शक्ति संचारक, सबकी रक्षक माई खेरमाई

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शक्ति संचारक, सबकी रक्षक माई खेरमाई

जबलपुर शहर की हर दिशा में विराजी हैं शक्ति स्वरूपा भवानी, देवी पूजन की अद्वितीय परम्परा

 

 

जबलपुर। शक्ति की आराधना के महापर्व नवरात्रि को लेकर जबलपुर शहर में भी देवी मंदिरों में विशेष तैयारी की गई हैं। संस्कारधानी में नगर की हर दिशा में शक्ति स्वरूपा विराजी हैं। मान्यता है कि बूढ़ी खेरमाई, बड़ी खेरमाई, राइट टाउन की खेरमाई, पुरवा की खेरमाई नगरवासियों की रक्षा करने के साथ उनमें शक्ति का संचार करती हैं। इसी प्रकार गोंडवाना काल से माला देवी, शारदा देवी का पूजन होता आ रहा है। अलसुबह इन मंदिरों में जल ढारने श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। नौ दिन तक ये क्रम अनवरत जारी रहता है। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजन-अनुष्ठान होता है। कपूर, हवन सामग्री से पूरा वातावरण सुवासित हो जाता है।
बूढ़ी खेरमाई
चारखम्भा स्थित बूढ़ी खेरमाई की प्रतिमा लगभग पंद्रह सौ साल पुरानी बताई जाती है। पूर्व में ये मंदिर तांत्रिक साधना का बड़ा केन्द्र रहा है। यहां स्थित पद्मावती देवी गोंडवाना साम्राज्य की पूज्य देवी मानी जाती हैं। देवी के इस मंदिर की स्थापना गोंड शासकों ने कराई थी। भानतलैया स्थित बड़ी खेरमाई मंदिर लगभग पांच सौ साल पुराना है। हालांकि इस स्थल पर शक्ति की आराधना लगभग 8 सौ साल से हो रही है। मंदिर के पुजारी सुशील तिवारी के अनुसार गोंड राजा मदनशाह एक बार मुगल सेना से परास्त होकर खेरमाई माता की शिला के पास बैठ गए। मैया की कृपा से राजा और सेना में नई शक्ति का संचार हुआ। राजा ने मुगल सेना पर आक्रमण कर उसे परास्त किया। कलचुरी काल में बड़ी खेरमाई राजवंश की कुलदेवी रही हैं। मंदिर में देवी नौ रूपों में विराजित हैं।
माला देवी : पुरवा स्थित माला देवी को लेकर जनश्रुति है कि देवी तीन बार अपना रंग बदलती थीं। सुबह वे कन्या के रूप में, दोपहर के दौरान युवावस्था व वृद्धा के रूप में नजर आती थीं। लेकिन प्रतिमा खंडित होने के बाद से ऐसा नहीं होता। बताया जाता है कि माला देवी को रानी दुर्गावती अपनी कुलदेवी मानती थीं।
शारदा देवी : मदन महल की पहाड़ी और बरेला में स्थित शारदा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के बड़े केन्द्र हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु पूजन-अनुष्ठान के लिए इन मंदिरों में आते हैं। मदनमहल की पहाड़ी में स्थित मंदिर लगभग 550 साल पुराना है। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण रानी दुर्गावती ने 1550-60 ईस्वी में कराया था। मान्यता है मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने पर मनोकामना पूरी होती है।













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