सियासी दुश्मनी में तब्दील होगी राहुल और सिंधिया की दोस्ती
मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच आमने-सामने की टक्कर देखने को मिल सकती है। इसका कारण यह है कि सत्ता में वापसी की कोशिश करने के लिए कांग्रेस के चुनावी अभियान की कमान राहुल के पास होगी। दूसरी ओर, सिंधिया को ग्वालियर-चंबल में अपना गढ़ बचाने के लिए अपने पुराने दोस्त से मुकाबला करना ही होगा।
हाइलाइट्स
- बुधवार को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राहुल गांधी पर बोले तीखे व्यक्तिगत हमले
- विधानसभा चुनावों में सिंधिया का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर सकती है बीजेपी
- राहुल और सिंधिया के बीच हो सकती है आमने-सामने की टक्कर
राहुल पर सिंधिया का हमला
तीन साल पहले बीजेपी में जाने के बाद भी सिंधिया आम तौर पर गांधी परिवार पर सीधा हमला करने से परहेज करते थे। राहुल के बयानों के बारे में पूछे जाने पर वे इसे कांग्रेस का आंतरिक मसला बताकर पल्ला झाड़ लेते थे, लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। इसका उदाहरण बुधवार को देखने को मिला जब सिंधिया ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल पर सीधा हमला बोल दिया। उन्होंने राहुल को स्वार्थी राजनीतिज्ञ बताने के साथ कांग्रेस की विचारधारा को देशद्रोही तक कह दिया।
बीजेपी की रणनीति का अहम हिस्सा हैं सिंधिया
राहुल को लेकर सिंधिया के आक्रामक रुख के तार एमपी में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों से जुड़े हैं। प्रदेश में एंटी इनकम्बेंसी से जूझ रही बीजेपी को इस बात का अंदाजा है कि इस बार मुकाबला कड़ा होने वाला है। समाज के कई तबकों, खासकर युवाओं में बीजेपी सरकार के प्रति नाराजगी की आशंका जताई जा रही है। दूसरी ओर, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मध्य प्रदेश में मिले समर्थन से भी बीजेपी घबराई हुई है। उसे डर है कि युवाओं के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है। इसे देखते हुए बीजेपी चुनावों में सिंधिया का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर सकती है।
राहुल के सामने हो सकते हैं सिंधिया
इसमें कोई शक नहीं कि तीन राज्यों में सिमट चुकी कांग्रेस एमपी में सत्ता में वापसी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी। यह भी करीब-करीब तय है कि चुनाव अभियान में राहुल गांधी की अहम भूमिका होगी। बीजेपी के पास उनसे मुकाबले के लिए कोई युवा चेहरा नहीं है। दूसरी ओर, युवाओं के बीच सिंधिया की लोकप्रियता भी जगजाहिर है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन का श्रेय भी काफी हद तक सिंधिया को ही मिला था। यह बात और है कि 15 महीने बाद कांग्रेस सरकार के पतन की वजह भी वही बने। ऐसे में बीजेपी राहुल की काट के लिए सिंधिया पर बड़ा दांव खेल सकती है।
सिंधिया के लिए गढ़ बचाने की चुनौती
विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगी कांग्रेस का सबसे ज्यादा ध्यान ग्वालियर-चंबल क्षेत्र पर है जो सिंधिया का गढ़ है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस इलाके में लगातार सक्रिय हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी लगातार इस क्षेत्र के दौरे कर रहे हैं। कांग्रेस की सारी रणनीति सिंधिया को उन्हीं के गढ़ में पटकनी देने की है ताकि उनसे बदला लिया जा सके। ऐसे में सिंधिया के लिए अपना गढ़ बचाने की चुनौती है। वे चाहकर भी इस लड़ाई से दूर नहीं रह सकते नहीं तो उनके राजनीतिक वजूद पर ही खतरा पैदा हो सकता है। कांग्रेस से मुकाबले के लिए उन्हें खुद मोर्चा संभालना होगा और अपने पुराने दोस्त से टक्कर लेना उनकी मजबूरी होगी। बुधवार को नई दिल्ली में उनका प्रेस कॉन्फ्रेंस शायद इसी की तैयारी का पहला चरण है।
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