अगला लोकसभा चुनाव महज 14 महीने दूर है. लेकिन इस बार 2014 की तरह नहीं लगता कि मोदी लहर बरकरार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा जिस जनादेश पर सरकार में आये थे वो अब हिलती दिख रही है. इतिहास साक्षी रहा है कि हर सरकार को इन परेशानियो का सामना करना पड़ा है.
मोदी व भाजपा ने 2014 के आम चुनाव को एजेंडा सेट करके जीता. उन्होंने कुछ एजेंडो पर सफलता हासिल करी तो कुछ पर नाकाम भी रहे. लेकिन 2019 में 2014 वाला माहौल बनने की गुंजाइश कम ही दिख रही है. पीएम मोदी ने 2014 का आम चुनाव गुजरात के मुख्यमंत्री रह कर लड़ा और जीते भी लेकिन अब नाकामियो कि लिस्ट बड गई है. 2014 में मोदी मात्र हाथ हिलाने भर से ही लोगो को जवाब दे देते थे पर अब उनके भाषणों का असर भी कम होता है
उत्तरप्रदेश के चुनाव से रास्ता साफ़ हुआ:
नोटबंदी होने के बाद भी भाजपा ने उत्तर प्रदेश का चुनाव जीता और 2019 का रास्ता साफ़ किया. लेकिन गुजरात चुनाव में ज्यादा अच्छा रेस्पोंसे नहीं मिला, वही राजस्थान में होने वाले उपचुनाव भी भाजपा हार गई. राज्यस्तर पर हारने के बाद अब छोटे स्तर पर भी भाजपा की पकड़ कम हो रही है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी में होने वाले स्टूडेंट विंग के चुनाव में कांग्रेस स्टूडेंट विंग, नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ़ इंडिया ने 4 सीटो में से 3 सीट हासिल कर के शानदार जीत हासिल करी. वही जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में भी लेफ्टिस्ट पार्टी जीती. भाजपा की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् कही भी अपना जीत का झंडा नहीं लहरा पाई.
ये आंकड़े अब संकेत देते है कि ब्रांड मोदी में गिरावट आई है. और अब भाजपा को फिरसे अपनी मार्केटिंग पर ध्यान देने की ज़रुरत है.
अच्छे दिन आयगे:
नोटबंदी, जीएसटी और हाल ही में ही इतने बैंकिंग घोटाले व सीलिंग की मार झेलते हुए देश की जनता पर एक दबाव सा बन गया है, जिसके चलते मोदी की लहर में गिरावट आई है.
सोशल मीडिया साइट्स पर भी मोदी और भाजपा के नाम पर पर लतीफे बन रहे है. जिस वजह से साफ़ ज़ाहिर हो रहा है कि मोदी जी का नारा “अच्छे दिन आयेंगे” अब अविश्वसनीय दिख रहा है.
अब ये देखना होगा की 2019 के आम चुनावो में भाजपा ब्रांड मोदी के ज़रिये जीत हासिल कर पायेगी या नहीं, और 2019 का चुनाव जीतने के लिए वो क्या रणनीति बनाती है.