समाज में छापाकला को लेकर जागरूकता की कमी है – पद्मश्री श्याम शर्मा | Webinar on Printing Art through Online Medium | Patrika News

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समाज में छापाकला को लेकर जागरूकता की कमी है – पद्मश्री श्याम शर्मा | Webinar on Printing Art through Online Medium | Patrika News

अपने लोक संस्कृतियों और लोक विधाओं के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है

लखनऊ

Published: April 08, 2022 05:27:00 pm

लखनऊ, मशीनी छपाई कला 15वीं शताब्दी से लोगों के बीच मे प्रचलित होती है। लेकिन भारत में छापा कला की धारणा और अस्तित्व बहुत पहले से है। यहाँ व्यवहारिक प्रयोग था। हड़प्पा में प्राप्त शील, मुहरें इस बात को प्रमाणित करती हैं। छापा कला का रूप हमारे संस्कारों के साथ जुड़ा है। तमाम आयोजनों में इस कला का अनेक रूप भी देखने को मिलता है। उक्त विचार गुरुवार देर शाम को लखनऊ में स्थित फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी के तत्वावधान में एक ऑनलाइन माध्यम से छापाकला पर वेबिनार के माध्यम से अतिथि कलाकार पद्मश्री श्याम शर्मा वरिष्ठ छापा कलाकार पटना (बिहार ) ने रखी।

समाज में छापाकला को लेकर जागरूकता की कमी है – पद्मश्री श्याम शर्मा

साथ ही लखनऊ उत्तर प्रदेश से वरिष्ठ कलाकार, कला आलोचक, कला इतिहासकार अखिलेश निगम के साथ देश भर से बारह महिला छापा कलाकार जुड़ कर छापे की दुनिया से छापाकारों का विचार विमर्श हुआ। और लोगों ने अपने बातों को प्रश्नोत्तरी माध्यम में रखा।

क्यूरेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि यह विशेष कार्यक्रम पिछले महीने हुए बारह महिला प्रिंटमेकर के हुए सामुहिक प्रदर्शनी के समापन पर किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य यह रहा कि ललित कला के क्षेत्र में छापा कला का महत्व और उसके सभी आयामों को विस्तार पूर्वक जानकारी होना और छापा कला की अदभुत और रोचक दुनियां में अनेकों प्रयोग किये जा रहे हैं। कला प्रेमियों को उससे जोड़ना भी अहम कार्य है।

पद्मश्री श्याम शर्मा ने आगे कहा कि अनेकों कलाकारों ने छापा कला को अपनी अभिव्यक्ति का सफल माध्यम बनाया। आज के समय मे कला में माध्यम कोई बहुत बड़ा प्रश्न नहीं है, केवल अभिव्यक्ति मायने रखती है। आज छापा कला में इस बात की अहमियत है कि प्रयोग कितने नए रूपों में करते हैं। छापा कलाकारों को इस बात पर विशेष बल देने की जरूरत है। कृष्णा रेड्डी ने विस्कॉसिटी में काम करके नया रास्ता बनाया। हमे छापा कला के तकनीकों में भी कुछ नया प्रयोग करते हुए काम काम करना होगा। छापा कला की धारा को गतिशील बनाने के लिए प्रयोग आवश्यक है। नए माध्यम को तलाश करना भी छापा कलाकार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।

प्रिंट तकनीकी सीमाओं में रहकर , सीमाओं का अतिक्रमण करना होता है। इस प्रकार दृश्य कला का भंडार बढ़ता है। एक कलाकार को चिंतनशील और मननशील होना बहुत जरूरी है। आकृति निरपेक्ष और सापेक्ष कुछ भी हो सकता है लेकिन अपनी अभिव्यक्ति को महत्व दिया जाना चाहिए। भारत मे छापा कला की धारणा जीवन के साथ विकसित हुई है। भारत मे इसे इंडिजिनियस प्रोसेस कहते हैं। यह हमारे साथ व्यवहारिक रूप में बहुत पहले से रहा है। मशीनों की अपेक्षा हाथ से बनी कलाकृतियों का आंनद और अनुभव अलग ही होता है। आज हम मशीनों का इस्तेमाल करते हुए छपाई करें लेकिन इस दौड़ में इंडिजिनियस पद्धति को भूलें नहीं। छापा कला का आनंद चेम्बर म्यूजिक की तरह का आनंद होता है।

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