एक के बाद एक तमाम सहयोगी पार्टी छोड़ती जा रही है साथ, 2019 के लिए कमजोर पड़े मोदी-शाह

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नई दिल्ली: सरकार बनाने के लिए जहां एक तरफ वोटों की ताकत की सबसे ज्यादा जरूरत होती है वहीं एक और दूसरी शक्ति है जिसके बिना चुनाव में जीत पाना मुश्किल होता है. वो है दलों का सहयोग. इनके बिना कोई भी पार्टी सत्ता में अपना वर्जस्व साबित नहीं कर सकती है. सत्ता के शिकार तक पहुंचने के लिए बेहद निर्णायक साबित होता है. यही वजह है कि चुनाव के समय में गठबंधन दलों में आपसी नाराजगी इत्यादि चीजे देखने को मिलती ही रहती है. अब जैसे-जैसे आगामी चुनाव समीप आते नजर आ रहें है, वैसे-वैसे अपनों की नाराजगी सामने आना भी लाजिमी है. ऐसे में सत्ता में पार्टी के संग आने के लिए किसी ने दामन छोड़ दिया है तो कोई अपनी पार्टी के साथ कदम से कदम बढ़ा रही है.

मोदी सरकार ने  2014 लोकसभा चुनाव में अधिक बहुमत से जीत दर्ज की थी

मोदी सरकार ने अपना दबदबा 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान बनाया था. बीजेपी ने इतिहास रचते हुए 282 सीटों पर जीत हासिल की थी. ऐसा पहली बार हुआ था जब भारतीय जनता पार्टी ने इतने अधिक बहुमत से जीत दर्ज की थी. साल 2014 में 26 मई को एनडीए की सरकार बनी और नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की कमान संभाली. उनकी सहयोगी पार्टी एनडीए शिवसेना और टीडीपी समेत बाकी दलों के नेताओं ने भी शपथ ली. पर 2019 के चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे है टीडीपी और शिवसेना के बीच नाराजगी साफ दिखाई दे रही है.

बीजेपी की करीबी महाराष्ट्र की शिवसेना ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया 

वहीं मोदी सरकार को आए दिन जहां एक तरफ उनके मंत्री छोड़ते जा रहें है वहीं बीजेपी की करीबी कही जाने वाली महाराष्ट्र की शिवसेना भी भाजपा से नाराज दिखाई दे रही है. बता दें कि बीजेपी और शिवसेना दोनों मिलकर महाराष्ट्र सरकार चला रही है. लेकिन जब मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था तब शिवसेना ने भाजपा पार्टी का कड़ा विरोध किया था. दोनों दलों के बीच अक्सर खींचतान की बयानबाजी सामने आती रही है. हालांकि, अब शिवसेना ने भी खुले तौर पर भाजपा के साथ न चुनाव लड़ने की घोषणा की है. आपको बता दें कि कुछ समय पहले ही बीजेपी को चार साल हुए थे उस दौरान बीजेपी के प्रमुख अमित शाह मुंबई जाकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात भी की, पर शिवसेना के तेवर अभी तक कड़वाहट भरे नजर आ रहे है.

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साल 2014 लोकसभा चुनाव के बाद जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हुए थे, उस दौरान भी भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था. सबसे बड़ी पार्टी बनाकर उस समय उभरी बीजेपी का साथ शिवसेना सरकार ने ही दिया था. वहीं अगर इस बार शिवसेना, बीजेपी का साथ नहीं देती है तो आने वाले चुनाव में भाजपा को काफी नुकसान हो सकता है.

जेडीयू और भाजपा में सीटों को लेकर तनाव

वहीं कुछ दिनों से बिहार में भी बीजेपी और जेडीयू में किरकरी सी नजर आ रही है. बिहार में जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने जहां आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन तोड़कर बीजेपी का साथ हाथ मिलाया है. लेकिन लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टियों के बीच अब तक कुछ भी सही नहीं चल रहा है. सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों पार्टी काफी सुर्ख़ियों में है दोनों दलों के नेताओं के बीच आपसी सहमती नहीं बन पर रही है. जानकारी के अनुसार, जहां भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता चुनाव अलग लड़ने की कोशिश को बल दे रहे है वहीं जेडीयू ने साफ कर दिया है कि बीजेपी चाहे तो अकेले सभी 40 सीटों में लड़ सकती है.

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दोनों दलों के बीच सीटों को लेकर हो रहे बयानबाजी की वजह है कि बीजेपी 2014 के फॉर्मूले पर सीटों का बंटवारा चाहती है. क्योंकि उस दौरान भाजपा ने 40 में से 22 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं बीजेपी के इस तरीके से जेडीयू सहमत नहीं है. वह कहा रही है कि 2019 के लोकसभा चुनाव को 2014 न समझा जाये. जेडीयू एक तरफ 25 सीटों की मांग को लेकर आड़ी है वहीं बीजेपी 22 सीटों से कम पर लड़ने को राजी नहीं है.

टीडीपी ने किया किनारा

साल 2014 में बीजेपी पार्टी के साथ हाथ मिलकर सरकार बनाने वाली आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए से अलग होने का फैसला किया है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर मोदी सरकार द्वारा मांग न मिलने के आरोप लगते हुए मार्च 2018 में टीडीपी ने भाजपा से किनारा कर लिया है. वहीं टीडीपी के कोटे से भी आंध्रप्रदेश के दोनों मंत्रियों ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है. बता दें कि टीडीपी एक मजबूत दल साबित होता है क्योंकि साल 2014 में पार्टी ने 30 चुनाव लड़कर 16 पर जीत हासिल की थी.