देश में कई दिनों से बड़े स्तर पर किसान आंदोलन चल रहा है. जिसमें किसानों का आरोप है कि केंद्र सरकार द्वारा कृषि से संबंधित जो तीन कानून बनाए हैं, वो पहले से ही बुरे हालातों में जी रहे किसानों को पूरी तरह बर्बाद कर देंगें. जिसके विरोध में कई किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने के लिए दबाव बनाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं.
तीन कृषि कानूनों का कुछ किसान संगठन विरोध कर रहे हैं तथा कुछ इसका समर्थन भी कर रही हैं. अगर हम देखें की किसान यूनियन क्या होते हैं. लगभग सभी वर्गों के अपने गैर-सरकारी संगठन होते हैं. वो जाति से संबंधित भी हो सकते हैं या धर्म से संबंधित या व्यवसाय के आधार पर हो सकते हैं. जिसका काम जिस आधार पर वो बने हैं जैसे- जाति, धर्म या व्यवसाय उन सब के अधिकारों की आवाज उठाना होता है. इसी तरह अपने अधिकारों के लिए तथा शोषण से बचने के लिए एक मंच की तरह किसान यूनियन भी काम करती हैं.
भारत में कितने किसान यूनियन रजिस्टर्ड है यह आँकड़ा तो उपलब्ध नहीं है. लेकिन सैकड़ों की संख्या में भारत में किसान यूनियन हैं. तीन कृषि कानूनों का विरोध करने वाले दलों को वार्ता करने के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आमंत्रित 35 से ज्यादा किसान यूनियनों को आमंत्रित किया. अगर अकेले पंजाब की बात करें तो 30 से ज्यादा किसान संगठन तो अकेले पंजाब राज्य से ही सबंधित हैं.
यह भी पढ़ें: 1951 का भारतीय इतिहास क्या विशेष हुआ था इस साल
तीन कृषि कानूनों पर सरकार की तरफ से बीच का रास्ता निकालने के लिए किसान संगठनों के पास एक प्रस्ताव भेजा था. जिसमें किसानों की चिंताओं के आधार पर कृषि कानूनों में कुछ संशोधन की बात की गई. लेकिन किसान संगठन चाहते हैं कि कृषि कानून पूरी तरह से वापिस लिए जाने चाहिएं.