Rajmata Vijayaraje Scindia: साधारण परिवार में जन्मीं लेखा का राजमाता सिंधिया बनने तक का सफर… | Rajmata Vijayaraje Scindia : The journey of ‘Lekha’ to become Rajmata | Patrika News

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Rajmata Vijayaraje Scindia: साधारण परिवार में जन्मीं लेखा का राजमाता सिंधिया बनने तक का सफर… | Rajmata Vijayaraje Scindia : The journey of ‘Lekha’ to become Rajmata | Patrika News

Rajmata Vijayaraje Scindia: साधारण परिवार में जन्मीं लेखा का राजमाता सिंधिया बनने तक का सफर… | Rajmata Vijayaraje Scindia : The journey of ‘Lekha’ to become Rajmata | Patrika News

आज राजमाता की पुण्यतिथि के अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं उनकी जिंदगी के कुछ ऐसे किस्से जो उन्हें नारीशक्ति का रूप, तपस्या और त्याग की प्रतिमूर्ति बनाते हैं। आप भी जानिए एक साधारण परिवार में जन्मीं विजयाराजे सिंधिया का राजमाता विजयाराजे सिंधिया बनने तक का सफर…

राजमाता का असली नाम था लेखा
सागर जिले में 12 अक्टूबर 1919 में राणा परिवार में जन्मीं विजयाराजे के पिता का नाम महेन्द्र सिंह ठाकुर था। उनके पिता जालौन जिले के डिप्टी कलेक्टर हुआ करते थे। उनकी मां विंदेश्वरी देवी उन्हें बचपन से ही लेखा दिव्येश्वरी कहकर बुलाती थीं। हिन्दू पंचांग के मुताबिक विजयाराजे का जन्म करवाचौथ को मनाया जाता है। इस हिसाब से उनका जन्म दिन कल यानी 13 अक्टूबर गुरुवार को है।

ऐसे शुरू हुई लेखा की लवस्टोरी
सागर के नेपाल हाउस में पली-बढ़ी राजपूत लड़की लेखा दिव्येश्वरी की महाराजा जीवाजी राव से मुलाकात मुंबई के होटल ताज में हुई थी। महाराजा को लेखा पहली ही नजर में भा गई थीं। उन्होंने लेखा से राजकुमारी संबोधन के साथ बात की। इस दौरान जीवाजी राव चुपचाप सब बातें सुनते रहे और लेखा की सुंदरता व बुद्धिमत्ता पर मुग्ध होते रहे।

परिवार के साथ समुद्र महल पहुंची लेखा
महाराजा जीवाजी राव ने अगले दिन लेखा को परिवार समेत मुंबई में सिंधिया परिवार के समुंदर महल में आमंत्रित किया। समुंदर महल में लेखा को महारानी की तरह परंपरागत मुजरे के साथ सम्मानित किया गया, तो कुंजर मामा समझ गए कि उनकी लेखा 21 तोपों की सलामी के हकदार महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की महारानी बनने वाली है।

शादी के ऐलान के बाद उभरा विरोध
कुछ दिनों बाद महाराजा ने अपनी पसंद व शादी का प्रस्ताव लेखा के मौसा चंदन सिंह के जरिए नेपाल हाउस भिजवा दिया। बाद में उन्होंने शादी का ऐलान कर दिया। इस शादी का सिंधिया परिवार और मराठा सरदारों ने विरोध किया था। शादी के बाद महाराजा जीवाजी राव जब अपनी महारानी को लेकर मौसा-मौसी सरदार आंग्रे से मिलवाने मुंबई ले गए, तो वहां भी उन्हें विरोध झेलना पड़ा। हालांकि, बाद में विजया राजे सिंधिया बनीं लेखा ने अपने व्यवहार और समर्पण से सिंधिया परिवार व मराठा सरदारों का विश्वास व सम्मान जीत लिया था।

आठ बार रही सांसद
ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से उनका विवाह 21 फरवरी 1941 को हुआ था। पति के निधन के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुई थीं और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना से सांसद रहीं।

25 जनवरी 2001 में उन्होंने अंतिम सांस लीं
25 जनवरी 2001 को राजमाता विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया था। लेकिन, उनकी एक वसीयत के आगे राजपरिवार भी असमंजस में था। उनके अंतिम संस्कार का वक्त आया, हर कोई असमंजस में था कि क्या राजमाता के इकलौते बेटे माधवराव सिंधिया राजमाता का अंतिम संस्कार कर पाएंगे, लेकिन वसीयत से अलग ही था यह भाव, एक बेटे ने ही शिद्दत के साथ अपनी मां का अंतिम संस्कार किया।

ऐसा क्यों लिखा था वसीयत में
राजमाता अपने इकलौते बेटे माधवराव सिंधिया से क्यों इतनी नाराज हो गई ती कि उन्होंने 1985 में अपने हाथ से लिखी वसीयत में कह दिया था कि मेरा बेटा माधव मेरे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होगा। हालांकि 2001 में जब राजमाता के निधन के बाद माधवराव ने ही मुखाग्नि दी थी। इसके बाद कुछ माह बाद ही 30 सितम्बर 2001 को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में हेलीकाप्टर दुर्घटना में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई थी।

अपने ही बेटे से मांगा था महल का किराया
राजमाता पहले कांग्रेस में थीं, लेकिन इंदिरा गांधी ने जब राजघरानों को ही खत्म कर दिया और संपत्तियों को सरकारी घोषित कर दिया तो, उनकी इंदिरा से ठन गई थी। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हो गई। उनके बेटे माधवराव भी उस समय जनसंघ में शामिल हो गए, वक्तबीतता गया और माधवराव कुछ समय बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। इससे राजमाता बेहद नाराज हो गई थीं। राजमाता ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें लाठियों से पीटा था। उन्होंने अपने बेटे पर गिरफ्तार करवाने का आरोप लगाया था। दोनों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढऩे लगी और पारिवारिक रिश्ते खत्म होने लग गए थे। इसी के चलते राजमाता ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहने के लिए अपने ही बेटे माधवराव से किराया भी मांगा था। हालांकि यह किराया एक रुपए प्रतिकात्मक रूप से मांगा गया था।

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बेटियों को दे दी जायदाद
2001 में विजयाराजे के निधन के बाद उनकी वसीयत के हिसाब से उन्होंने अपनी बेटियों को काफी जेवरात और अन्य बेशकीमती वस्तुएं दी थीं। अपने बेटे से इतनी नाराजगी थी कि उन्होंने अपने राजनीतिक सलाहकार और बेहद विश्वसनीय संभाजीराव आंग्रे को विजयाराजे सिंधिया ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया था, लेकिन बेटे को बेहद कम दौलत दी। हालांकि राजमाता की दो वसीयतें सामने आने का मामला भी कोर्ट में चल रहा है। यह वसीयत 1985 और 1999 में आई थी।



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