Prabodhankar Thackeray: कौन हैं बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे, क्या है उनकी विचारधारा, जिसका शरद पवार ने किया जिक्र

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Prabodhankar Thackeray: कौन हैं बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे, क्या है उनकी विचारधारा, जिसका शरद पवार ने किया जिक्र

Prabodhankar Thackeray: कौन हैं बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे, क्या है उनकी विचारधारा, जिसका शरद पवार ने किया जिक्र

मुंबई: महाराष्ट्र(Maharashtra) की सियासत में ठाकरे परिवार का अपना अहम वजूद है। यहां लोग मुख्यमंत्री के सरकारी आवास यानी वर्षा बंगले को उतना नहीं जानते होंगे। जितना ठाकरे परिवार(Thackeray Family) के गढ़ मातोश्री के बारे में जानते हैं। महाराष्ट्र की सियासत के सबसे शक्तिशाली घरानों में से एक ठाकरे परिवार ने राजनीति का सफर एक चॉल से शुरू किया था। यह बात बहुत कम लोगों को ही मालूम होगी। बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे(Prabodhankar Thackeray) कभी दादर की मिरांडा चॉल में परिवार सहित रहा करते थे। यह चॉल 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है। यह बात उन्होंने अपनी जीवनी ‘माझी जीवनगाथा’ में लिखी थी। उनकी जीवनी में बताया गया है कि मिरांडा चॉल ग्राउंड प्लस 2 का स्ट्रक्चर थी। पहले यह लकड़ी की हुआ करती थी जिसे बाद में लोहे का कर दिया गया था। चॉल में 10×10 के कमरे होते थे। घरों के अंदर एक कमरा और रसोईघर होता था। हालांकि बाथरूम (गुसलखाना) सभी परिवारों के लिए एक ही होता था। इस चॉल में हर फ्लोर पर एक बाथरूम है।

प्रबोधनकार ठाकरे का जन्म
प्रबोधनकर केशव सीताराम ठाकरे वैसे तो किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। हालांकि लोग उन्हें एक समाज सुधारक और प्रभावी लेखक के रूप में जानते हैं। लोग उन्हें एक नेता, लेखक, पत्रकार, संपादक, प्रकाशक, वक्ता और धर्म सुधारक जैसे रूपों में भी जानते हैं। उनका जन्म 17 सितंबर 1885 को महाराष्ट्र के पनवेल में हुआ था। शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे उनके पुत्र थे। प्रबोधनकार अपने जमाने के बड़े सोशल रिफॉर्मिस्ट माने जाते थे। वो मराठी नाटक भी लिखा करते थे। हालांकि परिवार के पालन पोषण के लिए जरूरी कमाई इस पेशे से पूरी नहीं हो पाती थी। इसलिए वो देर रात जाकर अलग-अलग टाइपिंग वाले काम भी किया करते थे। टाइपिंग का काम इतना ज्यादा था की उसका असर उनकी आंखों पर पड़ने लगा था।

साउथ इंडियन लड़ाई की वजह
प्रबोधनकार की जीवनी पर नजर डालें तो उसमें यह कहा गया है कि जिस मिरांडा चाल में वो रहते थे। उसमें ज्यादातर मलयाली और तमिल लोग रहते थे। अक्सर नहाने के दौरान ठाकरे परिवार और दक्षिण भारतीय परिवार की लड़ाई हो जाती थी। इस झगड़े की वजह यह थी कि दक्षिण भारतीय लोग अक्सर नहाने के पहले शरीर पर तेल लगाते हैं और फिर नहाने जाते हैं। ठाकरे परिवार को यह लगता है कि तेल लगाकर नहाने के बाद बाकी जो लोग नहाने जाएंगे वह फिसल कर किसी हादसे के शिकार न हो जाएं। हालांकि दक्षिण भारतीय परिवारों उनकी बातों को नजरअंदाज किया और कहा करता था कि यह हमारी परंपरा है।

