साहित्य ,संगीत व कला के महान जानकार गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की जयंती आज

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आज 7 मई 2018 को साहित्य ,संगीत व कला के महान जानकार गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर जी की जयंती के अवसर पर संपूर्ण साहित्य जगत ने उन्हे शिद्दत के साथ याद किया l भारतीय कला एवं साहित्य को विश्व पटल पर सम्मान दिलाने वाले गुरुदेव के विचार व उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक है l कितने ही साहित्यकारों की प्रेरणा रहे है गुरुदेव l आज उनकी जयंती के अवसर पर उनके जीवन की झलकियों पर नज़र l राष्ट्रीय गान के रचियता भी है टैगोर l

देश भर में अपनी साहित्य एवं कला को लेकर पूजे जाते है
रविन्द्रनाथ टैगोरे का मुरादाबाद से कोई सीधा नाता नहीं है। फिर भी साहित्य एवं कला जगत के लिए वह हमेशा से दुनिया भर में पूजनीय हैं। आपको बता दें की साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले ना सिर्फ पहले भारतीय है बल्कि पहले गैर -यूरोपीय भी थे l महान काव्य गीतांजलि के रचियता गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोरे ने समाज सुधारक के रूप में कई रचनाये लिखी l आपको बता दें की टैगोर महान वैज्ञानिक एल्बर्ट आइंस्टीन से अपने जीवन काल में तीन बार मिले है l आइंस्टीन टैगोर को हमेशा रब्बी टैगोर कह कर बुलाते थे।

Rabindranath Tagore 1 news4social -

भागा-दौड़ी भरी जिंदगी में पीछे छूटता साहित्य
आज के दौर में इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि महान साहित्यकार टैगोर का जन्मदिन भी हम भूलते जा रहे हैं। जब गुरुदेव का जिक्र साहित्य गोष्ठियों तक में नहीं होता। टैगोर की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं।उन्होंने समाज की एकता को लेकर कई कविता लिखी। आपको बता दें की उनकी अधिकांश रचनाएं बंगला भाषा में है। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में टैगोर की रचनाओं के प्रचार प्रसार की आवश्यकता है । टैगोर की सभी रचनाओं का हिन्दी अनुवाद होना चाहिए। तभी आज के युवा भारतीय साहित्य के सुनहरे अतीत से वाकिफ हो सकेंगे।

शान्तिनिकेतन के संस्थापक टैगोर
गुरुदेव भारतीय साहित्य के सबसे बड़े  रचनाकारों में से एक थें। राष्ट्रीय आंदोलन में वह गांधी के साथ रहे। कला व संगीत के बड़े-बड़े कलाकार शांति निकेतन से निकले,जिसके संस्थापक थे गुरुदेव l संगीत के क्षेत्र में गुरुदेव का योगदान अतुल्य है। रविन्द्र नाथ टैगोर, शरद चंद व प्रेमचंद भारतीय साहित्य जगत के मूर्धन्य रचनाकार हैं। तीनों का नाम बड़े सम्मान व आदर के साथ लिया जाता है। आपको बता दें की गांधी के महिलाओं के चरखा चला कर कपड़ा बनाने के फैसले से इत्तेफाक नही रखते थे टैगोरे l उनका मानना था की चरखा चलाना केवल समय की बर्बादी है l