Dollar vs other currencies: मुकेश अंबानी की दौलत से ज्यादा फूंक चुके हैं एशियाई देश, लेकिन डॉलर के मुकाबले गिरती जा रही है उनकी करेंसीज

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Dollar vs other currencies: मुकेश अंबानी की दौलत से ज्यादा फूंक चुके हैं एशियाई देश, लेकिन डॉलर के मुकाबले गिरती जा रही है उनकी करेंसीज

Dollar vs other currencies: मुकेश अंबानी की दौलत से ज्यादा फूंक चुके हैं एशियाई देश, लेकिन डॉलर के मुकाबले गिरती जा रही है उनकी करेंसीज

नई दिल्ली: डॉलर (US Dollar) के मजबूत होने का असर पूरी दुनिया पर दिख रहा है। एशियाई देशों ने अपनी करेंसीज की गिरती कीमत को थामने के लिए जमकर डॉलर खर्च किए। इन देशों ने पिछले महीने यानी सितंबर में ही 50 अरब डॉलर खर्च किए जो मार्च 2020 के बाद सबसे अधिक है। इनमें चीन के आंकड़े शामिल नहीं हैं। अगर साल के पहले नौ महीनों की बात करें तो एशियाई देश अपनी करेंसीज की गिरावट को थामने के लिए 89 अरब डॉलर खर्च कर चुके हैं। यह राशि देश की सबसे मूल्यवान कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) के चेयरमैन मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की नेटवर्थ से भी अधिक है। ब्लूमबर्ग बिलिनेयर इंडेक्स के मुताबिक अंबानी की नेटवर्थ 81.8 अरब डॉलर है।

जापान की करेंसी येन (Yen) डॉलर के मुकाबले 32 साल के लो स्तर पर पहुंच गई है। पिछले महीने जापान की सरकार ने येन की गिरावट को थामने के लिए 20 अरब डॉलर खर्च किए लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। गुरुवार को जापानी येन एक वक्त 147.66 के स्तर पर पहुंच गया था। लेकिन बाद में उसमें कुछ सुधार हुआ। जापान के फाइनेंस मिनिस्टर शुनिची सुजुकी का कहना है कि सरकार येन में उतारचढ़ाव को रोकने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि उनका देश करेंसी मार्केट में अटकलों पर आधारित उतारचढ़ाव को बर्दाश्त नहीं कर सकता है।

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येन का हाल
पिछले महीने जापान ने येन की कमजोरी को थामने के लिए ग्लोबल करेंसी मार्केट में हस्तक्षेप किया था। तब जापान की करेंसी येन डॉलर के मुकाबले 24 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई थी। 1998 के बाद यह पहला मौका था जब जापान की सरकार ने करेंसी मार्केट में हस्तक्षेप किया। हालांकि जानकारों का कहना है कि इस तरह के उपायों का येन की गिरावट पर ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि जापान में ब्याज दरें अमेरिका का मुकाबले बहुत कम हैं।

हाल के महीनों में जापान की करेंसी पर दबाव बढ़ा है। इसकी वजह यह है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तुलना में बैंक ऑफ जापान का रुख अलग रहा है। अमेरिका में महंगाई पर काबू पाने के लिए फेड रिजर्व ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से इजाफा कर रहा है। आगे भी इसमें बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है। इससे डॉलर इंडेक्स करीब दो दशक के हाई पर पहुंच गया है। ग्लोबल फाइनेंशियल मार्केट्स में डॉलर की कीमत में तेजी का असर दुनियाभर की दूसरी बड़ी करेंसीज पर भी देखने को मिल रहा है। यूरो और पाउंड अमेरिकी करेंसी के मुकाबले कई साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गए हैं।

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ग्लोबल रिजर्व में भारी गिरावट
दक्षिण कोरिया ने भी अपनी करेंसी की गिरावट थामने के लिए सितंबर में 17 अरब डॉलर खर्च किए। साथ ही हॉन्ग कॉन्ग, फिलीपींस, ताइवान और थाईलैंड भी सितंबर के महीने में डॉलर के नेट सेलर्स रहे। जानकारों का कहना है कि ज्यादा ब्याज दरों के कारण करेंसीज पर दबाव है। पूरी दुनिया के देशों में विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है। इस साल ग्लोबल रिजर्व में एक ट्रिलियन डॉलर यानी 8.9 फीसदी गिरावट आई है और यह 12 ट्रिलियन डॉलर से कम रह गया है। यह 2003 के बाद सबसे बड़ी गिरावट है।

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