UP Nagar Nikay Chunav 2023: कानपुर निकाय चुनाव में मुस्लिम-SC वोटर होंगे गेम चेंजर, BJP की बढ़ सकती है टेंशन h3>
कानपुर नगर निकाय चुनाव 2023: यूपी के कानपुर में इस बार निकाय चुनाव बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है। वैसे तो महापौर के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है लेकिन समाजवादी पार्टी यहां खेल बिगाड़ने का दम रखती है। पूरा गुणा-गणित समझिए…
हाइलाइट्स
- कानपुर में मेयर पद पर बीजेपी और कांग्रेस में होती रही है सीधी टक्कर
- इस बार सपा विधायक इरफान सोलंकी की गिरफ्तारी बिगाड़ सकती है खेल
- मुस्लिम और एससी वोटर पर निर्भर करेगा मेयर पद का रिजल्ट
सुमित शर्मा, कानपुरः उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव 2023 की तारीखों का एलान हो चुका है। कानपुर में दूसरे चरण में 11 मई को वोटिंग होनी है, वहीं 13 मई को मतगणना होगी। यहां सभी राजनीतिक पार्टियां निकाय चुनाव की तैयारियों में जुट गईं हैं। पॉलिटिकल पार्टियों ने जातिगत वोटरों को साधना भी शुरू कर दिया है। कानपुर में मेयर पद के लिए बीजेपी और कांग्रेस की बीच सीधी टक्कर होती रही है। देश की आजादी के बाद से कानपुर में कांग्रेस पार्टी या फिर बीजेपी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है, जिसमें मुस्लिम वोटरों की भूमिका सबसे अहम रही है। पिछले निकाय चुनाव – 2017 की बात जाए तो बीजेपी यहां मुस्लिम वोटरों में भी सेंध लगाने में कामयाब रही थी।
लेकिन इस बार निकाय चुनाव- 2023 की बात की जाए तो हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं। मुस्लिम वोटरों का रूझान कांग्रेस या फिर समाजवादी पार्टी की तरफ देखा जा रहा है। हालांकि इस मामले में यहां पर कांग्रेस पार्टी सपा से कहीं ज्यादा मजबूत नजर आ रही है। पिछले लोकसभा और महापौर के चुनाव में देखा गया कि मुस्लिम वोटरों का रूझान कांग्रेस पार्टी की तरफ बढ़ा है। वहीं विधानसभा चुनावों में सपा इस मामले में कांग्रेस से आगे निकल जाती है।
मुस्लिम वोटरों में नाराजगी की वजह
कानपुर का मुस्लिम वोटर सपा विधायक इरफान सोलंकी पर की गई कार्रवाई से नाराज बता जाते हैं, जिसका फायदा सपा उठाना चाहती है। सपा इस मामले में मुस्लिम वोटरों की सहानभूति लेना चाहती है। लेकिन अंदरखाने की बात निकलकर सामने आ रही है कि महापौर के चुनाव में सपा का दावा उतना मजबूत नहीं है, ऐसे में मुस्लिम वोटरों का रूझान कांग्रेस पार्टी की तरफ झुक सकता है। जमीनी हालात की बात करें तो निकाय चुनाव में मुस्लिम वोटर संगठित नजर आ रहा है। कैंट और सीसामऊ विधानसभा मुस्लिम बाहुल इलाके हैं। इन दोनों सीटों पर सपा के विधायक हैं। कैंट से सपा के मोहम्मद हसन रूमी और सीसामऊ से इरफान सोलंकी विधायक हैं।
जातिगत वोटरों को साधने में जुटी पार्टियां
