498A: महिलाओं के लिए वरदान या परिवार टूटने के लिए दुरुपयोग का माध्यम

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498A: महिलाओं के लिए वरदान या परिवार टूटने के लिए दुरुपयोग का माध्यम

498A: महिलाओं के लिए वरदान या परिवार टूटने के लिए दुरुपयोग का माध्यम

बरखा त्रेहन
लोकप्रिय चैनल बाँवरे छोरे, जो दो भाई मिलकर चलाते हैं और वह दोनों भाई गौमाता की सेवा करते हुए अपने वीडियो अपलोड करते हैं। उनके वीडियो ऐसे होते हैं कि देखकर हंसी आ जाती है। झुमर, नंदू और न जाने कितनी गैयों की शरारतें वह लोग अपलोड करते हैं। वह भारत की उस आत्मा के वीडियो पोस्ट करते हैं, जिनके माध्यम से न जाने कितने लोग वह सपना जीते हैं, जो सपना उनके दिल में ही रह जाता है। चूंकि भारत का एक बड़ा वर्ग अभी भी वही जीवन जीना चाहता है, जिसमें गाय, बछड़े आदि सभी हों, इसलिए लोग उनसे जुड़े हैं।

और हमारे ग्रंथों में भी गौ सेवा को बहुत बड़ी सेवा बताया गया है। उनके वीडियो में उनके घरवाले भी दिखते हैं, जैसे उनकी माँ और पिता। एक बेहद साधारण परिवार, जिसकी सीमा अपनी गाय, बछड़ा और वह सभी हैं। परन्तु दो दिन पहले उनका एक वीडियो ऐसा आया जिसने उनके प्रशंसको को हिलाकर रख दिया। वह वीडियो ऐसा था कि जिस पर कोई विश्वास भी नहीं कर सका। वह वीडियो था उस क़ानून के विषय में जिसके विषय में न्यायालय से भी बार-बार टिप्पणियाँ आती रहती हैं कि वह क़ानून पुरुषों को फंसाने का माध्यम बना जा रहा है।

जिसे लेकर माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी वर्ष 2005 में सुशील कुमार बनाम युनियन ऑफ इंडिया मामले में लीगल टेररिज़म या कानूनी आतंकवाद की संज्ञा दी थी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2022 में यह स्पष्ट कहा कि 498ए के मामले में पति के रिश्तेदारों के विरुद्ध स्पष्ट आरोप के बिना केस चलाना कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग है।

इसी 498ए के विरोध में यह दोनों भाई भी जेल गए थे। हालांकि मामला अभी न्यायालय में है तो उसके विषय में कुछ भी कहना उचित नहीं है, परन्तु यह भी सत्य है कि महिलाओं के हितों के लिए यह तमाम क़ानून अब कहीं न कहीं उस मोड़ पर आ गए हैं, जहां पर दूसरी महिलाओं का शोषण उसमें अपने आप हो जाता है। इन युवकों का जब परिवार देखते हैं, तो एक साधारण सा परिवार है, जिसमें एक साधारण महिला इनकी माँ के रूप में दिखाई देती हैं। कभी झूमर के लिए केक बनाती हैं तो कभी अपने बच्चों का हाथ बंटाती हैं। इन भाइयों ने जब यह वीडियो पोस्ट किया कि वह इस धारा के विरोध में जेल जा रहे हैं और उन्होंने यह बताया कि कैसे उनकी अपनी पत्नियों ने ही उन्हें कैसे प्रताड़ित किया, तो उसे दो-तीन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों एवं डीजीपी को “गिरफ्तारी के लिए अरनेश मिश्रा दिशानिर्देशों” का पालन करने की सख्त हिदायत दी थी।

यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि कैसे इन कानूनों का दुरुपयोग महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। हमारी पुरुष आयोग की टीम के पास ही लगातार ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें इन मामलों के सताए पुरुष होते हैं। इन मामलों में केवल पुरुष को ही आरोपी नहीं बनाया जाता है, बल्कि कभी कभी तो विदेशो में बैठी बहनों के खिलाफ भी मुक़दमे दर्ज हो जाया करते हैं।

यह भी सच है कि न जाने कितने लोग इनके चलते आत्महत्या कर लेते हैं, न जाने कितने परिवार तबाह हो जाते हैं। इन लड़कों का वीडियो देखा था, उसमें उन्होंने कहा कि न तो हम आत्महत्या करेंगे और न ही हम अपनी ज़िन्दगी बर्बाद करेंगे।

इन युवाओं की यह इच्छाशक्ति इन्हें मजबूत बनाए हुए है, नहीं तो लोग टूट जाते हैं। और आए दिन आत्महत्या की खबरें आती हैं। पुरुष आयोग ने इन युवाओं से बात की है और हम पूरी तरह से इनके साथ हैं। इस संस्था की अध्यक्ष होने के नाते मैं संकल्प एवं उनके पिताजी से बात कर चुकी हूँ।

परन्तु इन पीड़ाओं के बाद भी इस कानून में परिवर्तन की बात नहीं हो रही है। बार-बार माननीय न्यायालय निर्णय देते हुए कह रहे हैं कि क़ानून पुरुषों के प्रति पक्षपाती हैं, परन्तु इस पक्षपात को सुधारने के कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। हमारे बेटे विवाह करने से डरने लगे हैं, वह लड़कियों से डरने लगे हैं, कि कहीं कोई आकर कोई आरोप न लगा दे। क्योंकि हाल ही में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी यही कहा था कि यौन उत्पीडन के वास्तविक मामले कहीं न कहीं बहुत कम हैं और क़ानून पुरुषों के लिए बहुत पक्षपाती हैं।

और केवल पुरुषों के प्रति पक्षपाती नहीं है बल्कि यह पूरे परिवार पर हमला है। दहेज़ प्रताड़ना से कोई इंकार नहीं कर सकता है, परन्तु दहेज़ प्रताड़ना के नाम पर अब कानूनों के दुरुपयोगों का आलम यह है कि आज तक में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी उसके अनुसार नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में धारा 498A के तहत देशभर में 1.36 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। जबकि, इससे एक एक साल पहले 2020 में 1.11 लाख मामले दर्ज किए गए थे।

वहीं, अगर धारा 498A के मामलों में कन्विक्शन रेट देखें तो सिर्फ 100 में से 17 केस ही ऐसे हैं जिनमें दोषी को सजा मिलती है।
मगर फिर भी ऐसे कानूनों, जिनमें कन्विक्शन दर इतनी कम है, की उपयोगिता पर बात नहीं होती? यह तक चर्चा नहीं होती कि कहीं महिलाओं के हितों की बात करते करते, पुरुषों एवं परिवार संस्था के विरुद्ध ही तो हम इतना आगे नहीं आ गए हैं कि जहां पर स्त्री और पुरुष परस्पर प्रतिद्वंदी हो गए हैं और परिवार तबाह!

इनके दुरुपयोग पर बात होनी ही चाहिए, क्योंकि बात हमारे और आपके बेटों की है।

(लेखिका पुरुष आयोग की प्रेसिडेंट हैं)

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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