UP Election News : अन्य क्षेत्रों में पिछले चुनाव जैसा ही रहा माहौल, क्या पूर्वांचल बदलेगा अपनी परंपरा

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UP Election News : अन्य क्षेत्रों में पिछले चुनाव जैसा ही रहा माहौल, क्या पूर्वांचल बदलेगा अपनी परंपरा

असिम अली, पॉलिटिकल रिसर्चर
यूपी चुनाव में मतदान का आखिरी पड़ाव पूर्वांचल क्षेत्र है जहां की 111 सीटों में 57 पर आज मतदान हो रहे हैं जबकि शेष 54 सीटों पर 7 मार्च को वोटिंग होगी। मतदान के ये आखिरी दो चरण निर्णायक साबित होने वाले हैं। चुनावी माहौल तो संभवतः बीजेपी के साथ ही है। पश्चिमी यूपी में मजबूत शुरुआत के बाद समाजवादी पार्टी गठबंधन को (SP Alliance) बीच के चरणों तक पहुंचते-पहुंचते कठिनाई महसूस होने लगी। पिछले दशक में तैयार बड़े सामाजिक आधार के जरिए निर्मित सांगठनिक ढांचे से लाभान्वित बीजेपी ने बुंदेलखंड, अवध और पूर्वी यूपी के अलग-अलग पॉकेट्स में अपनी मौजूदगी का अहसास कराया जहां तीसरे, चौथे और पांचवें चरण में मतदान हुए।

पूर्वांचल में बीजेपी ने किया था स्विप
मतदान के छठे और सातवें चरण में प्रदेश के सबसे पिछड़े इलाके कवर हो जाएंगे। बीजेपी गठबंधन ने वर्ष 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में इस पूरे इलाके पर एकतरफा जीत हासिल की थी। उसे यहां की कुल 111 में 84 सीटें मिली थीं जबकि सपा गठबंधन के हिस्से 14 जबकि बीएसपी के खाते में 11 सीटें आई थीं। हालांकि, वोट प्रतिशत और जीत के अंतर के मामले में बीजेपी को प्रदेश के दूसरे हिस्से के मुकाबले पूर्वांचल में कम सफलता मिली थी। इसलिए, इस बार सपा को बीजेपी पर बढ़त पाने के लिए बहुत ज्यादा वोट स्विंग की जरूरत नहीं होगी।

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इसी क्षेत्र में बुआ-बबुआ गठबंधन को मिल पाई थी थोड़ी कामयाबी

सपा इस तथ्य पर भी जोर लगा रही है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से मंडल और समाजवादी राजनीति का हब रहा है। इसलिए पार्टी ने यहां इन्हीं दो वैचारिक पृष्ठभूमि में पूरा प्रचार अभियान चलाया। इसके अलावा, इस क्षेत्र पर आंबेडकरवादी और वामपंथी आंदोलनों का भी प्रभाव रहा है जो ब्राह्मण-ठाकुर सामंती दबदबे के खिलाफ खड़ा हुआ था। मुलायम सिंह यादव और कांशीराम, दोनों की राजनीति भी यहीं फली-फूली थी। यही वजह है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सपा-बसपा गठबंधन जो थोड़ा करामात कर पाई थी, वो इसी क्षेत्र में संभव हो सकी थी। बुआ-बबुआ (मायावती-अखिलेश यादव) के गठबंधन ने बीजेपी को जौनपुर गाजीपुर, लालगंज (आजमगढ़), घोषी (मऊ) और आबंडेकर नगर में हराया था।


2014 से बदल गई क्षेत्र की राजनीति

पूर्वांचल में बीजेपी की ऐतिहासिक कमजोरी में बदलाव नरेंद्र मोदी के वर्ष 2014 में वाराणसी को अपना राजनीतिक ठिकाना बनाने से आया है। इसे स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश राजभर जैसे नेताओं की आवक से मजबूती मिली थी। ये सभी पिछड़ी जातियों की राजनीति के कांशीराम स्कूल के नेता हैं। इन सभी ने इस बार बीजेपी से सपा का रुख कर लिया है जिससे पार्टी को आखिरी दो चरणों के मतदान के लिए मंडल नैरेटिव गढ़ने में काफी मदद मिली है।

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पिछड़ी जातियों को पाले में करने की कवायद

