अस्पताल और स्कूल बना कर रामराज्य लाने वाले, मूर्ति बनवा रहे हैं

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सुनने में आ रहा है कि अयोध्या में सरयू के किनारे भगवान राम की दुनियां की सबसे बड़ी मूर्ति लगने वाली है। यूपी के प्रमुख सचिव पर्यटन अवनीश अवस्थी ने मीडिया से कहा ‘ अयोध्या को विश्व पर्यटन मानचित्र पर लाने की योजना है। इसके लिए सरकार में बहुत सारी योजनाएं बनाई हैं। मुख्यमंत्री छोटी दिवाली के दिन अयोध्या में खुद उन सभी योजनाओं की घोषणा करेंगे।’ अब मूर्ति बनाने की योजना तो अघोषित रूप से जनता के बीच में है। बाकी क्या योजनाएं हैं उसके लिए तो आपको छोटी दिवाली का ही इंतजार करना होगा।

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सुनने में आया है कि उस दिन बिल्कुल उसी तरह का माहौल तैयार किया जाएगा जैसे त्रेतायुग में भगवान राम अपना वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे। बकायदा झांकी निकाली जाएगी और दीपक जलाए जाएंगे।

इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन सवाल ये है कि भाजपा ने यूपी में रामराज्य का वादा किया था, जिसका अर्थ है लोगों की सुख-समृद्दि, लेकिन हमें नहीं लगता है कि सरकार इस ओर अपने वादे के मुताबिक बढ़ रही है। अयोध्या में मूर्ति लगाने से गरीब, किसान, मजदूर, भूखे, बेरोजगारों और तमाम जरूरत मंदों का भला नहीं होने वाला है। मूर्ति लगाने में कोई बुराई नहीं है लेकिन ऐसे समय में जब जनता ने बदलाव के लिए सत्ता परिवर्तन किया है, केवल मंदिर, मूर्ति और ताजमहल जैसे मुद्दों को हवा देना कहां तक ठीक है।

वादा किया गया था अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, शांति और समानता का माहौल बनाने का और लोगों ने इसी आशा के साथ मतदान भी किया था। लेकिन यहां तो बदलाव की दिशा और दशा दोनों बदल गई है। सरकार मतवाले हाथी की तरह जनता के हितों का परवाह किए बिना ही गलत दिशा में बढ़ रही है।

अस्पताल में बच्चे मर रहे हैं, शिक्षा का धंधा खुलेआम फल-फूल रहा है, किसानों-मजदूरों का बुरा हाल है पर सरकार है कि मूर्ति बनाने को ही रामराज्य समझ रही है। लेकिन शायद योगी जी ये भूल गए हैं कि ये जो रामराज्य है इसमें पांच साल बाद फिर से चुनाव होता है, जिसमें जनता मतदान करती है और मतदान का आधार धर्म नहीं बल्कि विकास होता है।

धार्मिक रूप से भी देखें तो भगवान की मूर्ति से ज्यादा जरूरी है। बेरोजगारों को रोजगार, भूखों को रोटी, बीमारों दवा और इलाज की। जैसा कि धार्मिक किताबों में ही कहा गया है मानव सेवा ही धर्म है।

कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरहिं पारा। ऐसा रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसी दास जी ने कहा है, अगर भक्तों का कल्याण केवल नाम लेने से होता है, तो मूर्तियों की जरूरत ही क्या है? वैसे भी आजकल ना तो मूर्तियों से कल्याण हो रहा है और ना नाम से। अब ये मत कहिएगा कि भक्त सच्चे मन से भगवान का नाम नहीं लेते इसलिए उन्हें दुख उठाना पड़ता है। साहब भूखे पेट मन और दिल सच्चा कहां हो पाता है। वो बचपन में हमने एक भजन सुनी थी, भूखे भजन ना हो हीं गोपाला ले लो आपन कंठी माला। तो योगी जी भूख बड़ी चीज होती है। हां शायद आपने ये भजन सुनी नहीं है।