‘CM बनने का मौका आया तो दलित समाज से बन सकता है’, जानें पंजाब में बीजेपी के सियासी गुणा-भाग के बारे में सबकुछ

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‘CM बनने का मौका आया तो दलित समाज से बन सकता है’, जानें पंजाब में बीजेपी के सियासी गुणा-भाग के बारे में सबकुछ

हाइलाइट्स

  • किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी को भी खत्म करने की कोशिश में बीजेपी
  • पार्टी महासचिव बोले- करतारपुर साहिब हमारे लिए सियासत का विषय नहीं
  • दुष्यंत गौतम बोले- कैप्टन अमरिंदर से अभी गठबंधन को लेकर नहीं हुई बात

नई दिल्ली
प्रकाश पर्व के मौके पर करतारपुर कॉरिडोर खुलवाने के लिए बीजेपी नेताओं ने जो सक्रियता दिखाई, उसको पंजाब चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। पंजाब चुनाव से ठीक पहले करतारपुर कॉरिडोर खुलवाने का श्रेय किसी अन्य दल को मिले, उसके बजाय बीजेपी ने वह श्रेय खुद लेना बेहतर समझा। कॉरिडोर के जरिए पंजाब में किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी को भी खत्म करने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और पंजाब प्रभारी सांसद दुष्यंत कुमार गौतम की अगुआई में पंजाब के बीजेपी नेताओं ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री से इस मुद्दे पर मुलाकात की है। एनबीटी के नेशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने गौतम से बातकर जानना चाहा कि पंजाब को लेकर पार्टी में क्या सियासी गुणा-भाग चल रहा है। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश:

सवाल : करतारपुर कॉरिडोर खुलवाने के लिए आप लोगों ने जो पहल की उसके जरिए पंजाब चुनाव में क्या फायदा देख रहे हैं?
जवाब : इस मुद्दे को चुनाव से न जोड़ा जाए तो बेहतर है। प्रकाश पर्व, करतारपुर साहिब ये सब हमारे लिए आस्था के विषय हैं, सियासत के नहीं। करतारपुर कॉरिडोर बहुत पहले बन जाना चाहिए था लेकिन नहीं बना क्योंकि कांग्रेस पार्टी का हमारी धार्मिक आस्था से कोई लेना देना नहीं रहा। नरेंद्र मोदी सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर निर्माण को 2018 में मंजूरी दी और यह वादा भी निभाया कि 2019 में गुरु नानक देव की 550 जयंती के मौके पर खोला जाएगा। कोरोना की वजह से बाद में इसे बंद करना पड़ा था।

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सवाल : कहा तो यह जाता है कि करतारपुर कॉरिडोर खुलवाने के लिए आगे आने से बीजेपी के खिलाफ कृषि कानूनों के चलते पंजाब में जो नाराजगी है, उसे खत्म किया जा सकता है?
जवाब : करतारपुर कॉरिडोर के आगे कृषि कानून कोई मुद्दा ही नहीं है। सचाई यही है कि पूरे देश में किसान कहीं भी बीजेपी से नाराज नहीं हैं। किसानों के हित में आजाद भारत में अब तक जो भी बड़े फैसले किए गए, वे सब बीजेपी सरकारों में ही हुए। कृषि कानूनों को लेकर भी जो आंदोलन की बात कही जाती है, वह एक समूह का अतार्किक आंदोलन है, उसमें किसानों की सहभागिता नहीं है। जो भी समूह आंदोलन कर रहा है, सरकार उनसे भी बात करने को तैयार है। बताओ तो कृषि कानूनों के किस प्रावधान पर आपको शंका है, सरकार उस शंका को दूर करने को तैयार है। उनकी बस यही एक जिद है कि कानून वापस लो। भाई जिद से तो बात नहीं बनती।

सवाल : वैसे यह माना जा रहा है कि पंजाब चुनाव से पहले कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार अपना अड़ियल रुख छोड़कर कोई बीच का रास्ता निकाल सकती है?
जवाब : केंद्र सरकार ने कभी अड़ियल रुख अपनाया ही नहीं। वह तो पहले दिन से कह रही है कि आओ हम बात करने को तैयार हैं। जितनी बार चाहेंगे हम बात करेंगे। कानूनों के जिन-जिन प्रावधानों पर शंका हो, उन शंकाओं पर केंद्र सरकार तब तक बात करने को तैयार है जब तक शंका मिट नहीं जाती। कोई भी संगठन जब भी केंद्र सरकार के पास जाएगा कि हम इस प्रावधान पर यह खतरा महसूस कर रहे हैं, सरकार उस खतरे के निदान को कटिबद्ध है।

सवाल : अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी भी अकेली है, उधर कांग्रेस से अलग होने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अकेले हैं, दोनों के मिलकर चुनाव लड़ने की कितनी संभावनाएं हैं?
जवाब : कैप्टन ने अपनी अलग पार्टी बना ली है। उनकी पार्टी चुनाव में किस रूप में हिस्सा लेना चाहती है, यह फैसला उनको लेना है। उसमें बीजेपी का कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता। जहां तक बात बीजेपी की है, बीजेपी के लिए सबसे पहले देश हित होता है, फिर पार्टी हित और सबसे आखिर में व्यक्ति हित। देश हित में जो भी बेहतर होगा पार्टी फैसला लेगी।

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सवाल : वैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह से गठबंधन के मुद्दे पर आप लोगों की कोई प्रारंभिक बातचीत हुई या नहीं?
जवाब : अभी तक उनसे ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई।

सवाल : कैप्टन के साथ अगर बीजेपी का गठबंधन होता है तो सीएम फेस कैप्टन होंगे या बीजेपी से कोई होगा?
जवाब : इतने महत्वपूर्ण सवाल का जवाब अगर की बुनियाद पर नहीं दिया जा सकता। अगर ऐसा होता है तो पहले अगर होने दीजिए। ये सारी बातें उसके बाद की हैं।

सवाल : कांग्रेस दलित सीएम के चेहरे के साथ चुनाव के मैदान में होगी। अकाली दल-बीएसपी गठबंधन ने वादा किया है कि उनकी सरकार बनने पर डेप्युटी सीएम दलित होगा, बीजेपी का क्या वादा है?
जवाब : जब हमारी और अकाली दल की पंजाब में गठबंधन सरकार थी तो बीजेपी ने अपनी ओर से डेप्युटी सीएम दलित बनाए जाने का प्रस्ताव दिया था लेकिन उस वक्त अकाली दल ने नहीं माना था। आज जब वे हाशिए पर हैं तो मजबूरी में दलित डेप्युटी सीएम की बात कर रहे हैं। जहां तक बीजेपी की बात है, उसने तो पंजाब में सब कुछ दलित नेताओं को ही सौंप रखा है। हमारे प्रदेश अध्यक्ष दलित समाज से हैं। विधायक दल के नेता दलित समाज से हैं। पंजाब से केंद्र में जो मंत्री हैं, वह भी दलित समाज से हैं। सीएम बनने का जब मौका आएगा तो वह दलित समाज से बन जाएगा, हमने रोक तो लगा नहीं रखी है। हम दलित समाज के साथ वोट की राजनीति नहीं करते, हम सम्मान की राजनीति करते हैं।

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