Covid vaccination in india : बूस्टर डोज पर क्या बोल रहे कोविशील्ड बनाने वाले अडार पूनावाला
भारत गुरुवार को इतिहास रचते हुए कोरोना वैक्सीन के 100 करोड़ डोज लगाने के आंकड़े को पार कर लिया। इस मौके पर हमारे सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स की टीना थैकर ने सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अडार पूनावाला से खास बातचीत की कि उनकी कंपनी ने कैसे इस मील के पत्थर तक पहुंचने की राह में आने वाली चुनौतियों से पार पाया। दरअसल, भारत में लग रहे करीब 90 प्रतिशत कोरोना वैक्सीन की सप्लाई सीरम इंस्टिट्यूट ही करता है। ईटी ने सीरम के सीईओ से बूस्टर डोज को लेकर उनकी राय भी जानी। पेश है पूनावाला के साथ इंटरव्यू की खास बातें।
अबतक की यात्रा कैसी रही?
रेग्युलेटरी अप्रूवल्स से लेकर प्लांट्स को तैयार करना और साथ-साथ फंडिग की भी व्यवस्था करना एक बड़ी चुनौती थी। इस पर 80 करोड़ डॉलर से ज्यादा खर्च आया। हमने गेट्स फाउंडेशन और उन देशों से पूंजी जुटाई जिन्होंने हमें वैक्सीन के लिए अडवांस दिया। भारत सरकार ने भी हमें वित्तीय सहयोग दिया। हमने अपना भी खूब सारा पैसा लगाया। बड़ी मात्रा में कच्चा माल हासिल करना भी चुनौती थी। जब 2021 में अमेरिका कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा था, तब इसमें परेशानी भी आई। रॉ मैटेरियल्स, तमाम तरह के अप्रूवल्स, फंडिंग यह सब चुनौतियों से भरा था। हमने अपने दूसरे प्रोडक्ट्स की कुर्बानी देकर यह सुनिश्चित किया कि हमारे कैंपस में सिर्फ और सिर्फ कोविशील्ड बने। यह असली चुनौती थी।
वैक्सीन निर्माण के लिए आपने जरूरी मैनपावर की व्यवस्था कैसे की?
हमने सिर्फ कोरोना वैक्सीन के लिए 1000 से ज्यादा अतिरिक्त लोगों की भर्ती की। हमारी जो क्षमता थी उससे ज्यादा हमने भर्ती किए। कई डिपार्टमेंट, एक तरह से आधा सीरम इंस्टिट्यूट सिर्फ कोरोना वैक्सीन के काम में लगा रहा। अब हम कोवोवैक्स और दूसरे वैक्सीन भी बनाने जा रहे हैं। इस तरह हम हर चुनौतियों का सामना कर पाए। यहां तक कि परमिशन, लाइसेंस, वित्तीय मदद इन सबमें सरकार बहुत सपोर्टिव रही।
आपने कहा था कि आपको धमकियां मिली थीं। उस वक्त आप क्या सोच रहे थे?
इसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर देखा गया। मैं समझता हूं कि उस वक्त जबरदस्त दबाव था, हो भी क्यों नहीं, हर कई वैक्सीन चाह रहा था। मैं सरकार का शुक्रगुजार हूं कि उसके समर्थन में मैं इन सभी तरह के दबावों से पार पा पाए, सबकी जरूरतों और अपेक्षाओं पर खरे उतरे।
क्या कोरोना वैक्सीन के निर्माण से बाकी दूसरे प्रोडक्ट्स की सप्लाई प्रभावित हुई?
हमारे सभी दूसरे प्रोडक्ट्स जिन्हें हम इस साल लॉन्च करने वाले थे वे दो साल तक लेट हो सकते हैं। हमने ऐसा इसलिए किया ताकि हम देश की जरूरतों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को पूरा कर सकें।
अभी कोरोना वैक्सीन की बहुत ज्यादा मांग है लेकिन आप भविष्य को कैसे देखते हैं?
मुझे लगता है कि सालभर बाद लोगों को इसकी जरूरत नहीं होगी। हां, तब बूस्टर के तौर पर इसकी जरूरत पड़ सकती है जो वैकल्पिक होगा। फिलहाल तो ऐसा वक्त है कि हर कोई सबसे पहले सुरक्षित होना चाहता है। बाद में कुछ लोग सालाना या छमाही आधार पर बूस्टर डोज भी ले सकते हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि अगले 2 सालों तक कोरोना वैक्सीन की मांग बरकरार रहेगी उसके बाद इसमें कमी आएगी।
क्या आप बूस्टर डोज के पक्ष में हैं?
