India Sri Lanka Relations: श्रीलंका क्यों पहुंचे भारतीय थल सेनाध्यक्ष? हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी कारण तो नहीं

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India Sri Lanka Relations: श्रीलंका क्यों पहुंचे भारतीय थल सेनाध्यक्ष? हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी कारण तो नहीं

कोलंबो
श्रीलंका में चीन के बढ़ते दखल के बीच भारतीय थलसेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकंद नरवणे कोलंबो पहुंचे हैं। एक हफ्ते पहले ही भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने श्रीलंका का दौरा किया था। अपने चार दिनों की यात्रा के दौरान जनरल नरवणे श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे से भी मुलाकात करेंगे। श्रीलंकाई सैन्य अधिकारियों के साथ बातचीत के दौरान वे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा करेंगे। श्रीलंका में चीन के बढ़ते निवेश को लेकर भारत की चिंताएं भी बढ़ी हुई हैं। चीन इस देश के जरिए हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश में भी जुटा है।

भारतीय सेना प्रमुख का किया गया भव्य स्वागत
श्रीलंकाई सैन्य प्रमुख जनरल शावेंद्र सिल्वा के निमंत्रण पर कोलंबो पहुंच जनरल नरवणे का भव्य स्वागत किया गया। एयरपोर्ट पर उनकी अगवानी के लिए जनरल शावेंद्र सिल्वा खुद मौजूद रहे। भारतीय सेना ने ट्वीट कर कहा कि जनरल नरवणे श्रीलंका पहुंचे और हवाई अड्डे पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ व श्रीलंकाई सेना के कमांडर जनरल शावेंद्र सिल्वा ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया।

विदेश सचिव के श्रीलंका दौरे के एक हफ्ते बाद पहुंचे जनरल नरवणे
जनरल नरवणे की श्रीलंका यात्रा भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के दौरे के ठीक एक हफ्ते बाद हो रही है। इस दौरान श्रृंगला ने श्रीलंका के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की थी। भारतीय विदेश सचिव ने अपनी यात्रा के दौरान रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में मार्गदर्शन और घनिष्ठ सहयोग के लिए राष्ट्रपति राजपक्षे को भी धन्यवाद भी दिया था। दोनों देश साथ मिलकर कई द्विपक्षीय परियोजनाओं पर भी काम कर रहे हैं।

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भारत को निवेश की सुरक्षा का भरोसा दे रहा श्रीलंका
भारत में श्रीलंका के नए उच्‍चायुक्‍त मिल‍िंदा मोरागोडा ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि चीन के बढ़ते निवेश से भारत के सुरक्षा हितों पर आंच नहीं आएगी। उन्होंने यह भी दावा किया था कि श्रीलंका में भारतीय प्रॉजेक्‍ट के धीमे होने के पीछे कोई विदेशी पहलू जिम्‍मेदार नहीं है। श्रीलंकाई राजदूत मिलिंदा मोरागोडा ने कहा कि चीन ने श्रीलंका में निवेश किया है लेकिन चीन की उपस्थिति सुरक्षा के क्षेत्र में किसी भी तरह से नहीं है जो भारत के हितों को नुकसान पहुंचाएगी। श्रीलंकाई राजदूत ने माना है कि दोनों देशों के बीच विश्‍वास की कमी है जिसे दोनों ही पक्षों को दूर करना होगा।

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हिंद महासागर में चीन के विस्तार का केंद्र है श्रीलंका
चीन की इंडो पैसिफिक एक्सपेंशन और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में चीन ने श्रीलंका को भी शामिल किया है। श्रीलंका ने चीन का कर्ज न चुका पाने के कारण हंबनटोटा बंदरगाह चीन की मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स लिमिटेड कंपनी को 1.12 अरब डॉलर में साल 2017 में 99 साल के लिए लीज पर दे दिया था। हालांकि अब श्रीलंका इस पोर्ट को वापस चाहता है।

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चीन के कई बैंकों से कर्ज के लिए बात कर रहा श्रीलंका
श्रीलंका के अधिकारियों का कहना है कि उनकी सरकार 700 मिलियन डॉलर के लोन के लिए चाइना डेवलपमेंट बैंक के साथ भी बातचीत कर रही है। इनमें से 200 मिलियन डॉलर चीनी करेंसी यूआन के रूप में मिलेगी। 2005 से 201515 के बीच महिंदा राजपक्षे ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान चीन से अरबों डॉलर का कर्ज लिया था। इस समय वह प्रधानमंत्री हैं,जबकि उनके भाई राष्ट्रपति। ऐसे में वे फिर से कर्ज के लिए चीन की शरण में जाते दिख रहे हैं।

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श्रीलंका के कर्ज से भारत-अमेरिका भी परेशान
श्रीलंका को चीन की कर्ज के जाल में उलझते देख भारत समेत कई पश्चिमी देश परेशान हैं। दरअसल इन देशों को डर है कि कहीं चीन कर्ज के एवज में पूरे श्रीलंका पर कब्जा न कर ले। ऐसी स्थिति में हिंद महासागर में चीन को बड़ी ताकत मिल जाएगी। 2017 में श्रीलंका ने 1.4 अरब डॉलर के लोन के बदले अपना हंबनटोटा बंदरगाह ही चीनी कंपनी को सौंप दिया था। जिसके बाद जब भारत ने आपत्ति जताई तो श्रीलंका ने इस पोर्ट का इस्तेमाल मिलिट्री सर्विस के लिए रोक दिया था।

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श्रीलंका पर कुल 55 अरब डॉलर का कर्ज
श्रीलंका पर दुनियाभर के देशों का कुल 55 अरब डॉलर का कर्ज है। रिपोर्ट के अनुसार, यह धनराशि श्रीलंका की कुल जीडीपी की 80 फीसदी है। इसमें सबसे अधिक कर्ज चीन और और एशियन डिवेलपमेंट बैंक का है। जबकि इसके बाद जापान और विश्व बैंक का स्थान है। भारत ने श्रीलंका की जीडीपी का 2 फीसदी कर्ज दिया है।



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