संकट में इंदौर पुलिस का रसूख | The influence of Indore Police in crisis | Patrika News

191
संकट में इंदौर पुलिस का रसूख | The influence of Indore Police in crisis | Patrika News

संकट में इंदौर पुलिस का रसूख | The influence of Indore Police in crisis | Patrika News

क्राइम ब्रांच के टीआइ धनेंद्र भदौरिया के कानून हाथ में लेने वाली करतूत से पुलिस व्यवस्था की पोल खुल गई है

इंदौर

Updated: October 11, 2022 10:58:08 pm

माझी ही नाव डुबोए तो फिर कौन बचाए? इन दिनों इंदौर पुलिस की यही कहानी है। बेखौफ अपराधियों का बढ़ता आतंक और पुलिस की शर्मनाक मिलीभगत से शहर की कानून-व्यवस्था चरमराई हुई है। ऐसे में अपराध नियंत्रण और आम आदमी को सुरक्षा का भरोसा आखिर कौन दिलाएगा? महकमे में दागियों की मौज है। खाओ-कमाओ और ऊपर तक पहुंचाओ। सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का… कानून के रखवाले चाहे जब नियम-कायदे पैरों तले रौंदते रहें, कौन देखने वाला? कैसी कार्रवाई? क्राइम ब्रांच के टीआइ धनेंद्र भदौरिया के कानून हाथ में लेने वाली करतूत से पुलिस व्यवस्था की पोल खुल गई है। आखिर दागियों को इतनी खुली छूट किनके संरक्षण में मिली हुई है? दूसरी ओर लुटा-पिटा आम पीडि़त थानों से बिना सुनवाई उल्टे पांव लौटने को मजबूर होता है। जब किसी रसूखदार से उनका पाला पड़ता है, तब जाकर ऐसे दागी एक्सपोज हो पाते हैं।
इंदौर में पुलिस कमिश्नरी लागू हुए सालभर होने को है। इस दौरान क्राइम कंट्रोल के मामले में पुलिस अपना ऐतबार कायम नहीं कर पाई है। प्रिवेंटिव पुलिसिंग तो दूर, डिटेक्शन में भी झंडे नहीं गाड़े हैं। अपराधियों के हौसले इस कदर बढ़े हुए हैं कि दिनदहाड़े व्यापारी का अपहरण हो जाता है। फिरौती के लिए उसे यंत्रणा दी जाती है और पुलिस को भनक तक नहीं लगती। भंवरकुआं सहित शहर के कई इलाकों में आए दिन चौंकाने वाली वारदात सामने आती है। युवा पीढ़ी को नशे की गिरफ्त में झोंकने वाले नए-नए ठिकानों के साथ संगठित अपराध तेजी से पैर पसार रहा है। जाहिर है, स्थानीय पुलिस गंभीर मामलों में हद दर्जे की लापरवाही बरत रही है। परंपरागत पुलिसिंग में भी फिसड्डी अमला न फिक्स पॉइंट तैनाती में और न रात्रिकालीन गश्त में प्रभावी मौजूदगी दर्ज करवा पा रहा है। स्मार्ट पुलिसिंग के दावे धरे रह गए हैं। साइबर क्राइम के जाल में फंसे लोग खुदकुशी करने पर मजबूर हैं। पुलिस ऐसे ज्यादातर मामलों में क्रिमिनल्स का पता तक नहीं लगा पाती। अधिकारी यह कहकर दामन झटक सकते हैं कि कोई व्यक्तिगत लेनदेन में फंसा हो तो उसमें पुलिस क्या कर सकती हैं? लेकिन, ऐप या साइबर ठगी में फंसे पीडि़त पर कोई दबाव बनाए तो उस पर पुलिस का खौफ तो होना ही चाहिए। गंभीर पुलिसिंग के बजाए यातायात जुर्माना वसूली में ज्यादातर अमला सड़कों पर नजर आता है। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वालों पर पुलिस टूट पड़ती है। सड़क पर दौड़ाकर उन्हें पकड़ने या कहें कि झपट्टा मारने में इंदौर पुलिस के जवान माहिर हो गए हैं। यह और बात है कि उनके हाथ से अपराधी फिसल रहे हैं। आला अफसरों को यह सब नजर नहीं आता। क्या सीएम से शिकायत या उनकी फटकार के बाद अधिकारी चालानी मोर्चे से पुलिस को हटाएंगे। अधिकारियों को चाहिए कि कमिश्नरी की सुविधाओं का उपभोग करने के साथ इसके उद्देश्य को भी अमलीजामा पहनाएं। ताकि प्रदेश की आर्थिक राजधानी अपराध और भयमुक्त होकर दिन दूनी रात चौगुनी निर्बाध उन्नति कर सके।

Patrika News

newsletter

अगली खबर

right-arrow



उमध्यप्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Madhya Pradesh News