Pushpa की वाहवाही तो खूब सुनी, पर इन 5 गलतियों को देखकर भी नहीं देख सके आप!

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Pushpa की वाहवाही तो खूब सुनी, पर इन 5 गलतियों को देखकर भी नहीं देख सके आप!

अल्लू अर्जुन (Allu Arjun) की फिल्म ‘पुष्पाः द राइज’ (Pushpa: The Rise) बॉक्स ऑफिस पर लगातार धमाल मचा रही है। अब प्राइम वीडियो पर भी इसका हिंदी वर्जन भी रिलीज हो चुका है। घर बैठे आराम से इसे देखा जा सकता है। इस सुविधा का लुफ्त उठाते हुए हमने भी देखा। क्योंकि कोरोना की वजह से इसे थिएटर में तो देखने जा न सके। खैर, 175 मिनट यानी 2 घंटे 55 मिनट और 5 सेकेंड की इस फिल्म को देखने जितने जोश के साथ बैठे, खत्म होते-होते उतनी ही मायुसी हाथ लगी। दरअसल, इस फिल्म को देखते वक्त कई दफे लगा कि हम अल्लू अर्जुन की पुष्पा नहीं, बल्कि यश की KGF Chapter 1 देख रहे। मतलब कुछ नया नहीं। विलेन भी अच्छे नहीं लगे। ट्विस्ट भी कई दफे फीके लगे। हालांकि आपने इस फिल्म की खूब तारीफें सुनी होगी, देखकर खुद भी वाहवाही की होगी। पर कुछ बातों पर गौर नहीं किया होगा जो फिल्म में बहुत अटपटा सा है।

रॉकी की कहानी पुष्पा से मेल खाती है!
KGF चैप्टर 1 की कहानी सोने खदान के इर्द-गिर्द घूमती है और पुष्पा में लाल चंदन की स्मगलिंग के। KGF चैप्टर 1 में रॉकी के पिता नहीं होते। वह अनाथ होता है। और पुष्पा के भी ऐसा ही देखने को मिलता है। मतलब दोनों को नाजायज दिखाया गया है। दोनों ही गरीब होते हैं। दोनों की मां अपने-अपने तरीके से उनका पेट पालती हैं। दोनों पैसा कमाने के लिए और बड़ा आदमी के लिए अपने इलाके के बड़े-बड़े गुंडे और डॉन के यहां काम करते हैं। किसी से सामने वह झुकते नहीं हैं। मतलब अपने तरीके से काम करते हैं। दोनों ही अपने-अपने बॉस पर अपना पक्का विश्वास जमा देते हैं और पूरे धंधे पर काबू पा लेते हैं। कहानी खत्म होते-होते वह सबके लिए खतरा भी बन जाते हैं। लोग उनकी जी हजूरी करने लग जाते हैं। अब ऐसे में पुष्पा में लोगों को क्या खास लगा, समझ नहीं आता। क्योंकि जो हम दूसरी फिल्मों में देख चुके हैं, वही इस फिल्म में थोड़ा और सजाकर परोसा गया है।

इमशोनल फैक्टर के नाम पर औंधे मुंह गिरे
फिल्म में पुष्पा पर नाजायज होने का ठप्पा लगा था और इस बात को फिल्म में बार-बार इस्तेमाल भी किया गया। पहले स्कूल के समय पर दिखाया गया कि कैसे उसको सरनेम के लिए बेइज्जत किया गया था। फिर जब तस्करी में आया तो पुलिस उसकी इसी बात से हिम्मत तोड़ती नजर आई। मतलब फिल्म में दर्शकों को कनेक्ट करने के लिए डायरेक्टर के लिए कोई दूसरा टॉपिक नहीं था शायद। इसीलिए उन्होंने इसे जगह-जगह डाला। हालांकि ये इतना ज्यादा टची वाला सीन लगा नहीं क्योंकि नाजायज होने वाला कॉन्सेप्ट हमने कई फिल्मों में देखा है। फील भी किया है लेकिन पुष्पा में इस कॉन्सेप्ट के साथ जैसे जस्टिस ही नहीं हुआ। पुष्पा ने फिल्म में ऐक्शन तो भरपूर किया लेकिन इमोशनल सीन करने में चूंक गए। जैसे किसी फिल्म के इमोशनल सीन को देख लोग रोने लग जाते हैं वैसा इसे देखकर फील नहीं हुआ।


लड़की को गलत तरह से प्रोट्रे किया गया
पुष्पा को श्रीवल्ली को पहली नजर में ही पसंद आती है। ऐसा हर फिल्म में होता है। उसे देखने के लिए वह दीवानों की तरह उसके आस-पास से गुजरता है। लेकिन वह उसे देखती तक नहीं है। ऐसा भी अमूमन कई फिल्मों में दिखाया गया है। आपने भी देखा है। लेकिन पैसे देकर लड़की को हंसाना कहां तक सही है। दरअसल, दोस्त को खुश करने के लिए केशव को कुछ करना था। उसने श्रीवल्ली और उसकी दोस्तों को फिल्म देखने के 1000 रुपये दे दिए और शर्त रखी कि इसके बदले वह पुष्पा को देखेगी और हंसेगी। अब पैसा लिया है तो करना पड़ेगा वाली बात हो गई थी। श्रीवल्ली ने अपना वादा पूरा किया। इसके बाद पुष्पा ने 5000 रुपये देकर उसे किस करने के लिए कहा। श्रीवल्ली इस पर भी तैयार हो गई। हालांकि वह किस करती नहीं है। घबरा कर वापस आ जाती है। इन दोनों सीन के बाद आप ये सोचिए कि आज के समय में ऐसा कहां होता है कि एक साधारण घर की लड़की किसी अजनबी को पैसे लेकर देखती है, हंसती और किस तक करने तक को रेडी हो जाती है। वो भी तक जब कोई दबाव न हो कि अगर ऐसा नहीं किया तो ये हो जाएगा, वो हो जाएगा।

