Eknath Shinde: एक शिवसैनिक जो सियासत से ले रहा था संन्यास अब महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री, क्या है वो किस्सा

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Eknath Shinde: एक शिवसैनिक जो सियासत से ले रहा था संन्यास अब महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री, क्या है वो किस्सा

ठाणे:एक कट्टर शिवसैनिक से मुख्यमंत्री तक का सफर। एकनाथ शिंदे की इस कहानी के पीछे कुछ ऐसे मोड़ भी हैं, जब उनको निजी नुकसान उठाना पड़ा। एक दौर ऐसा भी आया जब उन्होंने करीब-करीब राजनीति छोड़ दी थी। एक ऐसी क्षति जिसको याद करके आज भी वो अपनी थाली से रोज दो निवाला निकालते हैं। आखिर सियासत से क्यों संन्यास लेना चाहते थे शिंदे? यह किस्सा आपको बताते हैं।

बेटे-बेटी की मौत से टूट गए थे, फिर दिघे ने मनाया
साल था 2000। पश्चिमी महाराष्ट्र के सातारा जिले में स्थित अपने पुश्तैनी गांव दरे-तर्फे-ताम में हुए एक हादसे ने शिंदे की जिंदगी बदलकर रख दी थी। 11 साल का बेटा दीपेश और सात साल की बेटी शुभदा उनकी आंखों के सामने ही नदी में डूब गए थे। इस हादसे से वह बुरी तरह टूट गए थे और उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने का पूरा मन बना लिया था। हालांकि इसी बीच उनके सियासी गुरु और शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दिघे ने उन्हें ऐसा करने से रोका। दिघे ने उनको समझाने के साथ ही साहस भी दिया। दिघे ने कहा कि आप समूचे समाज को अपने परिवार के रूप में स्वीकार कीजिए। दिघे की ये सीख शिंदे ने गांठ बांध ली। दिघे ने फिर शिंदे को ठाणे महानगरपालिका में लीडर ऑफ हाउस बनवाया। इसके बाद जो कुछ हुआ वो इतिहास है।

सातारा से ठाणे आए, फिर ऑटो चलाया
एक साधारण मराठा परिवार में जन्मे एकनाथ शिंदे पढ़ाई के लिए सातारा के गांव से ठाणे आ गए थे। यहां के स्कूल में पढ़ाई के बाद अपने माता-पिता और तीन भाई-बहनों की मदद के लिए वह छोटी-मोटी नौकरी करने लगे। उन्होंने ऑटोरिक्शा और टेम्पो चलाया। इसके अलावा कई प्राइवेट कंपनियों में भी काम किया। पिछले महीने उनकी बगावत के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना की तरफ से उनके ऑटो ड्राइवर वाले बैकग्राउंड का इशारों में जिक्र करते हुए तंज किया। शिवसेना ने सवाल पूछा था कि क्या बीजेपी उन्हें सत्ता की शीर्ष कुर्सी सौंपेगी? लेकिन शिवसेना के जमीनी कार्यकर्ता से पार्टी के बड़े नेता का सफर तय करते हुए वह शिवसेना की सबसे बड़ी बगावत के नेता बने। 58 साल की उम्र में वह महाराष्ट्र के सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए।

‘संकट में आगे बढ़कर नेतृत्व करते हैं शिंदे’
2014 में फडणवीस सरकार और ढाई साल की महाविकास अघाड़ी सरकार के कार्यकाल में उन्होंने पीडब्ल्यूडी और शहरी विकास जैसे बड़े मंत्रालय संभाले। शिंदे के प्रशंसक उनकी नेतृत्व क्षमता और आपदा या इमरजेंसी की हालत में आगे बढ़कर सब कुछ अपने हाथ में लेने की तारीफ करते हैं। शिंदे के पुराने सहयोगी विलास जोशी कहते हैं, ‘चाहे चिपलून या कोल्हापुर की बाढ़ के दौरान रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल होना हो या बदलापुर में 2020 में पानी से घिरी ट्रेन में फंसे यात्रियों को निकालना, शिंदे साहेब हर जगह पहुंचे और खुलकर मदद की।’

कोरोना लहर में पीपीई किट पहनकर कोविड वॉर्ड पहुंचे
शिंदे की समर्पण की भावना का जिक्र करते हुए उनके सहयोगी कोरोनाकाल में ठाणे के सिविल अस्पताल में दौरे को याद करते हैं। उस वक्त अस्पताल स्टाफ और बहुत से मरीज हिम्मत हार रहे थे। अस्पताल के एक डॉक्टर ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘शिंदे ने एक पीपीई किट ओढ़ी और कोविड वॉर्ड के अंदर जाने का फैसला किया। उन्होंने मरीजों और स्टाफ से बातचीत करते हुए हौसला बढ़ाया। इसका नतीजा यह हुआ कि वॉर्ड में मौजूद सभी लोगों का मूड बदल गया और कोरोना वायरस से जंग में हम लोगों की उम्मीद बढ़ गई।’

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