ललन सिंह बनेंगे नीतीश की तरकश के ऐसे तीर, जो दोस्त और दुश्मन दोनों खेमे में मचाएंगे खलबली!

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ललन सिंह बनेंगे नीतीश की तरकश के ऐसे तीर, जो दोस्त और दुश्मन दोनों खेमे में मचाएंगे खलबली!

बिहार में सत्ताधारी जेडीयू के नेतृत्व में बड़ा बदलाव सामने आया है। पार्टी के दिग्गज नेता और सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को जेडीयू की कमान सौंपी गई है। इसी के साथ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। ललन सिंह सवर्ण जाति भूमिहार से आते हैं तो इन्हें अध्यक्ष बनाकर नीतीश ने वोटरों को मैसेज दे दिया कि जेडीयू सभी जातियों की पार्टी है। इस कदम से उनके ऊपर ‘लव-कुश’ समीकरण को लगातार बढ़ावा देने के लग रहे आरोप भी अब खत्म हो जाएंगे।

यही नहीं नीतीश के बेहद करीबी माने जाने वाले ललन सिंह (Lalan Singh) अब जेडीयू में सवर्ण चेहरे के तौर पर देखे जाएंगे। उनको चुनाव प्रबंधन में भी महारत हासिल है। कुल मिलाकर बिहार के सीएम ने अपने इस सियासी दांव के जरिए अपने ‘दुश्मन’ खेमे को ही नहीं बल्कि ‘दोस्तों’ को भी चौंका दिया है। जानिए इसकी क्या है वजह…

तो इसलिए नीतीश ने सौंपी ललन सिंह को कमान

दरअसल, जेडीयू के 18 साल के इतिहास में ललन सिंह पहले सवर्ण अध्यक्ष हैं। इससे पहले तीनों अध्यक्ष ओबीसी से थे। इस फैसले नीतीश की कोशिश सवर्ण वोटरों और खासकर भूमिहार मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की है। इसका सीधा असर कहीं न कहीं बीजेपी की रणनीति पर पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि सवर्ण खासकर भूमिहार मतदाताओं को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है। वहीं चिराग पासवान के नेतृत्व वाली एलजेपी को भी भूमिहार वोटरों का अच्छा सपोर्ट मिलता रहा है। यही वजह है कि नीतीश ने अहम रणनीति के तहत अपने सिपहसालार ललन सिंह को पार्टी की कमान सौंपी है।

बीजेपी को डैमेज!

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आंकड़ें देखें तो बिहार में बीजेपी को ब्राह्मणों के बाद भूमिहार वोटरों का समर्थन अच्छी तादाद में मिला है। हालांकि, 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में जरूर भूमिहार वोटर थोड़ा कंफ्यूज नजर आए। उनके वोट बंटने का असर एनडीए के प्रदर्शन में भी नजर आया। सियासी जानकारों के मुताबिक, इसकी मुख्य वजह यही मानी जा रही भूमिहार वोटरों ने जिस तरह से बीजेपी को खुलकर सपोर्ट किया, उसके मुताबिक उन्हें पार्टी नेतृत्व और सरकार में हिस्सेदारी नहीं मिली। जिसके चलते 2020 चुनाव में ऐसा माना जाता है कि भूमिहार वोटर अलग-अलग दलों को अपना मत देने को मजबूर हुए। अब नीतीश कुमार ने इस वोटबैंक को अपनी ओर मिलाने के लिए अहम दांव चल दिया। इससे कहीं न कहीं ‘दोस्त’ बीजेपी को कुछ डैमेज जरूर हो सकता है।

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एलजेपी को नुकसान

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‘दोस्त’ बीजेपी को ही नहीं नीतीश के खिलाफ विरोधी तेवर अख्तियार करने वाले चिराग पासवान को भी नुकसान हो सकता है। बिहार चुनाव से ही एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। अब बिहार के मुख्यमंत्री ने ललन सिंह के जरिए एलजेपी को भी नुकसान पहुंचाने की रणनीति चल दी है। ऐसा इसलिए क्योंकि एलजेपी को बिहार में पासवान के साथ-साथ भूमिहार वोटरों का भी अच्छा सपोर्ट मिलता रहा है। 2005 में रामविलास पासवान की एलजेपी ने कमाल करते हुए 29 सीटें अपने नाम की थी। उस चुनाव में बड़ी संख्या में भूमिहार कैंडिडेट एलजेपी के टिकट से चुनकर आए थे। अभी भी बिहार के भूमिहार वोटरों का अच्छा सपोर्ट एलजेपी को मिलता रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी में सूरजभान सिंह समेत कई दिग्गज नेता हैं। हालांकि, अब नीतीश ने ललन सिंह को आगे करके इस वोट बैंक सेंधमारी का दावा ठोक दिया है।

चिराग से चुन-चुनकर लिया बदला

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चिराग पासवान की वजह से नीतीश कुमार को विधानसभा में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। ललन सिंह ने उसका चुन-चुन कर बदला लिया। पहले एलजेपी के इकलौते विधायक को पार्टी में शामिल कराया। मतलब विधानसभा में ‘खाता’ बंद कराया। इसके बाद ‘मिशन दिल्ली’ की शुरुआत की। चिराग के चाचा और पार्टी समेत पांच सांसदों को तोड़ दिया। 18 फरवरी को एलजेपी के 18 जिलाध्यक्ष और 5 प्रदेश महासचिवों सहित 208 नेताओं को जेडीयू में शामिल कराया।

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लालू यादव को जेल भेजने में ललन सिंह का रहा अहम रोल

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जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह को लालू यादव का धुर विरोधी माना जाता है। कहा जाता है कि लालू यादव को जेल पहुंचाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। चारा घोटाले से जुड़े मामले की जल्दी सुनवाई के लिए ललन सिंह सुप्रीम कोर्ट तक चले गए थे। कांग्रेस और आरजेडी से नेताओं को तोड़ने में भी ललन सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी। कुल मिलाकर लालू प्रसाद से संघर्ष के साथ ही ललन सिंह सोशल इंजीनियरिंग के लिहाज से भी फिट हैं।

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