21000 रेड, 3000 अरेस्ट, फिर भी शराब पीकर क्यों मर रहे लोग… आखिर कौन है बिहार का ‘रक्तबीज’ राक्षस

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21000 रेड, 3000 अरेस्ट, फिर भी शराब पीकर क्यों मर रहे लोग… आखिर कौन है बिहार का ‘रक्तबीज’ राक्षस

पटना: आपमें से जिसने भी मां दुर्गा की सप्तशती पढ़ी हो या फिर अगर आपको ये पता है कि मां दुर्गा ने काली रूप में किन-किन राक्षसों का संहार किया था… वो रक्तबीज नाम के राक्षस की कहानियों से परिचित होंगे। रक्तबीज वो राक्षस था जिसके खून की एक बूंद भी धरा पर गिरते ही राक्षस का रूप ले लेती थी। मां काली ने रक्तबीज का संहार किया और उसके शरीर से गिरी एक-एक बूंद को खप्पड़ में भर लिया, जिससे न रक्त की बूंद भूमि पर गिरी और न ही कोई दूसरा रक्तबीज पैदा हुआ। आज बिहार में जहरीली शराब बेचने वाले भी रक्तबीज से कम नहीं हैं। सरकार लाख कहती रहे कि सूबे में शराबबंदी है लेकिन ये ‘रक्तबीज’ जगह बदल-बदल कर मौत बांट रहे हैं, और इनके सामने सिस्टम सरेंडर दिख रहा है। पढ़िए कैसे..

ये आंकड़े देख हिल जाएंगे
हम आपको पूरी खबर बताएं उससे पहले एक नजर इस तस्वीर पर डालिए। ये आंकड़े सरकार को साफ बता रहे हैं कि बिहार में शराबबंदी की क्या हालत है। आंकड़े भी कितने बमुश्किल साल भर के, लेकिन डेथ रेट ऐसा कि कोई भी कांप जाए। माना कि ये बात सही है कि पीने वाले को कौन रोक सकता है, लेकिन शराब बेचने वाले को तो सरकार रोक ही सकती है। वो भी तब जब शराबंदी सूबे के मुखिया का ड्रीम प्रोजेक्ट है। ऐसे में अगर शराब आसानी से मिल जा रही है तो फिर इसका दोषी कौन है… सिर्फ इलाके का थानेदार और चौकीदार या फिर पूरा सिस्टम? बात अगर इन आंकड़ों की करें तो ये करीब एक साल के हैं। यानि फरवरी 2021 से मार्च 2022 तक के…

इन आंकड़ों के हिसाब से बिहार में फरवरी 2021 से 22 मार्च 2022 तक यानि अभी तक कुल 142 लोगों को जहरीली शराब ने लील लिया। लेकिन रुकिए कुछ आंकड़े और भी हैं जो सरकार ने शराबबंदी रोकने के बारे में दिए हैं। वो भी देखिए

  • 2021 में छापेमारी- 14,924
  • 2021 में गिरफ्तारी- 2,390
  • 2021 में शराब जब्ती- 85425 लीटर
  • पटना हाईकोर्ट में- 39,622 जमानत याचिका अभी पेंडिंग
  • 36,417 ताजा जमानत याचिका जिसकी अभी हाईकोर्ट में सुनवाई बाकी ही है