मेरा मानना है कि जबतक सभी को दो डोज लग न जाए तबतक बूस्टर डोज नहीं लगाया जाना चाहिए। जबतक कि आप बहुत ही ज्यादा जोखिम वाली श्रेणी के न हों यानी बुजुर्ग हों या पहले से अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित हों, तबतक आप बूस्टर डोज के लिए पात्र नहीं होने चाहिए। विज्ञान भी कहता है कि अगर आप स्वस्थ हैं और आपने दो डोज लगवा लिए हैं तो मोटे तौर पर कम से कम एक साल या उससे ज्यादा वक्त तक आप सुरक्षित हैं। हम यह बाद में देखेंगे कि क्या हर किसी को बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी। यह विज्ञान और नैतिकता से तय होना चाहिए।
सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अडार पूनावाला
रेग्युलेटरी अप्रूवल्स से लेकर प्लांट्स को तैयार करना और साथ-साथ फंडिग की भी व्यवस्था करना एक बड़ी चुनौती थी। इस पर 80 करोड़ डॉलर से ज्यादा खर्च आया। हमने गेट्स फाउंडेशन और उन देशों से पूंजी जुटाई जिन्होंने हमें वैक्सीन के लिए अडवांस दिया। भारत सरकार ने भी हमें वित्तीय सहयोग दिया। हमने अपना भी खूब सारा पैसा लगाया। बड़ी मात्रा में कच्चा माल हासिल करना भी चुनौती थी। जब 2021 में अमेरिका कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा था, तब इसमें परेशानी भी आई। रॉ मैटेरियल्स, तमाम तरह के अप्रूवल्स, फंडिंग यह सब चुनौतियों से भरा था। हमने अपने दूसरे प्रोडक्ट्स की कुर्बानी देकर यह सुनिश्चित किया कि हमारे कैंपस में सिर्फ और सिर्फ कोविशील्ड बने। यह असली चुनौती थी।
वैक्सीन निर्माण के लिए आपने जरूरी मैनपावर की व्यवस्था कैसे की?
हमने सिर्फ कोरोना वैक्सीन के लिए 1000 से ज्यादा अतिरिक्त लोगों की भर्ती की। हमारी जो क्षमता थी उससे ज्यादा हमने भर्ती किए। कई डिपार्टमेंट, एक तरह से आधा सीरम इंस्टिट्यूट सिर्फ कोरोना वैक्सीन के काम में लगा रहा। अब हम कोवोवैक्स और दूसरे वैक्सीन भी बनाने जा रहे हैं। इस तरह हम हर चुनौतियों का सामना कर पाए। यहां तक कि परमिशन, लाइसेंस, वित्तीय मदद इन सबमें सरकार बहुत सपोर्टिव रही।
आपने कहा था कि आपको धमकियां मिली थीं। उस वक्त आप क्या सोच रहे थे?
इसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर देखा गया। मैं समझता हूं कि उस वक्त जबरदस्त दबाव था, हो भी क्यों नहीं, हर कई वैक्सीन चाह रहा था। मैं सरकार का शुक्रगुजार हूं कि उसके समर्थन में मैं इन सभी तरह के दबावों से पार पा पाए, सबकी जरूरतों और अपेक्षाओं पर खरे उतरे।
क्या कोरोना वैक्सीन के निर्माण से बाकी दूसरे प्रोडक्ट्स की सप्लाई प्रभावित हुई?
हमारे सभी दूसरे प्रोडक्ट्स जिन्हें हम इस साल लॉन्च करने वाले थे वे दो साल तक लेट हो सकते हैं। हमने ऐसा इसलिए किया ताकि हम देश की जरूरतों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को पूरा कर सकें।
अभी कोरोना वैक्सीन की बहुत ज्यादा मांग है लेकिन आप भविष्य को कैसे देखते हैं?
मुझे लगता है कि सालभर बाद लोगों को इसकी जरूरत नहीं होगी। हां, तब बूस्टर के तौर पर इसकी जरूरत पड़ सकती है जो वैकल्पिक होगा। फिलहाल तो ऐसा वक्त है कि हर कोई सबसे पहले सुरक्षित होना चाहता है। बाद में कुछ लोग सालाना या छमाही आधार पर बूस्टर डोज भी ले सकते हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि अगले 2 सालों तक कोरोना वैक्सीन की मांग बरकरार रहेगी उसके बाद इसमें कमी आएगी।
क्या आप बूस्टर डोज के पक्ष में हैं?
मेरा मानना है कि जबतक सभी को दो डोज लग न जाए तबतक बूस्टर डोज नहीं लगाया जाना चाहिए। जबतक कि आप बहुत ही ज्यादा जोखिम वाली श्रेणी के न हों यानी बुजुर्ग हों या पहले से अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित हों, तबतक आप बूस्टर डोज के लिए पात्र नहीं होने चाहिए। विज्ञान भी कहता है कि अगर आप स्वस्थ हैं और आपने दो डोज लगवा लिए हैं तो मोटे तौर पर कम से कम एक साल या उससे ज्यादा वक्त तक आप सुरक्षित हैं। हम यह बाद में देखेंगे कि क्या हर किसी को बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी। यह विज्ञान और नैतिकता से तय होना चाहिए।
सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अडार पूनावाला