ग्राम प्रधान का चुनाव 5 साल के लिए होता है. इस चुनाव में जीतने के लिए लोग बहुत बड़ी मात्रा में खर्चा भी करते हैं. चुनाव आयोग की तरफ से प्रधान चुनाव में होने वाले खर्चे की सीमा निर्धारित कर रखी है. लेकिन वास्तविकता ये है कि प्रधान चुनाव में लाखों की संख्या में पैसे खर्च किए जाते हैं. अब एक सवाल आता है कि ग्राम प्रधान बनने के लिए कोई इतना पैसा खर्च करता है, तो जब वो ग्राम प्रधान बनता है, तो उनको कितने पैसे मिलते हैं.
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि प्रधान बनने के बाद पैसे नहीं मिलती हैं. जहाँ तक ग्राम प्रधान के मानदेय की बात है तो वो भी कुछ ज्यादा नहीं हैं. यदि उत्तरप्रदेश की बात करें तो ग्राम प्रधान के मानदेय की बात करें तो वो मात्र 3500 रूपए ही मिलता है. लेकिन उसके बाद भी प्रधान बनने के लिए बड़े स्तर पर पैसा खर्च किया जाता है.
गांवों के विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से लाखों की संख्या में पैसा आता है. जिससे ग्राम प्रधान को गांव में साफ-सफाई, गलियाँ बनवाना, पानी की व्यवस्था जैसे काम होते हैं. लेकिन ये किसी से छुपा हुआ नहीं है कि कुछ भ्रष्ट ग्राम प्रधान इस पैसे में से हिस्सा रखने के लिए ही ग्राम प्रधान चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाते हैं. लेकिन यह कानूनी तौर पर गुनाह है.
प्रधान का चुनाव 5 वर्ष के लिए होता है, लेकिन यदि गांव के लोग प्रधान के कार्य से संतुष्ट नहीं हैं, तो प्रधान को 5 वर्ष से पहले भी पद से हटाया जा सकता है, उसके लिए एक प्रक्रिया होती है. प्रधान को पद से हटाने के लिए एक लिखित सूचना जिला पंचायत राज अधिकारी को देनी होती है. इसमें ग्राम पंचायत के आधे सदस्यों के हस्ताक्षर होने ज़रूरी होते हैं.
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हस्ताक्षर करने वाले ग्राम पंचायत सदस्यों में से तीन सदस्यों का जिला पंचायतीराज अधिकारी के सामने उपस्थित होना अनिवार्य है. सूचना प्राप्त होने के 30 दिन के अंदर जिला पंचायत राज अधिकारी गांव में एक बैठक बुलाएगा जिसकी सूचना कम से कम 15 दिन पहले दी जाएगी. बैठक में उपस्थित और वोट देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से प्रधान को पदमुक्त किया जा सकता है.