हाउसिंग सेक्टर से इंफ्रास्ट्रक्चर तक हर जगह बजता था सहारा का डंका! लोगों ने निवेश की जिंदगी भर की कमाई, फिर क्या हुआ?
इस तरह सहारा पर कसा शिकंजा
साल 1978 में सहारा इंडिया (Sahara India) की शुरूआत हुई थी। सहारा स्कैम (Sahara scam) मुख्य रूप से सहारा ग्रुप की दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल ऐस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SHICL) से जुड़ा है। सब कुछ ठीक चल रहा था। इस बीच सहारा ग्रुप की एक कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने अपने आईपीओ के लिए सेबी में आवेदन (DRHP) दाखिल किया। यह बात 30 सितंबर 2009 की है। डीआरएचपी में कंपनी से जुड़ी सभी जरूरी इनफार्मेशन होती है। सेबी ने जब इस डीआरएचपी को खंगाला तो इसमें कई गड़बड़ियां मिली। सेबी को 25 दिसंबर 2009 और 4 जनवरी 2010 को सेबी को दो शिकायतें मिलीं। इसमें बताया गया था कि सहारा की कंपनियां गलत तरीके से पैसा जुटा रही हैं। इसके बाद सेबी ने सहारा की इन दोनों कपंनियों की जांच शुरू कर दी।
ढाई करोड़ निवेशकों से 24 हजार करोड़ जुटाए
सेबी की ओर से जब सहारा की दोनों कंपनियों की जांच की गई तो इसमें पाया गया कि सहारा इंडिया रियल ऐस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SHICL) ने ओएफसीडी के माध्यम से करीब ढाई करोड़ निवेशकों से 24 हजार करोड़ रुपये जुटाए हैं। सेबी ने सहारा की इन दोनों कंपनियों को पैसा जुटाना बंद करने का आदेश दिया और कहा कि वह निवेशकों को 15 फीसदी ब्याज के साथ उनका पैसा लौटाए। अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों कंपनियों को निवेशकों का पैसा तीन महीने के अंदर 15 फीसदी ब्याज के साथ चुकाने का आदेश दिया था। सहारा सेबी को तीन महीने में 15 फीसद ब्याज के साथ पैसा जमा कराने में नाकाम रहा।
127 ट्रक लेकर सेबी ऑफिस पहुंचा सहारा
सहारा इंडिया में निवेशकों की रकम नहीं लौटा पाने पर सेबी की तरफ से बताया गया था कि रेकॉर्ड में निवेशकों का डाटा ट्रेस नहीं हो पा रहा है। बताया कि सहारा 127 ट्रक लेकर सेबी के ऑफिस पहुंचा, जिसमें निवेशकों की डिटेल्स थीं। लेकिन इन फाइल्स में निवेशकों की पूरी जानकारी नहीं थी। इसके बाद सेबी का सहारा पर शिकंजा कसता चला गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट और सेबी दोनों ही इस मामले को मनी लॉन्ड्रिंग की तरह लेने लगे। सहारा इंडिया के बैंक अकाउंट और संपत्ती को फ्रीज किया जाने लगा।