं मौत हो गई। सिर्फ डायना का बॉडीगॉर्ड बच गया। उसने फिर बाद में बताया कि पपराजियों के आतंक के कारण ही यह दर्घटना हुई। नौ पपराजियों के खिलाफ बाद में मुकदमा चला। हालांकि बाद में वे छूट गए लेकिन यूरोप भर में उनकी बड़ी बदनामी हुई। उनके खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन हुए और उन्‍हें कातिलों की उपाधि से विभूषित होना पड़ा ।

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पपराजी काम के खिलाफ अलग से कोई कानून नहीं बना है। डायना की मौत के बाद जरूर इस संबंध में कुछ सुगबुगाहट हुई थी लेकिन कहीं कोई कानून बना हो, ऐसा सुनाई नहीं दिया। भारत में भी ऐसा कोई कानून नहीं है, हमारे यहां ‘पपराजी’ जैसा कोई प्रोफेशन नहीं है। अखबारों के अपने फोटोग्राफर ही गाहे-ब-गाहे यह काम करते रहते हैं। इसलिए जब भी कोई ऐसी घटना घटती है, थोड़ी-‍बहुत गर्मा-गर्मी के बाद मामला ठण्‍डा पड़ जाता है। कभी कभी जब इस प्रोफेशन पर सवाल उठता है तो अभियक्ति की आज़ादी का कहकर इससे पल्ला झाड़ लिया जाता है।