संकट में पाकिस्तान

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संकट में पाकिस्तान

आसमान छूती महंगाई, कम होते विदेशी मुद्रा भंडार, रुपये में गिरावट और करंट अकाउंट के बढ़ते घाटे जैसी गंभीर चुनौतियों से जूझते पाकिस्तान के लिए सऊदी अरब का 8 बिलियन डॉलर का पैकेज बड़ी राहत बन कर आया है। इमरान खान सरकार के अल्पमत में आने के बाद संवैधानिक संकट से गुजरते हुए पाकिस्तान में किसी तरह नई सरकार तो बन गई, लेकिन अर्थव्यवस्था की पहले से ही डांवाडोल स्थिति इस राजनीतिक संकट के चलते और बदतर हो गई। पिछले छह-सात हफ्तों में ही देश के विदेशी मुद्रा भंडार में छह अरब डॉलर की कमी आ गई है। करंट अकाउंट डेफिसिट यानी चालू खाता घाटा बढ़ते हुए 13 अरब डॉलर को पार कर चुका है। फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा भी बढ़ता जा रहा है।

माना जा रहा है कि यह पिछली सरकार के अनुमान- जीडीपी के छह फीसदी से थोड़ा अधिक- को भी पीछे छोड़ देगा। गरीबी में आटा गीला करने वाली बात यह हुई कि मदद के जो दो सबसे भरोसेमंद स्रोत हो सकते थे, उन्होंने हाथ पीछे कर रखे हैं। चीन को पाकिस्तान पिछले कुछ समय से सबसे विश्वसनीय दोस्त मान कर चल रहा था। मगर पाकिस्तान में राजनीतिक उथलपुथल को देखते हुए वह सतर्क हो गया है। करीब 2.5 अरब डॉलर का जो कर्ज उसे देना था, उसका भुगतान उसने रोक लिया है। अब पाकिस्तान तो उस मदद के लिए कसमसा रहा है लेकिन चीन चाहता है कि पाकिस्तान के राजनीतिक समीकरण स्थिर हो जाएं तभी वह ये किस्तें जारी करे।

जहां तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मदद की बात है तो पिछली इमरान सरकार द्वारा देश के अमीरों को दी गई तीसरी आम टैक्स माफी ने उस पर भी अनिश्चय की तलवार लटका दी। वहां से 1 अरब डॉलर की जो मदद आने वाली थी, उसमें देर हो रही है। साफ है कि ऐसी स्थिति में सऊदी अरब की सहायता पाकिस्तान के लिए ऑक्सिजन का काम कर सकती है। लेकिन सब कुछ निर्भर करता है इस बात पर कि जो मोहलत इस मदद की बदौलत मिल रही है उसका वहां के मौजूदा शासक कैसा इस्तेमाल करते हैं। अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए जिस तरह के कदम उठाने की जरूरत है, उससे आम जनता और अमीर तबके दोनों के बीच अलोकप्रिय होने का खतरा है।

जैसे राजनीतिक हालात वहां हैं, उसमें यह कहना मुश्किल है कि सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दल कब तक साथ रहेंगे और कब अचानक चुनाव की नौबत आ जाएगी। ऐसे में शाहबाज सरकार आवश्यक सुधारों की ओर कदम बढ़ाने की हिम्मत करती है या नहीं, यह साफ होने में थोड़ा वक्त लगेगा। पाकिस्तान की आर्थिक मुश्किलें भारत के लिए एक सबक हैं। यहां भी केंद्र और राज्यों का साझा कर्ज जीडीपी के 11 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान है। भारत को समय रहते इस कर्ज में कमी लाने की कोशिशें तेज कर देनी चाहिए।



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