कानपुर में पिछले चार दशक की बात की जाए तो महापौर के पद पर ब्राह्मण प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। कानपुर में सबसे ज्यादा ब्राह्मण वोटरों की संख्या है। इसके बाद मुस्लिम, ओबीसी, एससी और क्षत्रीय वोटरों की संख्या है। सभी राजनीतिक पार्टियां मुस्लिम वोटरों के साथ ही एससी वोटरों को भी साधने में जुटी हैं। वहीं एससी और मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए डोर-डोर टू कैंपेन चला रही हैं, इन वोटरों पर बसपा अपना दावा ठोकती है। वहीं सपा दलित महासभाओं का आयोजन कर रही है, पिछले दिनों लाजपत भवन में अखिलेश यादव ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। कांग्रेस पार्टी और बीजेपी भी दलित वोटरों को साधने में जुटी है।
जिसका मेयर उसी पार्टी का सांसद
कानपुर में बीजेपी सभी चुनावों को एक रणनीति के तहत लड़ती है। कानपुर के मेयर पद की जीत लोकसभा चुनाव की पटकथा लिखती है। क्योंकि यह देखा गया है कि कानपुर में जिस पार्टी का मेयर होता है, उसी पार्टी का सांसद भी होता है। इस बार भी बीजेपी कानपुर मेयर पद के चुनाव को पूरी ताकत से लड़ने की योजना बना रही है। प्रत्याशियों के आवेदन की जांच बारीकी से जांच की जा रही है। प्रत्याशियों के पास खुद का कितना जनाधार है? इसका भी ख्याल रखा जा रहा है।
बीजेपी के टेंशन की वजह
कानपुर निकाय चुनाव में महापौर के पद पर जीत हासिल करने के लिए बीजेपी ने जातिगत वोटरों को साधना शुरू कर दिया है। बीते दिनों बीजेपी ने ओबीसी और एससी समाज का सम्मेलन कराया था। बीजेपी इस निकाय चुनाव में मुस्लिम वोटरों में सेंध नहीं लगा पा रही है। इसके साथ ही एससी वोटर को जोड़ना भी चुनौती है। ताजा जानकारी ये है कि बीजेपी खास रणनीति के तहत काम कर रही है। वैसे यहां ओबीसी और ब्राह्मण वोटरा का बंटवारा भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच हो जाता है। पिछले निकाय चुनाव में बीजेपी की तरफ से प्रमिला पांडेय और कांग्रेस की तरफ से बंदना मिश्रा चुनावी मैदान में थीं। बीजेपी की प्रमिला पांडेय ने शानदार जीत दर्ज कर कमल खिलाने का काम किया था। लेकिन कांग्रेस की बंदना मिश्रा ने उन्हे कड़ी टक्कर दी थी। वहीं सपा तीसरे और बसपा चौथे नंबर थी।
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कानपुर नगर निकाय चुनाव 2023: यूपी के कानपुर में इस बार निकाय चुनाव बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है। वैसे तो महापौर के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है लेकिन समाजवादी पार्टी यहां खेल बिगाड़ने का दम रखती है। पूरा गुणा-गणित समझिए…
हाइलाइट्स
- कानपुर में मेयर पद पर बीजेपी और कांग्रेस में होती रही है सीधी टक्कर
- इस बार सपा विधायक इरफान सोलंकी की गिरफ्तारी बिगाड़ सकती है खेल
- मुस्लिम और एससी वोटर पर निर्भर करेगा मेयर पद का रिजल्ट
लेकिन इस बार निकाय चुनाव- 2023 की बात की जाए तो हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं। मुस्लिम वोटरों का रूझान कांग्रेस या फिर समाजवादी पार्टी की तरफ देखा जा रहा है। हालांकि इस मामले में यहां पर कांग्रेस पार्टी सपा से कहीं ज्यादा मजबूत नजर आ रही है। पिछले लोकसभा और महापौर के चुनाव में देखा गया कि मुस्लिम वोटरों का रूझान कांग्रेस पार्टी की तरफ बढ़ा है। वहीं विधानसभा चुनावों में सपा इस मामले में कांग्रेस से आगे निकल जाती है।
