लालची को नर्क की गति मिलती है

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लालची को नर्क की गति मिलती है

दयोदय तीर्थ में चातुर्मास के लिए विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा

जबलपुर। दयोदय तीर्थ में चातुर्मास के लिए विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन में जो भी काम करता है, वह उसका मन करता है। पांचों इंद्रियां कभी भी मनमाना कार्य नहीं कर सकतीं। पंच इंद्रिय मनुष्य अपने 28 गुण अनुभव के कारण नर्क का द्वार खोलता है। एक इंद्रिय जीव के पास कषाय कम होने से उसके नर्क जाने की सम्भावनाएं नहीं होतीं। पंच इंद्रिय मनुष्यों में जो बहुत लालायित हो के लालची हो जाता है, उसकी गति नर्क की होती है।
ऐसे होता है प्राणी का विकास
आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान विज्ञान ने कुछ भी माना हो, लेकिन प्राणी का विकास कैसे होता है, आपके सामने संक्षेप में रख रहा हूं। एक इंद्री जीव के पास एकमात्र स्पर्श इंद्रिय रहती है। वही उसके जीवन के लिए सहायक होती है। स्पर्श करने के बाद उसका ज्ञान रुक जाता है। वह एक इंद्रीय जीव से दूसरी इंद्रीय जीव तक बहुत से विकास के क्रम हैं। किंतु, इंद्रिय क्रम में तो वह एक ही इंद्री कहलाएगी। पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु सभी एक इंद्री जीव हैं। जब दो इंद्रीय जीव हो जाता है, तो उसके विज्ञान का विकास होता है। अब बोलने भी लगता है इससे उसको रस इंद्रिय प्राप्त हो जाती है। वह जीभ के माध्यम से आवाज भी निकलता है।
होते हैं 28 गुणधर्म
उन्होंने समझाया कि स्पर्श के 8 गुण पर्याय होते हैं। रस इंद्रिय आ जाने से उसे 5 रसों का भी ज्ञान होने लगा लगता है। इस तरह उसे तेरह प्रकार से गुण अनुभव होने लगते हैं। तीसरी इंद्री प्राप्त होने पर उसे सूंघने की क्षमता मिल जाती है। अब दो प्रकार के गुण अनुभव सुगंध और दुर्गंध के होने लगते हैं। चौथी इंद्री के रूप में चक्षु इंद्रिया आंखें मिल जाती हैं। इससे जीव रंगभेद जानने लगता है। इस बाद पांचवीं इंद्री के रूप में कर्ण या कान प्राप्त हो जाते हैं। इससे सुनने और शब्द ज्ञान की क्षमता आ जाती है। शब्द क्षमता को मोक्ष मार्ग में देशनालब्धि के रूप में में माना गया है। शब्द बोलने और समझने की क्षमता के बाद रूप बदलता जाता है। इंद्रियों का विकास पूर्ण हो जाता है। कुल 27 इंद्रिय अनुभव के साथ एक मन को और मिला लिया जाए तो 28 गुण धर्म होते हैं।
व्यसन त्याग करना आवश्यक
मन के बिना कुछ काम नहीं किए जा सकते। हमारे आचार्य भी कहते थे कि सबसे पहले व्यसन त्याग करना आवश्यक है। हर मनुष्य के पास 28 गुण धर्मों का पाठ होता है। वह कितने गुणों को पालन करता है, यही मोक्ष मार्ग का रास्ता तय करता है।
संघ पदाधिकारियो ने लिया आशीर्वाद
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक प्रवीण गुप्त, सह प्रांत संघचालक डॉ. प्रदीप दुबे, विभाग संघचालक डॉ. कैलाश गुप्ता, सक्षम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. पवन स्थापक, प्रांत सह सम्पर्क प्रमुख उदय परांजपे, सीए अखिलेश जैन ने सोमवार को आचार्यश्री विद्यासागर से करीबन 20 मिनट मातृभाषा, स्वावलम्बन आदि विषयों पर चर्चा कर आशीर्वाद लिया।





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