Uttar Pradesh में बढ़-घट रही OBC आबादी! निकाय आरक्षण तय करने में जुटे पिछड़ा वर्ग आयोग को करनी पड़ रही मशक्‍कत

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Uttar Pradesh में बढ़-घट रही OBC आबादी! निकाय आरक्षण तय करने में जुटे पिछड़ा वर्ग आयोग को करनी पड़ रही मशक्‍कत

Uttar Pradesh में बढ़-घट रही OBC आबादी! निकाय आरक्षण तय करने में जुटे पिछड़ा वर्ग आयोग को करनी पड़ रही मशक्‍कत


लखनऊ: उत्‍तर प्रदेश के शहरी निकायों में ओबीसी आबादी की स्थिति में बढ़ता-घटता फर्क पिछड़ा वर्ग समर्पित आयोग की चिंता बढ़ा रहा है। बीते कुछ साल के आंकड़ों में जिस तरह का अंतर दिख रहा है, उसका कारण नहीं समझ आ रहा। सूत्र बताते हैं कि आयोग को कुछ ऐसे भी मामले मिले हैं, जिनमें वॉर्डों का दायरा बढ़ा बावजूद इसके ओबीसी आबादी, जितनी पहले थी, उसमें बड़ी संख्या में कमी दर्ज की गई। होना तो यह चाहिए था कि आबादी दायरा बढ़ते ही आबादी में इजाफा होना चाहिए। अब इस तरह के मामलों को अलग-अलग करके उनकी जानकारी जुटाई जा रही है।

शहरी निकायों के चुनावों में ओबीसी आरक्षण देने के लिए नगर विकास विभाग में समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया है। इस आयोग को शहरी निकायों में राजनीतिक हिस्सेदारी का परीक्षण करना है और उसके हिसाब से आरक्षण के प्रतिशत की सिफारिश करनी है। एक तरफ तो साल 1995 के बाद से हुए चुनावों में शहरी निकायों से सामान्य सीटों पर ओबीसी विजेताओं की जानकारी मांगी गई है। इसका परीक्षण करके यह आकलन किया जाएगा कि कहां पर ओबीसी जाति से आने वाले लोग राजनीतिक रूप से इतना सक्षम हैं कि उस निकाय में उन्हें आरक्षण की कम जरूरत है। वहीं, दूसरी तरफ ओबीसी आरक्षित जातियों की गणना के आंकड़ों से आबादी के प्रतिशत का भी आकलन इस कड़ी में महत्वपूर्ण हिस्सा है। ऐसे में ओबीसी आरक्षित जातियों की संख्या जानने के लिए होने वाले रैपिड सर्वे के विश्लेषण किया जा रहा है। इस काम में सबसे ज्यादा मुश्किलें तो ऐसे आंकड़ों ने खड़ी कर रखी हैं, जहां ओबीसी आबादी पिछली बार की तुलना में अगली बार कम हो गई। वहीं, अगले चुनावों के पहले हुए रैपिड सर्वे में ओबीसी आबादी फिर बढ़ गई। वॉर्डों के स्तर पर ऐसी स्थिति बड़े पैमाने पर देखी जा रही है। सूत्र बताते हैं कि वॉर्ड सीमा वही रहने या बढ़ने के बावजूद ओबीसी आबादी में कमी वाले मामले काफी संख्या में हैं।

कई वॉर्ड तो बरसों से नहीं गए आरक्षित श्रेणी में

आरक्षण तय करने में रैपिड सर्वे बड़ा रोल अदा करता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि अनुसूचित जाति और जनजाति की गणना तो जनगणना में ही हो जाती है और वह आबादी नोटीफाइड ही होती है। जबकि ओबीसी आबादी की गणना के लिए रैपिड सर्वे करवाया जाता है। यानी गिनती में भी एक तरह का अनुमानित आंकड़ा तैयार किया जाता है। सामान्यत: कहीं की भी आबादी में सबसे बड़ा हिस्सा ओबीसी का ही है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण से किसी खास वॉर्ड या शहरी निकाय को बाहर निकालने या शामिल करने के लिए ओबीसी आबादी के आंकड़ों को कम या ज्यादा करने के आरोप शहरी निकायों पर लगते रहे हैं। सूत्र अब जबकि आयोग के सामने आंकड़े आए हैं तो इसमें भी ऐसा ही कुछ उसे भी दिख रहा है। कई वॉर्ड और शहरी निकाय तो बरसों से आरक्षित श्रेणी में आए ही नहीं। मसलन, लखनऊ नगर निगम का ही आरक्षण केवल एक बार महिला हुआ वह भी अनारक्षित वर्ग के लिए। कभी यहां आरक्षित श्रेणी में सीट ही नहीं गई।

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