Rishi Sunak: गुजरांवाला टाउन में क्यों होती ऋषि सुनक के लिए दुआएं

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Rishi Sunak: गुजरांवाला टाउन में क्यों होती ऋषि सुनक के लिए दुआएं

Rishi Sunak: गुजरांवाला टाउन में क्यों होती ऋषि सुनक के लिए दुआएं

ऋषि सुनक के बहाने आजकल राजधानी में बसे पाकिस्तान के शहर गुजरांवाला से आए परिवार ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री के बनने से जुड़ी खबरों पर पैनी नजर रखने लगे हैं। सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन सकते हैं। उनके दादा मूल रूप से गुजरांवाला से ही केन्या गए थे, बेहतर जिंदगी की तलाश में। ये सब बातें 1930 के दशक की हैं। ताजा खबर ये है कि दिल्ली के गुजरांवाला टाउन से लेकर बाकी जगहों में रहने वाले गुजरांवाला से संबंध रखने वाले लोग सुनक के बारे में अतिरिक्त जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि सुनक उनका अपना है। मॉडल टाउन तथा छत्रसाल स्टेडियम के करीब 1985 के आसपास बसा था गुजरांवाला टाउन। यहां पर 200 और 300 गज के प्लॉट दिए गए थे। यह नॉर्थ दिल्ली की पॉश कॉलोनी है। गुजरांवाला शहर से ही 1947 में दिल्ली के शाहदरा के दर्शन भवन में बहुत से परिवार आए थे। उनमें बिजनेसमैन मनोज सहगल के पिता श्री तिलकराज सहगल भी थे। मनोज सहगल बताते हैं कि गुजरांवाला को पहलवानों का शहर कहा जाता था। हमें इस बात का फख्र है कि हमारे पुरखों के शहर का इंसान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के करीब है।

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गुजरांवाला वालों के खून में है बिजनेस करना
आपको दिल्ली के हरेक बाजार में कुछ दुकानदार गुजरांवाला से संबंध रखने वाले जरूर मिल जाएंगे। हो सकता है कि अब वे लोग ना मिलें जो गुजरांवाला से आए थे। आखिर 75 साल गुजर चुके हैं। यह कोई छोटा वक्त तो नहीं होता। चार्टर्ड अकाउंटेंट राजन धवन के पिता भी गुजरांवाला से दिल्ली आए थे। वे पहले यहां सदर बाजार में रहे और फिर निजामुद्दीन होते हुए गुरुग्राम में शिफ्ट कर गए हैं। राजन धवन ने बताया कि 1947 के बाद दिल्ली आए गुजरांवाला के लोग शुरू में कमला नगर, राजेन्द्र नगर, सब्जी मंडी में छोटा-मोटा काम करने लगे थे। उन्होंने भी मुस्कुराते हुए माना कि दिल्ली के गुजरांवाला के लोग दिल से चाहते हैं कि उनका गरंई (यह पंजाबी का शब्द है गांव के लिए) ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन जाए। इस बीच, दिल्ली में देश के विभाजन के बाद सरहद के उस पार से हजारों लोग यहां अपनी तार-तार हो गई जिंदगी को फिर से संवारने की गरज से आए थे। उनमें सशक्त लेखिका अमृता प्रीतम भी थीं। वो भी गुजरांवाला शहर से यहां आईं थीं। अमृता प्रीतम दिल्ली में सबसे पहले पटेल नगर में रहीं।

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नामधारी सिख- गुजरांवाला से करोल बाग
आपको नामधारी सिख राजधानी के सभी हिस्सों में नहीं मिलते। लगता है, इनका संसार रमेश नगर, विष्णु गार्डन, मानसरोवर गार्डन, राजौरी गार्डन, तिलक नगर, करोल बाग वगैरह के इर्द-गिर्द ही सिमटा है। ये सफेद कुर्ता, चूड़ीदार पायजामा और सफेद ही पगड़ी पहनते हैं। इनकी पगड़ी को कहते हैं सीधी पगड़ी। आपको करोल बाग के चान्ना मार्केट और वेस्टर्न एक्सटेंशन एरिया में बहुत से नामधारी सिख मिलेंगे। ये सब मूलरूप से गुजरांवाला से संबंध रखते हैं। दिल्ली में इनके संरक्षक सरदार सेवासिंह नामधरी रहे हैं। वे टेंट के बिजनेस में थे। वे गुजरांवाला से 1940 के दशक में थाईलैंड कपड़े का कारोबार करने के लिए चले गए थे। देश में भले ही क्रिकेट धर्म हो गया हो, पर नामधारियों की हॉकी को लेकर निष्ठा विचलित नहीं हुई है। अगर शिवाजी स्टेडियम या फिर नैशनल स्टेडियम में नामधारी हॉकी टीम या भारतीय टीम का कोई मैच होता है, तो ये हौसलाअफजाई के लिए जरूर पहुंचे होते हैं और दर्शक दीर्घा से खिलाड़ियों को टिप्स भी देते रहते हैं।

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