Maharashtra news: शिवसेना का एकतरफा फैसला था औरंगाबाद का नाम बदलना, सत्ता जाने के 2 हफ्ते बाद उद्धव पर शरद पवार का निशाना

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Maharashtra news: शिवसेना का एकतरफा फैसला था औरंगाबाद का नाम बदलना, सत्ता जाने के 2 हफ्ते बाद उद्धव पर शरद पवार का निशाना

Maharashtra news: शिवसेना का एकतरफा फैसला था औरंगाबाद का नाम बदलना, सत्ता जाने के 2 हफ्ते बाद उद्धव पर शरद पवार का निशाना

मुंबई: एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने के मामले में चुप्पी तोड़ी है। उद्धव ठाकरे के महाराष्ट्र सीएम पद से हटने के दो हफ्ते बाद उन्होंने निशाना साधते हुए कहा कि औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने का फैसला उद्धव ठाकरे का था। कैबिनेट का यह फैसला एकतरफा था। उन्होंने कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि एनसीपी और कांग्रेस इसके लिए राजी नहीं थी। हमने सहमति से एमवीए सरकार का गठन किया था लेकिन उद्धव ने जिलों का नाम बदलने में उन लोगों को दरकिनार किया।

हालांकि, एनसीपी और कांग्रेस के मंत्री दोनों कैबिनेट बैठक का हिस्सा थे। एक एनसीपी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने का प्रस्ताव बिना किसी बहस या चर्चा के चुपचाप पारित कर दिया गया था। कांग्रेस के मंत्रियों में से एक, अशोक चव्हाण ने बैठक के बाद कहा था कि नाम बदलने का कदम कैबिनेट का फैसला था, और सच्चाई यह है कि संभाजी महाराज की हत्या औरंगजेब ने की थी।

‘की जानी चाहिए थी चर्चा’
28 जून को उद्धव ठाकरे की कैबिनेट ने औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदला था। इस फैसले के दो हफ्ते बाद पवार के बयान ने भौंहें चढ़ा दी हैं। अब नाम बदलने पर मतभेद एमवीए घटकों के बीच दरार पैदा कर सकती है। पवार ने मीडियाकर्मियों से कहा, ‘मुझे औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने के फैसले के बारे में तब पता चला जब कैबिनेट ने फैसला किया। मुझे लगता है कि चूंकि यह तीन दलों की सरकार रही है, इसलिए एमवीए के घटकों के बीच इस प्रस्ताव पर चर्चा की जानी चाहिए थी।’

‘राजनीति लाभ के लिए बदला नाम’
प्रस्ताव लाने के उद्धव ठाकरे के कदम को व्यापक रूप से एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के बागी विधायकों को शिवसेना में वापस लाने के अंतिम प्रयास के रूप में देखा गया था। कैबिनेट की बैठक में मौजूद एनसीपी के एक नेता ने कहा कि हमें लगता है कि यह उद्धव ठाकरे का राजनीतिक लाभ हासिल करने का प्रयास था क्योंकि उन्हें पता था कि यह उनकी सरकार का आखिरी दिन है। अगर ठाकरे इतने गंभीर और इच्छुक थे, तो उन्हें बहुत पहले कैबिनेट के सामने प्रस्ताव लाना चाहिए था।

कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री ने कहा कि कैबिनेट की बैठक में मौजूद पार्टी के सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे प्रस्ताव का विरोध इस आधार पर करें कि यह न्यूनतम साझा कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है। पूर्व मंत्री ने कहा कि कांग्रेस आलाकमान ने कैबिनेट सदस्यों को कैबिनेट बैठक से दूर रहने का निर्देश दिया था, जब यह स्पष्ट था कि प्रस्ताव लिया जाएगा लेकिन निर्देशों को गंभीरता से नहीं लिया गया।

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