दक्षिण भारतीयों के खिलाफ यूं शुरू हुई नफरत?
प्रबोधनकार ठाकरे ने जब देखा कि दक्षिण भारतीय परिवार उनकी बातों को अनसुना कर रहे हैं। तब उन्होंने, उन्हें सबक सिखाने के लिए अपने घर के आगे कुछ मीट के टुकड़े रखना शुरू कर दिए। इस बात से नाराज शाकाहारी पड़ोसियों ने जब एतराज जताया। तब ठाकरे परिवार की तरफ से कहा गया कि यह हमारा रिवाज है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि शायद इसी बात से उनके मन में दक्षिण भारतीयों के खिलाफ नफरत के बीज पनपे थे। साठ के दशक में शिवसेना के गठन के बाद बाल ठाकरे ने दक्षिण भारतीयों के खिलाफ बजाओ पुंगी उठाओ लुंगी का नारा दिया था।

प्रबोधनकार ने शिवसेना नाम दिया था
शिवसेना की पहली रैली में शिवाजी पार्क पूरी तरह से खचाखच भर गया था। साल 1966 में 19 जून की सुबह तकरीबन 9:30 बजे एक नारियल फोड़कर और कुल 18 लोगों की मौजूदगी में शिवसेना का निर्माण किया गया था। बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे ने पार्टी को शिवसेना नाम दिया था। बाल ठाकरे ने पार्टी की स्थापना के बाद शिवाजी पार्क में दशहरा रैली का आयोजन करने का फैसला किया था। उस समय कई लोगों ने उनसे कहा था कि किसी छोटे मैदान में यह रैली करनी चाहिए ताकि कम लोग होने पर भी मैदान भरा लगे। लेकिन जब यह रैली हुई तब इतनी इतनी तादाद में लोग आए कि शिवाजी मैदान ही छोटा पड़ गया।

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प्रबोधनकार की विचारधारा
प्रबोधनकार ने रैशनलिज्म और श्रद्धा के बीच में जो संतुलन साधा और सवाल उठाए थे। उनको समझने वालों का एक बड़ा तबका था। उन्होंने सवाल उठाया था कि ‘मंदिर का धर्म होना चाहिए या धर्म का मंदिर’। इस प्रकार के संतुलन को साधने का प्रभाव उन्हें बाल जीवन में ही मिल चुका था। उन्होंने श्रद्धा की खाल जरूर खींची लेकिन कभी भी श्रद्धाविहीन भी नहीं हुए। उन्होंने जीवन भर जातपात और दहेज प्रथा का विरोध किया। उन्हें यह प्रेरणा उनकी दादी से मिली थी।

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अश्पृश्यता का के खिलाफ लड़ाई
प्रबोधनकार ठाकरे की जाति सीकेपी यानी चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु। बचपन में जब उन्होंने किसी ब्राह्मण सहपाठी से पीने के लिए पानी मांगा तो वह तपेले से पानी ले आता था और चौखट के नीचे खड़ा रहकर अंजुली से पानी पिलाता था। मित्र की मां तपेली को बिना धुले हुए घर के अंदर नहीं ले जाने देती थी। शुरुआत में प्रबोधनकार को यह बात समझ में नहीं आई लेकिन जब उन्हें यह समझ में आया तो उन्होंने इस अस्पृश्यता का मजाक बनाना शुरू कर दिया और यह सिलसिला उन्हें जीवनभर जारी रखा।

ऐसा ही एक वाकया तब पेश आया जब पिता की कचहरी वाली मंडली में एक ब्राह्मण बेलिफ के घर पर धुनधुरमास के निमित्त प्रातः भोजन का कार्यक्रम रखा गया था। तब पिता के साथ केशव भी वहां गए थे। उस समय ब्रह्मणों की एक पंगत थी और दूसरी पंगत थी इन दोनों पिता पुत्र की। भालेराव नाम का तीसरा कारकून तीसरी पंगत में बैठा था। खाना परोसने वाली महिलाएं भोजन ऊपर से डाल रही थी। भोजन होने के बाद पिता दोनों बर्तन स्वयं साफ करने के लगे। इस बात पर प्रबोधनकार काफी नाराज हुए। उन्होंने कहा कि अगर ब्राह्मण हमसे अलग तरीके से पेश आते हैं। तो हम इन्हें आदर और सम्मान क्यों दें? उनके यह तेवर महज 8 साल की उम्र में थे।

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