Missing Girls: ना प्यार, ना पैसा, ना आज़ादी… सचाई भी तो समझिए इन ‘मिसिंग गर्ल्स’ की

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Missing Girls: ना प्यार, ना पैसा, ना आज़ादी… सचाई भी तो समझिए इन ‘मिसिंग गर्ल्स’ की

Missing Girls: ना प्यार, ना पैसा, ना आज़ादी… सचाई भी तो समझिए इन ‘मिसिंग गर्ल्स’ की

नई दिल्ली: ईस्ट दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल से अगस्त 2018 में 14 साल की एक बच्ची अचानक गायब हो गई। आज तक उसका मजदूर परिवार उसके इंतजार में है। उसकी मां कहती हैं, मैं अस्पताल में पर्ची की लाइन में लगी थी, उसे एक रिश्तेदार महिला के साथ बैठाया था। बहुत ढूंढने के बाद 100 नंबर पर कॉल किया। पुलिस पहुंची, मगर वह नहीं मिली।

पीड़ित मां ने बताया कि तीन दिन एफआईआर नहीं की गई, पुलिसवाले 15 अगस्त की तैयारी में बिजी थे। केस दर्ज होने के बाद अस्पताल का सीसीटीवी फुटेज देखा गया, जिसमें बच्ची बाहर जाते हुए दिखी। मगर क्यों गई, किसके साथ गई, कुछ भी साफ नहीं हुआ। उसके कुछ दिन बाद किसी ने बताया कि बच्ची एक हमउम्र लड़के के साथ एक गली में देखी गई, जो उसे एक किन्नर के पास ले गया था। मां कहती हैं, पुलिस अगर उसी वक्त जाकर देखती तो मेरी बच्ची मेरे पास होती। मामला क्राइम ब्रांच में गया, फिर हाई कोर्ट। मायूस मां कहती हैं, आज वो 19 साल की होगी, मगर कहां… ये नहीं पता। पांच साल से रोज याद आती है…। कुछ कर ही नहीं सकती।

अपनी बच्ची को खोने के गम में डूबे परिवारों की ऐसी कई कहानियां पुलिस की फाइलों में दबी हुई हैं। आखिर क्यों लापता होती हैं या क्यों भागती हैं लड़कियां? विशेषज्ञों का कहना है कि बचपन से ही लड़कों से अलग माहौल में लड़कियों को पालना, आर्थिक तंगी, पारिवारिक कलह, धर्म-जाति-क्षेत्रवाद से लेकर बढ़ता क्राइम, तस्करी, साइबर क्राइम समेत कई वजहें इनमें शामिल हैं।

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प्यार, आज़ादी और पैसों की कमी

समाजशास्त्री और दिल्ली यूनिवर्सिटी की सोशियोलॉजी की प्रोफेसर तुलसी पटेल कहती हैं कि लड़कियों के घर-समाज से गायब होने की कई वजहें हैं। पहला, हमारे समाज में अभी भी लड़कियों के प्रति भेदभाव है, यह कई राज्यों का सेक्स रेश्यो भी बताता है। बच्चियों के प्रति उदासीनता, उनका असम्मान एक उम्र में आकर उन्हें एक अच्छी आजाद जिंदगी ढूंढने के लिए धकेलता है। हर वक्त की डांट, मारपीट उन्हें घर छोड़ने के लिए ट्रिगर कर सकती है। ‘एलोपमेंट’ केस भी बहुत हैं। रोमांस या बहला-फुसलाकर ले जाने के मामले इसलिए भी इतने हैं क्योंकि किशोरावस्था में थोड़ा-सा भी प्रेम, केयर उन्हें अपने सपनों की दुनिया की ओर खींचता है। माता-पिता शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, यह उन्हें पता होता है इसलिए भी वे अचानक चली जाती हैं। अगर केस प्रोफाइल देखे जाएं, तो अधिकांश मामले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग या अशिक्षित वर्गों से ताल्लुक रखते हैं।

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सॉफ्ट टारगेट हैं लड़कियां

‘गुमशुदा महिलाओं’ पर काम चुकीं तुलसी पटेल के मुताबिक, दिल्ली में माइग्रेंट्स बहुत हैं और जब बाहर से कोई शहर में आता है, तो वो सॉफ्ट टारगेट भी होता है। बच्चियों की किडनैपिंग के मामले इस फैक्ट से भी जुड़े हैं। तीसरा, दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ क्राइम बहुत ज्यादा है, इसलिए मिसिंग मामलों को सिर्फ ‘एलोपमेंट’ मानना सही नहीं। रेप से लेकर वेश्यावृति करवाने के मकसद से तो लड़कियां अगवा की ही जाती हैं। जिन राज्यों में लड़कियां कम हैं, वहां कई जगह बाकायदा लड़कियों की मंडी तक लगती है।

घर और समाज का दबाव

विशेषज्ञ कहते हैं कि कई मामलों में देखा गया है कि 18 से 25 साल की शादीशुदा लड़कियां भी गायब हो जाती हैं। वजह है पसंद की शादी ना होना, जबरन शादी कराना, एक बंधी हुई जिंदगी। इन चीज़ों से आजादी के लिए वो समाज के लिए गुमशुदा हो जाती हैं। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रंस फाउंडेशन के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर राकेश सेंगर कहते हैं कि ट्रैफिकिंग के केस ट्रैक करते हुए हमने कई मामले देखे हैं कि जो लड़की रेस्क्यू हुई हैं, वो अलग-अलग राज्यों की ‘मिसिंग’ केस हैं, मगर जिन्हें मान लिया गया कि वो किसी लड़के या आदमी के साथ चली गई हैं। कई बार तो पुलिस ट्रेस भी नहीं करती।

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