दिया मिर्ज़ा करती हैं बायोडिग्रेडेबल पैड्स का इस्तेमाल, आप भी जाने इनकी ख़ूबी

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सैनिटरी नैपकिन हर महिला के जीवन का एक अहम हिस्सा होता है. हर महिला को हर महीने इसका इस्तेमाल करना ही पड़ता है. ज्यादातर महिलाएं कंपनी के बनाए हुए नॉन-बायोडिग्रेडेबल (सिंथेटिक फाइबर से बनाए गए पैड्स) पैड्स इस्तेमाल करती हैं. लेकिन इनकी जगह एक और प्रकार के नैपकिन्स बाज़ारों में लगे हैं. ये हैं बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स. इनके इस्तेमाल से पर्यावरण को दूषित होने से बचाया जा सकता है.

आपको ये जानकर हैरानी ज़रूर होगी लेकिन फिल्म अभिनेत्री दिया मिर्ज़ा भी तो बायोडिग्रेडेबल पैड्स का इस्तेमाल करती हैं. दरअसल बायोडिग्रेडेबल का अर्थ होता है ऐसी चीज़ या पदार्थ जो किसी बैक्टिरिया या जीव जंतु से नष्ट की जा सके. इसी तकनीक से बायोडिग्रेडेबल पदार्थ नष्ट किए जा सकते हैं और भविष्य में यह किसी भी प्रकार से पर्यावरण को दूषित नहीं कर पाते. मार्केट में मिलने वाले सिंथेटिक फाइबर जैसे प्लास्टिक से बनने वाले पैड्स से जमा होने वाला कचरा पर्यावरण को बहुत दूषित करता है. इसके इतर बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स कुछ दिनों में नष्ट हो जाते हैं.

इस तरह बनाए जाते हैं बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स.

बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स Banana Fiber यानी केले के पेड़ के रेशे से बनाए जाते हैं. ये नैपकिन्स इस्तेमाल के बाद आसानी से नष्ट हो जाते हैं.  सबसे खास बात कि नष्ट होते ही ये खाद और बायोगैस की तरह उपयोग किये जा सकते हैं. इससे वायु में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा नहीं बढ़ती. वहीं, इससे उलट बाज़ार से महंगे दामों में मिलने वाले पैड्स प्लास्टिक फाइबर से बने होते हैं जो खुद नष्ट नहीं होते और अगर इन्हें जलाया जाए तो इनमें मौजूद कच्चा तेल (प्लास्टिक को जलाने पर निकलने वाला तरल) से हवा में कार्बन डाइ ऑक्साइड फैलती है, जिससे वायु दूषित होती है.

वहीं, बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स इस्तेमाल करने में भी बहुत मुलायम होते हैं और इनके इस्तेमाल से कैंसर और इंफेक्शन होने का खतरा भी नहीं होता.

आपको बता दें भारत में हर साल 12 लाख एकड़ जमीन पर केले के पेड़ों की खेती होती है. इस पेड़ को बड़ा करने के लिए बहुत ही कम पानी और खाद की आवश्यकता पड़ती है. पहले केले के पेड़ों के तनों का कोई खास इस्तेमाल नहीं था, लेकिन बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स बनाने की वजह से अब इन्हें बखूबी प्रयोग किया जा रहा है और किसानों को अतिरिक्त आमदनी के भी मौके मिल रहे हैं.

दिया मिर्ज़ा ने दी जानकारी

भारत की तरफ से यूएन की एनवायरनमेंट गुडविल एम्बेसडर दिया मिर्जा ने बताया कि वह पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन्स का इस्तेमाल नहीं करती हैं. क्योंकि ये पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. वह बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स का इस्तेमाल करती हैं, जो कि सौ प्रतिशत प्राकृतिक हैं. उन्होंने इसी वजह से कभी सैनिटरी नैपकिन्स का विज्ञापन नहीं किया.

यहाँ से खरीद सकते हैं बायोडिग्रेडेबल पैड्स

इन ख़ास तरह के पैड्स को बनाने की शुरूआत ‘साथी पैड्स’ ने की है. ये आपको आसानी से ऑनलाइन मिल जाएंगे. ये पैड्स इस्तेमाल होने के बाद 6 महीनों के अंदर खुद ब खुद नष्ट हो जाते हैं. इसके अलावा ‘आनंदी’ और ‘इकोफेम’  ऑर्गनाइज़ेशन भी बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स बनाती हैं.

गौरतलब है कि एक महिला द्वारा पूरे मेंस्ट्रुअल पीरियड के दौरान इस्तेमाल किए गए सैनेटरी नैपकिन्स से करीब 125 किलो नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा बनता है. 2011 में हुई एक रिचर्स के मुताबिक भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उत्पन्न होता है, जो सबसे ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन्स से आता है. इतना नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा हर महीने जमीनों के अंदर धसा जा रहा है जिससे पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचता है.