बोडो समझौते पर सरकार का बड़ा कदम

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बोडो समझौते पर सरकार का बड़ा कदम (BODO samjhaute par sarkar ka bada kadam)

बोडो समझौता को लेकर लोगों के मन में काफी सवाल उठते ही है चलिए हम आपको सबसे पहले यह क्या है, आपने कहीं बोडो और कहीं बोरो सुना होगा तो यह दोनों एक ही हैं। बोडो समुदाय के लोग इसको बोरो बोलते हैं और सामान्यतः बोडो पढ़ा जाता है.

बोडो के चार अलगाववादी गुटों समेत कुल नौ संगठनों ने असम और केंद्र सरकार के साथ समझौता कर अलग राज्य की मांग छोड़ दी। यहां हम आपको बताना जरूरी समझते हैं कि उन्होंनें कभी भारत से अलग होने की मांग नहीं की. सिर्फ अलग राज्य की मांग की थी. इस समझौते के तहत 1500 से अधिक हथियारधारी सदस्य हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो जाएगा. समझौते के अनुसार भारत सरकार और राज्य सरकार विशेष विकास पैकेज द्वारा 1500 करोड़ रु असम में बोडो क्षेत्रों के विकास के लिए विशिष्ट परियोजनाएं शुरू करेगी और समझौते से संविधान में छठी अनुसूची के अनुच्छेद 14 के तहत एक आयोग का गठन करने का प्रस्ताव है. जो बहुसंख्यक गैर-आदिवासी आबादी कि बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (BTAD) से सटे गांवों को शामिल करने और बहुसंख्यक आदिवासी आबादी की जांच करने का काम करेगा.

इसके साथ ही बोडो की सांस्कृतिक पहचान को बचाये रखने के लिए बोडो भाषा को असम की दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा देने के साथ बोडो आंदोलन में मारे गए. लोगों के प्रत्येक परिवार को 5 लाख का मुआवजा भी दिया जाएगा.

आईए जानते हैं कि बोडो समुदाय की आबादी ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में किनारे पर रहती है, अपनी अलग पहचान मानते हुए, बोरो समुदाय के लोगो ने सबसे पहले 1920 में साइमन कमीशन से मुलाकात की थी और असम विधानसभा में अपने लिए आरक्षण की मांग की थी. ये मांग शांति पूर्ण तरिके से चलती रही, लेकिन 1980 के दशक के बाद बोडो आंदोलन में हिंसक तत्वों का प्रवेश हुआ , बोडो युवकों ने हथियार उठा लिया. इसके बाद नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) की स्थापना अक्टूबर, 1986 में हुई. बाद में ये आंदोलन तीन धाराओं में बंट गया. पहले का नेतृत्व NDFB ने किया, जो अपने लिए अलग राज्य चाहता था. दूसरा समूह बोडो लिब्रेशन टाइगर (BLT) है, जिसने ज्यादा स्वायत्तता की मांग की और गैर-बोडो समूहों को निशाना बनाया. तीसरी समूह ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन यानी (ABSU) का है, जिसने मध्य मार्ग अपनाते हुए राजनीतिक समाधान की मांग की. 1987 में all bodo students union ( ABSU ) ने असम को 50 – 50 में बाटने की मांग की थी.

क्या ये बोडो समुदाय के साथ पहला समझौता है , जी नहीं , इस से पहले भी 1993 और 2003 में भी दो समझौते हो चुके हैं .1993 का समझौता भारत सरकार, राज्य सरकार, ABSU और बोडो पीपल्स ऐक्शन कमिटी के बीच हुआ था इसी के आधार पर बोडोलैंड ऑटोनामस काउंसिल (BAC) का गठन हुआ


2003 में दूसरा समझौता सरकार और बोडो लिब्रेशन टाइगर्स के बीच हुआ. BLT के 2,641 कैडरों ने आत्मसमर्पण किया (बीएलटी की स्थापना 18 जून 1996 को प्रेम सिंह ब्रह्मा के नेतृत्व में की गई थी। इस समझौते के बाद बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (BTC) का गठन 10 फ़रवरी 2003 में हुआ). BTC भारत के असम राज्य में स्थित एक क्षेत्रीय प्रशासनिक प्रभाग है असम के जो ज़िले इस परिषद के अधीन हैं वह बोड़ोलैंड क्षेत्रीय ज़िले (Bodoland Territorial Area Districts) कहलाते हैं और इस श्रेणी में असम के चार जिले कोकराझार, चिरांग, बस्का और उदलगुरी को शामिल किया गया . ( BTC) वहाँ का स्थानीय प्रशासन देखती है सवाल ये उठता है की क्या हम ऐसी कोई body या संस्था बना सकते है जो किसी क्षेत्र विशेष का प्रशासन देखती होl इसका जवाब होगा जी हाँ l क्योकि संविधान की 6 अनुसूची में यह प्रावधान है कि हम किसी अनुसूचित जनजाति की संस्कृति को बनाये रखने के लिए ऐसा कर सकते हैं .

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अब सवाल ये उठता है की अगर पहले भी ऐसे समझौते हो चुके हैं तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये समझौता सफल होगा। इसकी बिलकुल उम्मीद कर सकते हैं कि ये समझौता सफल होगा क्योंकी ये समझौता सभी दलों को विश्वाश में लेकर किया गया है। इसके साथ वहाँ आतंकवादी गतिविधियाँ भी खत्म हों जायेंगी। ये एक बहुत ही अच्छा कदम है हिंसा के रस्ते पर चलकर खुशहाली नहीं आती।