वो साढ़े 7 मिनट जब संसद में गूंजी थी अटल जी की आवाज और विपक्ष सुनता रहा चुपचाप

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नई दिल्ली: देश के दिग्गज नेता और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का कल एम्स में निधन हुआ है. अटल जी 93 साल की उम्र में देश को अलविदा बोल गए. अटल जी की पहचान उनकी दूरदृष्टि के लिए की जाती थी. वह दो बार देश के प्रधानमंत्री भी रहें है. उनके पीएम के कार्यकाल में जब उन्होंने परमाणु परिक्षण करवाया था तो दुनिया ने उस टेस्ट को पूरी तरह से नकार दिया था. लेकिन आज भारत एक परमाणु शक्ति वाला देश है.

साढ़े 7 मिनट तक विपक्ष चुपचाप सुनता रहा

साल 1998 में हुए पोखरण न्यूक्लियर टेस्ट के बाद जब आर्थिक मोर्चे पर वाजपेयी सरकार परेशानी में थी. अर्थव्यवस्था गिरकर 7.8 फीसदी से कम होकर 5 फीसदी पर आ गई थी. दुनिया के तमाम ताकतवर देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी अपने फैसले में अडिग रहें. उन्होंने विपक्ष की आलोचनों का संसद में करारा जवाब भी दिया था. उन्होंने तकरीबन 7 मिनट तक संसद में भाषण दिया था, जिसके बाद उनको पूरा विपक्ष चुपचाप सुनता रहा था. उन्होंने संसद में पोखरण मसले पर जवाब भी दिया था.

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परमाणु परिक्षण की विपक्ष द्वारा कड़ी आलोचना की गई, ये बेहद दुखद- अटल बिहारी वाजपेयी

सदन में उन्होंने कहा था कि परमाणु परिक्षण की विपक्ष द्वारा कड़ी आलोचना की गई, ये बेहद दुखद है. साल 1974 में जब में सदन मैं था और उस दौरान इंदिरा गांधी के अगुआई में परमाणु परिक्षण किया गया तो उन्होंने उसका समर्थन किया था. क्योंकि ये भारत देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मामला था. उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ते हुए कहा कि आत्मरक्षा की तैयारी तब करनी होगी जब खतरा हो. क्या खतरा आने से पहले ही तैयारी करना उचित नहीं है. अटल जी ने कहा कि 50 साल का हमारा अनुभव क्या बताता है. क्या रक्षा के  मसले में हमें आत्मनिर्भर नहीं होना चाहिए.

ये टेस्ट बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था- अटल 

अटल बिहारी वाजपेयी अपने फैसले में इतने अटल रहें और उन्होंने GDP और महंगाई के आंकड़ों के बीच भी न्यूक्लियर टेस्ट वाले फैसले से पीछे नहीं हटे. उन्होंने संसद में न्यूक्लियर टेस्ट से बढ़ी आर्थिक चुनौतियों पर कहा कि बहुत समय लगा दिया, मतलब बहुत देर कर दिया है, ये टेस्ट बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था. और खुद को न्यूक्लियर पॉवर घोषित कर देना चाहिए था. अटल बिहारी वाजपेयी ही वो महान नेता है जिन्होंने कांग्रेस के 1991-1996 कार्यकाल में भी न्यूक्लियर टेस्ट कराने की पर्याप्त कोशिश की थी. लेकिन, अमेरिका के दबाव के कारण यह संभव नहीं हो पाया था.