क्या 19 मार्च 1987 को भी किसान आंदोलन हुआ था यदि हाँ तो उसके बारे में बताए?

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क्या 19 मार्च 1987 को भी किसान आंदोलन हुआ था यदि हाँ तो उसके बारे में बताए?

कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्‍ली बॉर्डर पर 4 दिन से प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों ने बुराड़ी मैदान में जाने के बाद बातचीत शुरू करने के केंद्र के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। वे अभी भी दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए हैं।आइये जानते हैं 1987 में हुए किसान आंदोलन के बारे में जिसका मुख्य आन्दोलनकर्ता स्व. चौ. महेन्द्र सिंह टिकैत ने किसान आंदोलन की मशाल करमूखेड़ी बिजलीघर के आंदोलन से जलाई थी।

वक्त बीत चुका और तारीखें भी लेकिन बाबा के वे आंदोलन आज भी लोगों के दिल में तरोताजा हैं। कुछ तो खास था बाबा में, तभी कोई दूसरा आज तक किसानों के दिल में वैसी जगह नहीं बना पाया।किसान आंदोलन मुख्यतः 1987 के मार्च से शरुआत होकर अप्रैल के अंत तक चला था।

ऐसे बनी थी भाकियू

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दिल्ली के कंझावाला गांव में किसान संघर्ष समिति की बैठक में दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब के कई हजार किसानों ने शिरकत की थी। इसी दौरान भारतीय किसान यूनियन का गठन हुआ और ट्रेड यूनियन एक्ट के तहत दिल्ली में रजिस्ट्रेशन कराया गया। 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह के बीमार पड़ने पर किसान शक्ति को पुन: सक्रिय किया गया। कुछ पुराने पदाधिकारी पश्चिम उ.प्र. के किसानों के बीच आए और संगठन को मजबूत बनाने को कंधे से कंधा मिला दिया। पश्चिम उत्तर प्रदेश में खाप व्यवस्था के जरिए किसानों को संगठित किया।

यूनियन का पहला प्रभावी आंदोलन करमूखेड़ी बिजलीघर रहा था। बिजली की बढ़ी दरों व अन्य मांगों को लेकर यहां बाबा टिकैत ने डेरा डाल दिया। बाबा की हुंकार के आगे शासन, प्रशासन को झुकना पड़ा था।

ये थे आंदोलन

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एक मार्च 1987 : बिजली की बढ़ी दरों को लेकर किसान करमूखेड़ी बिजलीघर पर लाखों की संख्या में पहुंच गए। निहत्थे किसानों पर पुलिस ने लाठी व गोलियां चलाईं जिसमें दो किसान जयपाल सिंह व अकबर अली शहीद हो गए।

1 मार्च 1987 : किसान करमूखेड़ी बिजलीघर पर बड़ा आंदोलन, दो किसान शहीद।

1 अप्रैल 1987 : शामली में किसान महापंचायत में करीब तीन लाख की भीड़।

एक अप्रैल 1987 : शामली में किसान महापंचायत हुई। लाखों की संख्या में किसान उपस्थित हुए।

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