भारतीय रेलवे पिछले कुछ दिनों से गलत कारणों से चर्चा में है. रेलवे ने हाल ही में क्लोक रूम सुविधा और ट्रेन टिकेट में बढ़ोत्तरी करने का फैसला लिया है. इसके लिए आम जनता विरोध पर उतर आयी है. लेकिन ताज़ा मामले में रेलवे के ही कर्मचारियों ने रेलवे की कार्यप्रणाली पर आरोप लगाए हैं. दरअसल एक रेलवे कर्मचारी संघ का आरोप है कि ट्रेन में मौजूद टिकट जांच करने वाले कर्मचारियों को वरिष्ठ अधिकारी इस बात के लिए मजबूर करते हैं कि वे रेलवे का राजस्व(रेवेन्यू) बढ़ाने के लिए बेटिकट यात्रियों को स्लीपर श्रेणी में यात्रा करने के लिए नियमों का उल्लंघन करते हुए गैरकानूनी तरीके से टिकट जारी करें.
पत्र के ज़रिये दी घपलेबाज़ी की जानकारी
21 जनवरी को रेलवे बोर्ड को भेजे गए पत्र में आल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन ने कहा है कि यह उसके आदेशों की ‘‘स्पष्ट अवज्ञा’’ है. पत्र में कहा गया, ‘‘ रेलवे बोर्ड की ओर से आदेश है कि अनाधिकृत ढंग से यात्रा कर रहे किसी भी यात्री को अगले स्टेशन तक के लिए टिकट जारी कर अगले स्टेशन पर ट्रेन से उतार देना चाहिए. लेकिन सभी स्थानीय सीसीएम (जोन के चीफ कर्मिशयल मैनेजर) टीटीई पर दबाव बनाते हैं कि रेलवे का राजस्व बढ़ाने की खातिर वे यात्री से अधिकतम दूरी का पैसा वसूलें.’’ इसके अलावा पत्र में ये भी लिखा गया कि, ‘‘ यह रेलवे बोर्ड के आदेशों की खुल्लम खुल्ला अवज्ञा है और टीटीई उन्हें स्लीपर श्रेणी में समायोजित करने को मजबूर होते है.’’ रेलवे बोर्ड ने 19 जनवरी को सभी रेलवे जोन को सर्कुलर जारी किया था. यह सर्कुलर स्लीपर श्रेणी में आम जनता को समायोजित करने के एवज में टीटीई द्वारा रिश्वत लेने की शिकायतों क्र मद्देनज़र जारी किया गया.
टीटीई के दुःख की वजह से वापस लिया गया पत्र
जानकारी के मुताबिक रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्विनी लोहानी के दखल के बाद ये पत्र वापस ले लिया गया है. पत्र में सभी ज़ोन से सतर्कता अधिकारियों तथा रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स द्वारा इस आरोप के संबंध में अभियान चलाने का निर्देश दिया गया था. संघ ने पत्र पर आपत्ति जताई और कहा कि भ्रष्ट कहे जाने पर टिकट जांच करने वाले कर्मचारियों को दुख पहुंचा है. उन्होंने पत्र को तत्काल वापस लेने की मांग की. पत्र में संघ के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा ने आरोप लगाया कि स्थानीय अधिकारी टीटीई पर उन लक्ष्यों को हासिल करने का दबाव बनाते हैं जिन्हें पूरा करना संभव नहीं है.