सुनो केजरीवाल,  सुनो योगी… लोकतंत्र की यह कैसी भाषा है, हमारे ये कैसे भाग्य विधाता हैं! 

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सुनो केजरीवाल,  सुनो योगी… लोकतंत्र की यह कैसी भाषा है, हमारे ये कैसे भाग्य विधाता हैं! 

ट्विटर पर सुनो केजरीवाल…सुनो योगी…तुम-तड़ाका…ये किसी ट्रोल की भाषा नहीं है जनाब। ये तो दो मुख्यमंत्रियों के संबोधन हैं एक दूसरे के लिए। इनमें से एक सियासी लिहाज से देश के सबसे बड़े और अहम सूबे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं तो दूसरे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। एक मुख्यमंत्री के साथ-साथ प्रतिष्ठित गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर हैं तो दूसरे आईआईटीयन और भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रह चुके हैं। लेकिन भाषा तो देखिए। दो मुख्यमंत्रियों की सड़कछाप भाषा भारतीय राजनीति में संवाद के गिरते स्तर की बानगी भर है। इससे पता चलता है कि चुनावी मौसम में राजनीतिक संवाद का स्तर किस तरह रसातल में चला गया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में नेता किसी ट्रोल में तब्दील हो जाएं और उनके बीच इस बात की प्रतिस्पर्धा मच जाए कि भाषायी मर्यादा को तार-तार करने में कौन बड़ा तीसमार खां है, इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है।

(ट्विटर पर योगी और केजरीवाल की एक दूसरे के लिए बदजुबानी)

तुम-तड़ाक तक क्यों आई बात
यहां बात हो रही है यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच ट्विटर पर हुई उस जंग की, जिसमें भाषायी मर्यादाएं तार-तार हुईं। पृष्ठभूमि में रहा सोमवार को लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण। पीएम मोदी ने दिल्ली सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जब कोरोना की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन लगा तो दिल्ली सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के बीच अफवाह फैलाया कि दिल्ली से यूपी और अन्य राज्यों के लिए बसें जा रही हैं। भाग जाओ, गांव जाओ। पीएम ने कहा कि इस ‘पाप’ की वजह से कोरोना तेजी से फैला।

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लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के सामूहिक पलायन और उस वजह से कोरोना के तेजी से फैलने का ठीकरा अपनी सरकार पर फोड़े जाने पर केजरीवाल ने ट्विटर पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने पीएम के बयान को ‘झूठ’ बताते हुए कहा कि लोगों की पीड़ा पर राजनीति करना प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता। केजरीवाल के इसी ट्वीट के बाद योगी आदित्यनाथ और उनके बीच आधी रात को ट्विटर वॉर शुरू हो गया और भाषायी मर्यादा तार-तार हो गई।

शुरुआत योगी आदित्यनाथ ने की। भाषायी शिष्टाचार और मर्यादा की धज्जी उड़ाते हुए योगी ने ट्विटर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री को ‘सुनो केजरीवाल’ कहकर संबोधित किया। जवाब में केजरीवाल भी उसी निचले स्तर पर गिरे और ‘सुनो योगी’ से पलटवार किया। दोनों के बीच चल रही इस घटिया जुबानी जंग में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी कूद पड़े। AAP सांसद ने योगी के लिए तुम-तड़ाका शुरू करते हुए सड़कछापियां संवाद को एक नई खाई बख्शने की पुरजोर कोशिश की।

भाषायी मर्यादा की ऐसी-तैसी करने की मची होड़
पिछले कुछ सालों से भारतीय राजनीति में संवाद का स्तर लगातार नीचे गिरा है। चुनावी मौसम में तो नेताओं के बीच जैसे होड़ सी मच जाती है कि किसकी जुबान कितना नीचे गिरेगी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनाव उत्सव सरीखे होते हैं। चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया है जो देश में तकरीबन हर महीने दो महीने में कहीं न कहीं चलती ही रहती है। इसी के साथ नेताओं की बदजुबानी, गालीगलौज और सार्वजनिक शिष्टाचार की धज्जियां उड़ाने वाली बयानबाजियों का सिलसिला भी चलता रहा है।

मौत का सौदागर, गंदी नाली का कीड़ा, शिखंडी, चोर, एके 47, खून की दलाली, नमक हराम, दीदी ओ दीदी, रेनकोट पहन नहाने वाला, नीच आदमी, सांप-बिच्छू, रावण, गंगू तेली, यमराज, हिंदू जिन्ना….ये राजनीतिक विरोधियों के लिए हमारे नेताओं की तरफ से इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द हैं। इनमें से कुछ शब्द तो विपक्ष के नेताओं की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इस्तेमाल हुए हैं। कुछ शब्द प्रधानमंत्री की तरफ से विपक्षी नेताओं के लिए इस्तेमाल हुए हैं। ‘हमाम में सब नंगे’ का इससे बेहतर उदाहरण भला और क्या हो सकता है।

बदलने आए थे राजनीति और गिरा दिए सार्वजनिक संवाद का स्तर

एक दशक पहले तक भारतीय राजनीति में संवाद का स्तर कभी इतना नहीं गिरा था। ऐसा नहीं था कि तब विरोधियों पर हमले नहीं होते थे। खूब होते थे लेकिन भाषायी लक्ष्मण रेखा पार नहीं होती थी। तीखी से तीखी बात, चुभने वाले शब्द बाण…लेकिन भाषा का स्तर शायद ही गिराते थे। लेकिन 21वीं सदी के दूसरे दशक ने तस्वीर बदल दी। सबसे ज्यादा दुर्भाग्य की बात तो ये रही कि राजनीति बदलने का दम भरने वालों ने सियासत की उन सभी कथित गंदगियों को आत्मसात कर लिया जिसे खत्म करने का वो दावा करते थे। आम आदमी पार्टी ने राजनीतिक विरोधियों के लिए गाली-गलौज का नया ट्रेंड शुरू किया।

राजनीति में कदम रखते ही अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के दूसरे बड़े नेता विरोधियों को चोर, महाचोर, बेईमान, भ्रष्ट…का सर्टिफिकेट बांटने लगे। तुम-तड़ाक करने लगे। इस पर तब लगाम लगी जब मानहानि के मामलों में अरविंद केजरीवाल को देश की अलग-अलग अदालतों में अपने बयानों के लिए संबंधित नेताओं से लिखित में माफी मांगनी पड़ी। कभी बिक्रम सिंह मजीठिया से तो तो कभी अरुण जेटली से, कभी नितिन गडकरी से तो भी कपिल और अमित सिब्बल से…। एक के बाद इन माफीनामे से ईमानदारी के स्वयंभू ठेकेदारों की तरफ से विरोधियों को चट से चोर, बेईमान होने का सर्टिफिकेट बांटने की आदत पर रोक तो लगी। लेकिन भारतीय राजनीति में संवाद के स्तर को चोट तो पहुंच ही चुका था। वैसे जब देश के प्रधानमंत्री ही बड़े गर्व से ‘मुझे फांसी पर चढ़ा देना’ ‘चौराहे पर जूते मारना’, ‘मुझे उलटा लटका देना’ जैसी शब्दावलियों का इस्तेमाल कर रहे हों तो बाकी नेताओं की भाषा की क्या ही शिकायत करना। बदजुबानी और गाली गलौज अब भारतीय राजनीति की जैसे पहचान बनती जा रही है। काश! हमारे नेताओं को इस बात का आभास होता! काश!

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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