मतलब श्रीवल्ली को भी तो धाकड़ दिखाया जा सकता था। हाथा पाई न सही, मुंहफट तो हो सकती थी। अपनी बात को अकड़कर दूसरे के सामने रख सकती थी। फिल्म की शुरुआत में वह बहुत सिरफिरे काम करती हुई दिखाई गई। दोस्तों को बिठाकर मोटरसाइकिल चलाती दिखाई गई। लेकिन डायरेक्टर पैसों के लिए श्रीवल्ली को ऐसा करते हुए दिखाकर फिल्म में कौन-सा रोमैंटिग और कॉमेडी ऐंगल निकाल रहे थे, पता नहीं।

विलेन का धमाका हुआ फुस्सड़
पुष्पा में जॉली रेड्डी, जक्का रेड्डी और कोंडा रेड्डी तीन मुख्य विलेन दिखाई दिए थे। जिस तरह से इनका परिचय दिया गया, सुनकर लगा कि बहुत खतरनाक होंगे। लेकिन तीनों ही फुस्स निकले। पहले बात करते हैं जॉली की। यह सबसे छोटा भाई था। इसे अय्याश और लड़कीबाज दिखाया गया। बात-बात पर चीखते-चिल्लाते फिल्म में नजर तो आया लेकिन कभी फील नहीं हुआ कि यह विलेन है। अंत में पुष्पा ने हाथ-पैर तोड़कर ही बैठा दिया। तो इसका किस्सा खत्म हुआ। फिर नंबर आया बीच वाले भाई जक्का रेड्डी का। इसे सबसे दिमागदार बताया गया। कहा गया कि सारे माल का हिसाब-किताब यही रखता था। अब कहां रखता था, कैसे रखता था, ये तो पता नहीं। क्योंकि यह फिल्म में कभी देखने को ही नहीं मिला। हमेशा बैकफुट पर ही नजर आया। इसकी बुद्धिमानी पूरी फिल्म में खोजते रह गए, लेकिन हाथ कुछ लगा नहीं। उल्टा लास्ट में पुष्पा का बॉडीगार्ड ही बन गया। अब आते हैं बड़े भाई कोंडा रेड्डी पर। इसे सबसे खतरनाक बताया गया था। फिल्म में कुछ हद तक यह दिखा भी। अपनी शक्ल और हावभाव से यह विलेन वाला फील तो देता लेकिन दर्शक होने के नाते डर नहीं लगा। हां एक और विलेन था श्रीनू। लोगों को जिंदा जमीन में दफना देना और बेरहमी से मारना, इसके विलेन होने का सबूत था। इसी के दम पर वह लोगों को डराता रहता लेकिन यह हेकड़ी भी पुष्पा निकाल देता है। कुल मिलाकर इस फिल्म के विलेन को देखकर मजा नहीं आया। क्योंकि विलेन भले फिल्म की अंत में मारा जाए, लेकिन पूरी फिल्म में वह हीरो के टक्कर का ही होना चाहिए। जो कि पुष्पा में देखने को नहीं मिलता।


फहाद फासिल ने ही डुबो दी नइया
फिल्म इंटरवेल तक अपने एक ट्रैक पर चल रही थी। पुष्पा धीरे-धीरे धंधे में अपना कमाल दिखा रहा था। विलेन अब जैसे भी थे, फिल्म की नइया पार लगा रहे थे। लेकिन जैसे ही फहाद फासिल की एंट्री हुई, कहानी एकदम डामाडोलो हो गई। जैसे कुछ सेकेंड के लिए भूकंप आ जाए और सब चीजें तहस नहस हो जाए। ठीक वैसे ही थी भंवर सिंह शेखावत की एंट्री। मतलब कहानी में ट्विस्ट लाने का तड़का कतई पसंद नहीं आया। माना उसका आना पार्ट-2 को जोड़ना था। लेकिन एक कड़ी तो होनी चाहिए न। कि कहीं से भी कुछ भी लाकर खड़ा कर दो। भंवर को मस्त भौकाल के साथ सीन में लाया जाता है। फील कराया जाता है कि इसके आने से वक्त, हालात- जज्बात सब बदल जाएंगे। लेकिन होता इसका उलटा है। कहानी में उनको घुलाने-मिलाने के लिए पहले तो पुष्पा के खिलाफ दिखाया गया। फिर पक्का दोस्त बना दिया गया और जब सारे स्मगलर्स पुष्पा के साथ हो गए तो भंवर सिंह को पुष्पा का दुश्मन बना दिया गया। मतलब समझ ही नहीं आया कि जब दुश्मनी ही करानी थी दोनों की तो वह तो शुरू से ही कराते। बीच में यह सब ड्रामा करने की क्या जरूरत थी। माना कि फहाद फासिल अच्छे कलाकार हैं। लेकिन रोल पर भी डिपेंड करता है कि वह जिसे निभा रहे हैं, वह कहना क्या चाहता है। पार्ट 2 को जोड़ने के लिए सिर्फ फहाद फासिल को अंत में जोड़ा गया है या फिर उनका भी कोई बैकग्राउंड दिखाया जाना है। इसकी जानकारी तो नहीं। लेकिन फिल्म का एंड बहुत ही बेकार लगा। ठीक वैसे ही जैसे पीलत पर सोने का पानी चढ़ा हो। शुरू में तो सब चमकदार और अंत में सब बेकार।

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