पानी की एक-एक बूँद को अमृत समझ कर खर्च कर रहे हैं लोग, बाँध भी सूखे पड़े

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दुनिया में आज तक पैदा हुए अरबों जीव-जंतुओं में सबसे ज़्यादा समझदार इंसान ने ‘जल बिन सब सून’ की कहावत दी है. लेकिन उस वक़्त इंसान को  क्या उसे मालूम रहा होगा कि आने वाले वक्त में लोग इसी जल को तरस जाएंगे और इस कहावत को इतने भयावह रूप में सच होते देखेंगे.  आज चांद-तारों से आगे जाने वाली इंसानी नस्ल के सामने पानी के लिए तड़प-तड़पकर मरने की नौबत आ गयी है.

दक्षिण अफ्रीका का केपटाउन शहर भयंकर जल संकट से गुज़र रहा है. तीन साल लंबे सूखे ने शहर की कमर तोड़ दी है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि इस शहर में 90 दिनों के भीतर पानी खत्‍म हो सकता है. केपटाउन की जनसंख्‍या 40 लाख है, बढ़ती जनसंख्‍या से दबाव बढ़ रहा है.

विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक 11 मई, 2018 तक यहां पानी की समस्‍या बेहद गंभीर हो जाएगी. यहां के बांधों में सिर्फ 30 फीसदी पानी बचा है. 13.5 फीसदी पानी बचने पर शहर की सप्‍लाई बंद कर दी जाएगी. बांध बंद होने के बाद हर केपटाउन वासी को सिर्फ 25 लिटर पानी दिया जाएगा. इसके लिए पुलिस की निगरानी में 200 जगहों पर पानी बांटा जाएगा. संकट से निपटने के लिए फिलहाल केपटाउन के निवासियों को कई अहम सलाह दी गई हैं, जिनका पालन उन्‍हें करना है.

Water crisis -

पानी बचाने की हर संभव कोशिश

1 फरवरी से, हर‍ व्‍यक्ति के लिए प्रतिदिन 50 लिटर पानी इस्‍तेमाल करने की सीमा तय कर दी गई है. इसके अलावा शॉवर के लिए दो मिनट का वक्‍त तय किया गया है. कार धोने पर रोक लगा दी गयी है. टॉयलेट का फ्लश भी कम से कम इस्‍तेमाल करने की हिदायत भी दी गई है. इसके अलावा बागीचों और स्विमिंग पूल में पानी न भरने की सलाह दी गई है. लोगों से यहे भी कहा गया है कि नहाने के पानी को रिसाइकिल करें और वाशिंग मशीन का प्रयोग कम करें.

हर स्रोत का उपयोग

इतने बड़े जल संकट की वजह से पूरे शहर में नलों पर पानी लेने के लिए लंबी-लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. पिछले पांच सालों में यहां सिंचाई का प्रयोग बेहद कम हो गया है. बढ़ते जल संकट से निपटने के लिए अधिकारी समुद्र के पानी को साफ करने का प्रयास कर रहे हैं. इसके अलावा नालियों के पानी को भी रिसाइकिल करने की कोशिश की जा रही है. इसके अलावा ज़मीन के भीतर से सात गहरी बोरिंग कर टेबल माउंटेन के नीचे से पानी निकालने की कोशिश की जा रही है. अनुमान है कि यहां लगभग 1,00,000 क्‍यूबिक किलोमीटर पानी होगा.

बता दें कि दक्षिण अफ्रीका के बाकी शहरों का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है. यहां पहाड़ों के ऊपर लेसोथो नाम की एक जगह है. जोहेन्सबर्ग, प्रीटोरिया और साउथ अफ्रीका की ज्यादातर इंडस्ट्रियों को जो पानी मिलता है, वो लेसोथो से ही जाता है. सूखे की वजह से यहां बांध में पानी दिनोदिन तेजी से घटता जा रहा है. जो बचा है, वो भी खत्म होने की कगार पर है. लेसोथो में पानी खत्म होना पूरे साउथ अफ्रीका के लिए खतरे की घंटी है. कुछ लोग सलाह दे रहे हैं कि यहां का पानी फिलहाल बचाकर रखा जाए. ताकि और बुरी स्थिति आने पर उसे इस्तेमाल किया जा सके. मगर सरकार मजबूरी में लेसोथो के बांधों का सहारा ले रही है. उसे उम्मीद है कि शायद आने वाले दिनों में बारिश हो जाए और हालत सुधरे.

water saving tips -

बारिश ने भी छोड़ा साथ

1977 के बाद से केपटाउन इंटरनेशनल एयरपोर्ट ने हर साल औसतन 508 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की है, मगर पिछले तीन साल में यह आंकड़ा सिर्फ 153 मिमी, 221 मिमी और 327 मिमी रह गया है. तीन साल मिलाकर भी उतनी बारिश नहीं हुई, जितनी 1993 में हुई थी. लगातार तीन साल सर्दियों की बारिश कम होने का यह पहला वाकया है. वैज्ञानिकों के अनुसार, इसके पीछे अल-नीनो एक वजह हो सकता है.

केपटाउन दुनिया का पहला ऐसा शहर है जिसे ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं. मगर वो अकेला नहीं रहेगा. अगर हम इंसान अब भी नहीं चेते, तो जल्द ही पूरी दुनिया केपटाउन जैसी हालत में नजर आएगी. हमे आज से ही पानी की हर बूँद पर ध्यान देना चाहिए. खराब टंकी से एक बूँद टपकता पानी भी सैकड़ों लीटर हो जाता है. हाथ धोने में देरी, ब्रश करते वक़्त या मुह धोते वक़्त टंकी को खुला छोड़ देना. आत्म मंथन करने पर आप खुद जान जाएंगे कि किस जगह पानी की बर्बादी हो रही है और उसे कैसे रोका जा सकता है.