इधर, बीजेपी ने पिछड़ी जातियों की नाराजगी से बचने के लिए गठबंधन दलों के साथ सीटें साझा करने में उदारता दिखाई। अपना दल 17 और निषाद पार्टी को 16 सीटें इसी क्षेत्र में मिली हैं। सर्वाधिक पिछड़ी जातियां (MBCs) मौर्य, निषाद, राजभर, नोनिया आदि काफी प्रभावी वोटर हैं जो पूर्वांचल की कई सीटों पर पाशा पलटने की क्षमता रखते हैं। सपा ने भी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा (SBSP) को 18 सीटें और तीन सीटें संजय चौहान की पार्टी जेसीपी को देकर अपना खेमा मजबूत करने का दांव खेला है। राजभरों और नोनिया चौहानों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली ये छोटी पार्टियां कितना दम दिखा पाती हैं, यह देखना काफी महत्वपूर्ण होगा।

पूर्वांचल के दो हॉट स्पॉट्स-
गोरखपुर और वाराणसी
छठे चरण के मतदान की हाईलाइट गोरखपुर सीट होगी जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ठिकाना है। वो यहां से पांच बार सांसद चुने गए हैं और पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार गोरखपुर की कुल नौ में आठ सीटें बीजेपी ने जीती थीं। यहां पार्टी को ज्यादा नुकसान हुआ तो उसका सीधा असर योगी आदित्यनाथ की छवि पर होगा। इसी तरह, सातवें चरण के मतदान में सबकी नजरें वाराणसी पर टिक जाएंगी जो संभवतः बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवादी परियोजना का केंद्र है।

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ब्राह्मण घर से निकलें तब ना…

पूरी संभावना है कि पीएम मोदी आखिरी चरण के चुनाव प्रचार में और भी ताकत झोंक दें ताकि अभी भी काफी हद तक बची अपनी लोकप्रियता को पार्टी के लिए वोट दिलवाने में भुना सकें। जिस इलाके के लोग गरीबी और बाहुबलियों का शिकार रहे हों, वहां बीजेपी की कल्याणकारी योजनाएं और चुस्त-दुरुस्त कानून-व्यवस्था मतदाताओं को आकर्षित कर सकते हैं। बीजेपी को इस क्षेत्र में कई सीटों पर दबदबा रखने वाले ब्राह्मणों को न केवल जोड़कर रखना होगा बल्कि यह सुनिश्चित करना होगा कि वो बड़ी संख्या में मतदान करने घरों से निकलें।

यहीं बच सकती है बसपा की लाज
बहुजन समाज पार्टी (BSP) के नजरिए से भी आखिरी दोनों चरणों के मतदान महत्वपूर्ण हो सकते हैं। यहां की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा दलितों का है जिनमें ज्यादातर जाटव जाति से हैं। समर्पित मतदाताओं के दम पर पार्टी उन पांच सीटों पर इस बार भी अच्छी लड़ाई लड़ सकती है जहां उसे पिछली बार जीत मिली थी। तब उसे यहां की 33 सीटों पर भी दूसरा स्थान हासिल हुआ था। लेकिन बसपा की पकड़ वाले क्षेत्र आंबेडकर नगर में पिछड़ी जातियों के प्रमुख नेताओं राम अचल राजभर और लालजी वर्मा आदि ने सपा का दामन थाम लिया है।

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इसलिए इस बार बढ़ गई पूर्वांचल की जिम्मेदारी
पहले पांच चरणों के मतदान में सपा और बीजेपी ने एक-दूसरे को खरोंचा तो जरूर है, लेकिन ऐसा लगता है कि कोई किसी को गहरी चोट देने में कामयाबी हासिल नहीं की है। ऐसे में बाकी के दो चरणों में खेल बदलने वाले दांव की उम्मीद की जा रही है जहां किसी एक पार्टी का दूसरी पर भारी पड़ने का पूरा चांस है। पिछले तीन चुनावों में पूर्वांचल ने जीत दर्ज करने वाली पार्टी का ही साथ दिया है। यहां की जनता ने 2007 में बसपा, 2012 में सपा और 2017 में बीजेपी को आशीर्वाद दिया था और क्रमशः वही पार्टियां सत्ता में आईं। इस चुनाव में पूर्वांचल न केवल विजेता का साथ देगा बल्कि विजेता तय करने में दूसरे किसी भी क्षेत्र से ज्यादा अहम भूमिका निभाएगा।

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