Remdesivir नाम की चमत्कारिक दवा के बारे में सामने आई चौंकाने वाली जानकारी, जीवन रक्षक नहीं थी यह दवा

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Remdesivir नाम की चमत्कारिक दवा के बारे में सामने आई चौंकाने वाली जानकारी, जीवन रक्षक नहीं थी यह दवा

नई दिल्ली: कोरोना संकट के दूसरे चरण में जब पूरे देश में हाहाकार मचा था, तब बहुत से लोग रेमडेसिविर इंजेक्शन की शिद्दत से तलाश कर रहे थे। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लोगों के मरने और ऑक्सीजन की कमी के बीच रेमडेसिविर दवा को जीवन रक्षक दवा माना जा रहा था। अब यह जानकारी सामने आई है कि रेमडेसिविर एक प्रायोगिक दवा थी, कोई चमत्कारिक दवा नहीं थी, रेमडेसिविर या प्लाज्मा कोरोना मरीजों पर कोई ख़ास असर नहीं डालती।

रेमडेसिविर इंजेक्शन की कीमत पिछले साल जून में 5400 रुपये से घटाकर 3500 रुपये कर दी गई थी। देश में कोरोना संक्रमण के दूसरे चरण में जब कुल एक्टिव केस चार लाख के पार चले गए थे, रेमडेसिविर बनाने वाली कंपनी ने अरबों का कारोबार कर लिया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने सॉलिडेरिटी ट्रायल के आधार पर यह सुझाव दिया कि, मृत्युदर,वेंटिलेटर, रोगी में सुधार का समय जैसे मामलों में दवा का कोई खास असर नजर नहीं आता है।

ब्लैक में बिकी थी दवा

कई इलाकों में यह दवा ब्लैक में अपनी ओरिजिनल कीमत से 5 गुना ज्यादा भाव पर बिक रही थी। कई लोग ऐसे रहे जिन्होंने अपने मरीजों को बचाने के लिए 5 गुना अधिक कीमत चुका कर रेमडेसिविर खरीदी लेकिन उन्हें असली दवा नहीं मिली।

एक मरीज को थी छह इंजेक्शन की जरूरत
भारत में कुल 3.80 करोड़ लोग कोरोना के शिकार हुए और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 5 लाख लोगों की जान गई। कुल 9 लाख लोगों को 54 लाख रेमडेसिविर दिया गया, हालांकि इस डेटा में दवा की ब्लैकमार्केटिंग और उसकी कीमत आदि का जिक्र नहीं है।

नकली दवा के नाम पर खेल
बहुत से मामले ऐसे भी सामने आए जब रेमडेसिविर के इंजेक्शन में ग्लूकोज भर दिया गया और उसे लोगों को बेच दिया गया। पिछले साल अप्रैल महीने के दूसरे पखवाड़े में देश में कोरोना संक्रमण अपने पीक पर था और उस समय पूरा सोशल मीडिया रेमडेसिविर और प्लाज्मा की मांग करने में जुटा था।

दवा नहीं मिल पाने का मलाल

कोरोना संक्रमण से जिन लोगों की मौत हो गई उन्हें इस बात का जीवन भर मलाल रहेगा कि अगर उन्हें समय पर रेमडेसिविर मिल जाती तो शायद उनके परिजन बच जाते। अब एक चौंकाने वाली जानकारी यह आई है कि रेमडेसिविर वास्तव में जीवन रक्षक दवा नहीं थी।

फायदे का कोई साक्ष्य नहीं
भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इसके इस्तेमाल को भी कम करने के निर्देश दिए हैं। अब यह दवा सिर्फ उन कोरोना मरीजों को दी जा सकती है जिन्हें ऑक्सीजन दी जा रही है। जो मरीज वेंटिलेटर या एक्मो पर है उन्हें भी रेमडेसिविर दवा नहीं दी जाती। दुनिया भर के डॉक्टर और सरकारों ने दवा के इस्तेमाल को सीमित कर दिया है। ताजा दिशानिर्देश से साफ होता है कि पांच दिन से ज्यादा इस दवा के इस्तेमाल से मरीजों को फायदा होने के साक्ष्य नहीं मिलते।

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