UP Crime: वह साल 1988 था जब पहली बार सुर्खियों में आया Mukhtar Ansari, जानिए सच्चिदानंद राय हत्‍याकांड का किस्‍सा

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UP Crime: वह साल 1988 था जब पहली बार सुर्खियों में आया Mukhtar Ansari, जानिए सच्चिदानंद राय हत्‍याकांड का किस्‍सा

UP Crime: वह साल 1988 था जब पहली बार सुर्खियों में आया Mukhtar Ansari, जानिए सच्चिदानंद राय हत्‍याकांड का किस्‍सा

वाराणसी: बाहुबली मुख्‍तार अंसारी इन दिनों बांदा जेल में बेबस नजर आ रहा है। कुछ दिन पहले उसने अर्जी दाखिल कर अपने बेटे और बहू से बात करवाने की गुहार लगाई थी। उसका बेटा अब्‍बास अंसारी कासगंज जेल में तो बहू निकहत चित्रकूट जेल में बंद हैं। मुख्‍तार का कहना है कि चूंकि उसके बेटे और बहू अलग अलग जेल में बंद हैं तो उनकी बातचीत नहीं हो पा रही है। एक जमाना था जब मुख्‍तार की पूरे उत्‍तर प्रदेश में तूती बोला करती थी। वो जो चाहता था वही करता था। वह 80 का दौर था जब पहली बार किसी मर्डर केस में मुख्‍तार अंसारी का नाम सामने आया था। 1998 में गाजीपुर जिले के मुहम्मदाबाद इलाके में एक ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या हुई थी। वर्चस्‍व की लड़ाई में हुए इस मर्डर में मुख्तार के दोस्‍त साधू शरण सिंह उर्फ साधू सिंह का भी नाम आया था।

मुहम्मदाबाद तहसील में हरिहरपुर गांव के रहने वाले सच्चिदानंद राय ठेके-पट्टी आदि का काम करते थे। नगरपालिका में साइकिल स्टैंड के ठेके को लेकर उनकी मुख्तार अंसारी से ठन गई। हालांकि दोनों ही मुहम्मदाबाद क्षेत्र के अलग-अलग जगहों के मूल निवासी थे। मुख्तार का घर मुहम्मदाबाद मंडी के बीच था जो आज की तारीख में फाटक के नाम से जाना जाता है। वहीं, सच्चिदानंद भी भूमिहार बहुल गांव हरिहरपुर के ही रहने वाले थे। लेकिन दबंग छवि वाले राय, मुख्तार पर गाहे-बगाहे हावी हो जाते थे। उस दौर के पत्रकारों की मानें तो सच्चिदानंद राय ने मुख्तार को कई बार सार्वजनिक रूप से राय ने बेइज्जत किया था। इसी बेइज्जती के बदले के तौर पर सच्चिदानंद राय की हत्या की पठकथा लिखी गई थी।

अवधेश राय ने करवाई जांच पर रिपोर्ट ठंडे बस्‍ते में

घटना वाले दिन सच्चिदानंद राय अपने गांव लौट रहे थे। इसी बीच तिवारीपुर चौराहे के पास उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। उनके पिता कपिल देव सेना से रिटायर्ड थे। जानकारों की माने तो कपिलदेव राय ने सच्चिदानंद राय की हत्या को लेकर कोई तहरीर नहीं दी थी। उनकी ओर से ना ही कोई एफआईआर दर्ज कराई गई थी। हालांकि उस दौर में दिलदार नगर से विधायक रहे अवधेश राय ने हत्या की जांच में रुचि दिखाई थी। उन्होंने अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करते हुए सच्चिदानंद राय हत्याकांड की सीबीसीआईडी जांच करवाई थी। लेकिन, जांच रिपोर्ट कालांतर में ठंडे बस्ते में चला गया। अवधेश राय के मजबूत समर्थकों में से सच्चिदानंद राय एक थे। इसी को देखते हुए उन्‍होंने इस हत्या को गंभीरता से लेते हुए सीबीसीआईडी जांच कराई थी।

सच्चिदानंद के धमकाए जाने से आहत था मुख्‍तार

सच्चिदानंद राय की हत्या के समय मुख्तार अंसारी की औपचारिक रूप से क्राइम वर्ल्ड में एंट्री नहीं हुई थी। सच्चिदानंद राय की ओर से आएदिन डराए, धमकाए और बेइज्जत किए जाने से मुख्तार अंसारी पूरी तरह से आहत था। इसलिए वह साधू सिंह के पास पहुंचा। सच्चिदानंद राय हत्या की पूरी पटकथा मुख्तार अंसारी के कहने पर साधू सिंह ने रची थी। 1984 में राजेश्वर सिंह उर्फ मकनू सिंह की हत्या हो चुकी थी। वहीं 1989 में साधू सिंह की हत्या होने के बाद गैंग की कमान मुख्तार अंसारी के हाथ आ गई थी। बताया जाता है कि साधू सिंह और मकनू सिंह साथ रहते थे। दोनों मिलकर बड़े स्तर पर ठेके पट्टी की लॉबिंग करते थे। मकनू सिंह की हत्या 1984 में दफ्तर जाते समय हो गई थी। इन दोनों के साथ ही मुख्तार जुड़ा था।

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