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21000 रेड, 3000 अरेस्ट, फिर भी शराब पीकर क्यों मर रहे लोग
बिहार में अगर कुछ और आंकड़ों को देखें तो पिछले साल से अब तक 21 हजार से ज्यादा छापेमारी हुई है। तीन हजार से ज्यादा आरोपियों की गिरफ्तारी हुई है लेकिन फिर भी लोग शराब पीकर मर रहे हैं। सिर्फ इस होली की बात करें तो तीन जिलों (बांका, भागलपुर और मधेपुरा) में कम से कम 16 लोगों की मौत हो गई। इससे पहले इसी साल सारण में 15, नालंदा में 13, बांका में 8, बक्सर में 5 लोगों की मौत हुई।
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सुप्रीम कोर्ट तक कर चुका नीतीश सरकार की खिंचाई
सुप्रीम कोर्ट ने इसी 8 मार्च को बिहार सरकार से अपने शराबबंदी कानून के सामाजिक और विधाई प्रभाव का आकलन करने को कहा। पटना हाईकोर्ट में शराबबंदी कानून से जुड़े जमानती आवेदनों की बाढ़ के बाद अदालत ने ये प्रतिक्रिया दी। सिर्फ इस साल की बात करें तो बिहार में 56 लोगों की संदिग्ध हालात में मौत हुई है। सिर्फ पिछले 12 महीनों की बात करें तो 13 जिलों में कम से कम 158 लोगों की जान जहरीली शराब ने ले ली। हालांकि ये कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं क्योंकि जहरीली शराब से मौत के लिए कोई रिकॉर्ड-कीपिंग यानि दस्तावेज नहीं हैं।
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ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर कांड
बिहार में जहरीली शराब ने खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में ही ज्यादा तांडव किया है। जहरीली शराब पीने के बाद लोगों को पेट में तेज दर्द, उल्टी हुई। इसके बाद कई लोगों की जान चली गई। जिनका इलाज किया गया उनमें से भी कई ने अपनी आंखों की रौशनी गंवा दी। इस बारे में नालंदा के सिविल सर्जन डॉ सुनील कुमार ने टाइम्स न्यूज नेटवर्क को बताया कि ‘चुंकि लोग शराब के नशे में पकड़े जाने से डरते हैं, इसलिए वे अस्पताल में भर्ती होने से बचने की कोशिश करते हैं। हमें हाल ही में हुई जहरीली शराब त्रासदी में कई मामले मिले हैं, जहां अस्पताल में भर्ती होने के समय मरीजों को मृत घोषित कर दिया गया था।’

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
बिहार के मशहूर पॉलिटिकल और ऐसे मामलों के एक्सपर्ट सह शिक्षाविद् डॉक्टर संजय कुमार के मुताबिक लचर पुलिसिंग इसकी सबसे बड़ी वजह है। डॉक्टर संजय के मुताबिक ‘जिन पुलिस पदाधिकारियों के कंधे पर शराबबंदी की जिम्मेदारी दी गई है वो तो खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उनका फायदा हमेशा शराब माफिया उठाते रहे हैं। रोजगार भी बिहार के लिए एक बड़ा कारण है, जो शराबबंदी नहीं होने देने में अहम रोल अदा कर रहा है। एक बड़ा युवा वर्ग रोजगार के अभाव में शराब की तस्करी कर रहा है।’

बिहार की सीमाएं भी सुरक्षित नहीं होने की वजह से बड़े पैमाने पर शराब की तस्करी पड़ोसी और सीमावर्ती राज्यों से हो रही है। पुलिस को मल्टी टास्क दिया गया है जबकि बिहार में पुलिस-पब्लिक का अनुपात वैसे ही कम है। सामाजिक जागरुकता का अभाव भी इसमें साफ-साफ दिखता है, जिसके लिए सरकार की तरफ से कोई ठोस पहले अभी भी नहीं की गई है। केवल कानून का डर दिखाकर के असमय हो रही मौत से लोगों को नहीं बचाया जा सकता है।

डॉक्टर संजय कुमार, एक्सपर्ट सह शिक्षाविद्, पटना

शराबबंदी के बाद से अब तक के आंकड़े
बिहार में मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम पारित होने के बाद से, फरवरी 2022 तक 21 मिलियन लीटर (20,978,787) शराब जब्त की गई है। जबकि राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार इन मामलों में करीब 4.5 लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन असल मसला ये है कि शराबबंदी के बाद माफिया को इस धंधे में कमाई की ज्यादा गुंजाईश नजर आने लगी है। ऐसे में सिस्टम को दुरुस्त रहने की जरूरत थी, जो इतने लोगों की मौत के बाद साफ लगता है कि वो है नहीं।

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