Russia और Ukraine के बीच कम हुआ तनाव, क्या गश खाकर गिर जाएंगी खाने के तेल सहित कृषि उत्पादों की कीमतें?

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Russia और Ukraine के बीच कम हुआ तनाव, क्या गश खाकर गिर जाएंगी खाने के तेल सहित कृषि उत्पादों की कीमतें?

नई दिल्ली: मार्च के पहले हफ्ते में रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) के साथ ही कई तरह की कमोडिटीज (Commodities) में उछाल देखने को मिला था। जिन कमोडिटीज का उत्पादन रूस या यूक्रेन में होता है, उनकी कीमतें काफी तेजी से बढ़ गई थीं। निकल व एल्यूमिनियम जैसी धातुओं, क्रूड ऑयल और एग्री कमोडिटीज जैसे- गेहूं, मक्का, सूरजमुखी, सोयाबीन, पामोलीन आदि की कीमतें आसमान छूने लगी थीं। युद्ध के कारण सप्लाई चेन बाधित रहने के चलते कीमतों में यह तेजी देखने को मिली। मक्के और सोयाबीन की कीमतें बढ़ने से मुर्गियों का दाना महंगा हो गया, जिसका सीधा असर चिकन की कीमतों में बढ़ोतरी के रूप में ग्राहकों पर पड़ा। बता दें कि भारत के मक्का आयात का करीब 70 फीसद यूक्रेन से आता है। एक तो यूक्रेन में युद्ध के कारण खेती से जुड़े काम रुक गए और दूसरी तरफ काले सागर में यूक्रेन के पोर्ट पर बमबारी से सप्लाई पूरी तरह बाधित हो गई। निकट भविष्य में भी सप्लाई इसी तरह बाधित रहने की संभावना है।

युद्ध का तनाव कम हुआ तो गिरे दाम
रूस-यूक्रेन युद्ध में इस समय तनाव कुछ कम हुआ है। यूक्रेन में कई जगहों से रूसी सेना की वापसी हो रही है। इसके चलते क्रूड ऑयल सहित कई कमोडिटीज के दाम गिरे हैं। शुक्रवार को ब्रेंट ऑयल 0.34 फीसद गिरकर 104.35 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ था। पाम ऑयल, मक्का और सूरजमुखी जैसी कमोडिटी की कीमतों में भी गिरावट आई है। हालांकि, कीमतें अभी भी महंगी बनी हुई हैं।

क्या पहले के स्तर पर आ जाएंगी कीमतें
रूस-यूक्रेन के बीच तनाव कम होने की खबरों से भले ही कमोडिटीज के दाम पिछले हफ्ते गिरे हों, लेकिन कीमतें अभी भी महंगी हैं। युद्ध में भले ही तनाव कम हुआ हो, लेकिन सप्लाई चेन अभी भी बाधित है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि रूस पर अमेरिका और यूरोप के देशों ने कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, जिनमें ढील नहीं मिलने वाली है। ऐसे में जिन कमोडिटीज का भारत रूस-यूक्रेन से आयात करता है, उनके दाम कुछ गिरावट के बावजूद महंगे बने रहेंगे।

भारत के पास निर्यात के अच्छे मौके

वहीं, भारत चीनी और गेहूं जैसी कमोडिटीज का निर्यात बढ़ा रहा है। चीनी निर्यात पर किसानों को सब्सिडी मिलती है, ऐसे में इसका भारी निर्यात हो रहा है। गेहूं की बात करें, तो भारत द्वारा 8 से 12 मिलियन टन गेहूं के निर्यात का अनुमान है। कपास के मामले में भी हम काफी प्रतिस्पर्धा वाले बाजार में हैं। इन कमोडिटीज की विदेशों में अच्छी मांग है। इसके चलते भारत के पास निर्यात के बढ़िया मौके हैं। ऐसे में घरेलू स्तर पर इन कमोडिटीज की कीमतों में गिरावट की उम्मीद कम है।
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ग्राहकों के लिए क्या

एक्सपर्ट्स का कहना है कि भले ही कीमतों में गिरावट आई हो, लेकिन ग्राहकों की चिंता कम नहीं हुई है। एग्री कमोडिटीज ओवरसप्लाई मोड में नहीं हैं। कंपनियों के पास पुराना स्टॉक पड़ा होने से हमें फायदा जरूर हुआ है, लेकिन निकट भविष्य में रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ी कोई भी नकारात्मक खबर कीमतों को बढ़ा सकती है। रमजान का महीना भी शुरू हो गया है। मध्य-पूर्व के देशों में इस समय एग्री कमोडिटीज की मांग बढ़ जाती है। इससे कीमतों के टूटने के आसार कम है।

गिरावट में खरीदने का मौका

जो निवेशक कमोडिटीज में निवेश करते हैं, उनके लिए यह खरीदारी का एक मौका हो सकता है। कोई भी गिरावट खरीदारी का एक मौका देती है। हालांकि, अप्रैल के मध्य में आने वाला मानसून का अनुमान भी बड़ा अहम होगा। बारिश का अच्छा अनुमान सामने आता है, तो यह कीमतों में कमी ला सकता है। वहीं, कम वर्षा का अनुमान चिंता बढ़ाएगा।

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