योद्धा जो अपने एक बाण से महाभारत में कौरवों और पांडवों को एक साथ हरा सकता था, जी हां हम बात कर है बर्बरीक नामक योद्धा की अति बलशाली था।बर्बरीक महाबली भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कक्ष का पुत्र था जो एक महान योद्धा था। बर्बरीक का जन्म राक्षस कुल में हुआ था इसलिए वह शरीर से अति बलशाली था और बड़ा भयंकर था । बर्बरीक ने बचपन से ही कामाख्या देवी की तपस्या करके उनसे वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे युद्ध में कोई भी पराजित नहीं कर सकता था .
एक कथा के अनुसार बर्बरीक को देवी कामाख्या ने तीन ऐसे अद्वितीय तीर दिए थे जिनके चलाने से सम्पूर्ण दुश्मन सेना का नाश किया जा सकता था । जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का महा विनाशकारी युद्ध अपने चरम पर था तभी बर्बरीक ने इस युद्ध में सम्मिलित होने का निर्णय ले लिय लेकिन बर्बरीक ने साथ यह भी शपथ ली वह उसकी तरफ से युद्ध करेगा जो दिल कमजोर होगा और किस समय बर्बरीक युद्ध के मैदान की तरफ बढ़ रहा था उस समय कौरवों की हालत बहुत ही ख़राब हो रही थी अतः बर्बरीक का कौरवों की तरफ लड़ना बिलकुल तय था |
भगवान श्री कृष्ण को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने सोचा कि यह बर्बरीक जीत को हार में बदल देगा. अब भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक का वध करने का निर्णय ले लिए और इससे पहले कि बर्बरीक महाभारत के युद्ध के मैदान में पहुँच कर युद्ध का पाशा पलट पाता या फिर युद्ध के मैदान तक पहुँच पाता उससे पहले ही भगवान् श्री कृष्ण उसके पास पहुँच गए । भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि हे परमवीर आप इस युद्ध में किस की तरफ से सम्मिलित होने की इच्छा से आये है? बर्बरीक ने उत्तर दिया कि जो पक्ष कमजोर होगा मैं उसी की तरफ युद्ध करूँगा।
भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि आपके पास तो कोई सेना नहीं है आप कैसे इस युद्ध में अपने पक्ष को विजय दिला पाओगे? बर्बरीक ने कहा कि ‘मेरे पास वह दिव्य शक्तियां है कि मैं एक ही बाण से सम्पूर्ण दुश्मन सेना का वध कर सकता हूँ,’ भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि ‘क्या आप मुझे वह विद्या दिखा सकते हैं? कृष्ण ने कहा कि यह जो वृक्ष है इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दो तो मैं मान जाऊँगा।’
बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया। जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को छेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर पड़ा, कृष्ण ने उस पत्ते पर यह सोचकर पैर रखकर उसे छुपा लिया की यह छेद होने से बच जाएगा, लेकिन सभी पत्तों को छेदता हुआ वह तीर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया। उसके इस चमत्कार को देखकर कृष्ण चिंतित हो गए।
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भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर अगले दिन बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुँच गए और दान माँगने लगे। बर्बरीक ने कहा माँगो ब्राह्मण क्या चाहिए? ब्राह्मण रूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फँस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश माँग लिया। बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया। दान के पश्चात बर्बरीक ने कहा मेरी ये प्रबलतम इच्छा थी की काश महाभारत का युद्ध देख पाता। तब भगवान् श्री कृष्ण ने कहा – हे वीर श्रेष्ठ आपकी ये इच्छा मैं पूर्ण करूंगा।
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