मुस्लिम वोटरों में नाराजगी की वजह
कानपुर का मुस्लिम वोटर सपा विधायक इरफान सोलंकी पर की गई कार्रवाई से नाराज बता जाते हैं, जिसका फायदा सपा उठाना चाहती है। सपा इस मामले में मुस्लिम वोटरों की सहानभूति लेना चाहती है। लेकिन अंदरखाने की बात निकलकर सामने आ रही है कि महापौर के चुनाव में सपा का दावा उतना मजबूत नहीं है, ऐसे में मुस्लिम वोटरों का रूझान कांग्रेस पार्टी की तरफ झुक सकता है। जमीनी हालात की बात करें तो निकाय चुनाव में मुस्लिम वोटर संगठित नजर आ रहा है। कैंट और सीसामऊ विधानसभा मुस्लिम बाहुल इलाके हैं। इन दोनों सीटों पर सपा के विधायक हैं। कैंट से सपा के मोहम्मद हसन रूमी और सीसामऊ से इरफान सोलंकी विधायक हैं।
जातिगत वोटरों को साधने में जुटी पार्टियां
कानपुर में पिछले चार दशक की बात की जाए तो महापौर के पद पर ब्राह्मण प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। कानपुर में सबसे ज्यादा ब्राह्मण वोटरों की संख्या है। इसके बाद मुस्लिम, ओबीसी, एससी और क्षत्रीय वोटरों की संख्या है। सभी राजनीतिक पार्टियां मुस्लिम वोटरों के साथ ही एससी वोटरों को भी साधने में जुटी हैं। वहीं एससी और मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए डोर-डोर टू कैंपेन चला रही हैं, इन वोटरों पर बसपा अपना दावा ठोकती है। वहीं सपा दलित महासभाओं का आयोजन कर रही है, पिछले दिनों लाजपत भवन में अखिलेश यादव ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। कांग्रेस पार्टी और बीजेपी भी दलित वोटरों को साधने में जुटी है।
जिसका मेयर उसी पार्टी का सांसद
कानपुर में बीजेपी सभी चुनावों को एक रणनीति के तहत लड़ती है। कानपुर के मेयर पद की जीत लोकसभा चुनाव की पटकथा लिखती है। क्योंकि यह देखा गया है कि कानपुर में जिस पार्टी का मेयर होता है, उसी पार्टी का सांसद भी होता है। इस बार भी बीजेपी कानपुर मेयर पद के चुनाव को पूरी ताकत से लड़ने की योजना बना रही है। प्रत्याशियों के आवेदन की जांच बारीकी से जांच की जा रही है। प्रत्याशियों के पास खुद का कितना जनाधार है? इसका भी ख्याल रखा जा रहा है।
बीजेपी के टेंशन की वजह
कानपुर निकाय चुनाव में महापौर के पद पर जीत हासिल करने के लिए बीजेपी ने जातिगत वोटरों को साधना शुरू कर दिया है। बीते दिनों बीजेपी ने ओबीसी और एससी समाज का सम्मेलन कराया था। बीजेपी इस निकाय चुनाव में मुस्लिम वोटरों में सेंध नहीं लगा पा रही है। इसके साथ ही एससी वोटर को जोड़ना भी चुनौती है। ताजा जानकारी ये है कि बीजेपी खास रणनीति के तहत काम कर रही है। वैसे यहां ओबीसी और ब्राह्मण वोटरा का बंटवारा भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच हो जाता है। पिछले निकाय चुनाव में बीजेपी की तरफ से प्रमिला पांडेय और कांग्रेस की तरफ से बंदना मिश्रा चुनावी मैदान में थीं। बीजेपी की प्रमिला पांडेय ने शानदार जीत दर्ज कर कमल खिलाने का काम किया था। लेकिन कांग्रेस की बंदना मिश्रा ने उन्हे कड़ी टक्कर दी थी। वहीं सपा तीसरे और बसपा चौथे नंबर थी।
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