रामचरित मानस विवाद पर स्‍वामी प्रसाद मौर्य के तेवर हुए तीखे… कहीं फिर से बसपा जॉइन करने की तैयारी तो नहीं

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रामचरित मानस विवाद पर स्‍वामी प्रसाद मौर्य के तेवर हुए तीखे… कहीं फिर से बसपा जॉइन करने की तैयारी तो नहीं

रामचरित मानस विवाद पर स्‍वामी प्रसाद मौर्य के तेवर हुए तीखे… कहीं फिर से बसपा जॉइन करने की तैयारी तो नहीं


लखनऊ: रामचरित मानस (Ramcharitmanas Controversy) पर समाजवादी पार्टी के नेता स्‍वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) के बयान से जब विवाद खड़ा हुआ तो लगा कि उनसे चूक हो गई। वह बैकफुट पर आकर इस पर सफाई देंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उनकी बेटी और बीजेपी सांसद संघमित्रा मौर्य ने जरूर कहा, मेरे पिता ने रामचरित मानस की महज एक ऐसी चौपाई पर सवाल उठाया जो श्रीराम के चरित्र से मेल नहीं खाती। इस पर बहस नहीं विश्‍लेषण होना चाहिए। लेकिन स्‍वामी प्रसाद मौर्य अपने रुख में बदलाव करते नहीं दिख रहे, बल्कि इसे ब्राह्मणवाद का विरोध बता रहे हैं। मौर्य का यह अंदाज उनकी पार्टी के लिए मुसीबतें बढ़ा रहा है। सपा अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ऐसे धर्मसंकट में हैं न तो वह खुलकर उनके पक्ष में बोल पा रहे हैं न उनका प्रत्‍यक्ष विरोध ही कर पा रहे हैं। ऐसे में राजनीति के गलियारों में चर्चा गर्म है कि कहीं ब्राह्मणवादी विरोध का परचम लहराकर स्‍वामी प्रसाद मौर्य फिर से बहुजन समाज पार्टी में तो शामिल नहीं होने जा रहे।

स्‍वामी प्रसाद मौर्य के बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी की ओर से तो उन पर हमले होना स्‍वाभाविक था खुद उनकी पार्टी में भी असंतोष के स्‍वर उभरे। समाजवादी पार्टी के किसी भी बडे़ नेता ने स्‍वामी प्रसाद मौर्य के बयान का समर्थन नहीं किया। सपा के वरिष्‍ठ नेता रविदास मेहरोत्रा ने इसे मौर्य का निजी बयान बताते हुए यहां तक कह दिया कि ‘अज्ञानवश’ मौर्य ने चौपाई की गलत व्‍याख्‍या कर दी। शिवपाल यादव ने अपना पल्‍ला झाड़ लिया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव तो कुछ बोले ही नहीं। हालांकि, अख‍िलेश की चुप्‍पी को मौर्य अपने पक्ष में बताते हुए कह रहे हैं, मौन स्‍वीकृति का ही संकेत है।

अखिलेश के साथ समस्‍या यह है कि उन्‍हें साल 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपना मुस्लिम यादव समीकरण साधना है। अगर वह स्‍वामी प्रसाद मौर्य की आलोचना करते हैं मुस्लिम वोट बैंक बिदक सकता है। लेकिन अगर खुलकर समर्थन करते हैं तो भी मुश्किल बढे़गी क्‍योंकि राम और कृष्‍ण जनआस्‍था के व्‍यापक प्रतीक हैं।

स्‍वामी प्रसाद मौर्य के बयान की साधू-संतों ने केवल आलोचना की बल्कि उनके लिए कडे़ शब्‍दों का इस्‍तेमाल तक किया। इसी का जवाब देते हुए शुक्रवार को स्‍वामी प्रसाद मौर्य ने सोशल मीडिया पर ल‍िखा, ‘धर्म के नाम पर आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों एवं महिलाओं पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को प्रतिबंधित किए जाने की मांग पर कुछ धर्म के ठेकेदारों ने मेरी जीभ काटने एवं सिर काटने वालों को इनाम घोषित किया है, अगर यही बात कोई और कहता तो यही ठेकेदार उसे आतंकवादी कहते, किंतु अब इन संतों, महंतों, धर्माचार्यों एवं जाति विशेष लोगों को क्या कहा जाए आतंकवादी, महाशैतान या जल्लाद।’

स्‍वामी प्रसाद मौर्य जो लाइन पकडे़ हुए हैं वह उन दिनों की याद दिलाती है जब उन्‍होंने साल 2014 में बसपा में रहते हुए हिंदू देवी-देवताओं पर इसी तरह की टिप्‍पणी की थी। बाद में जब वह बसपा छोड़कर भाजपा में आए तो उनके ये बयान फिर से याद किए गए। हालांकि तब मौर्य ने बसपा प्रमुख मायावती को दलित की नहीं ‘दौलत की देवी’ बताया था। भाजपा सरकार में मंत्री बने रहने के बाद जब उन्‍हें लगा कि उनको हल्‍का करके आंका जा रहा है तो वह समाजवादी पार्टी में आ गए। इसके बाद उन्‍होंने खुद को नेवला और भाजपा-आरएसएस को नाग की उपमा देते हुए कहा था कि स्‍वामी रूपी नेवला उत्‍तर प्रदेश से भाजपा का सफाया करके रहेगा।

लेकिन फिलहाल, स्‍वामी प्रसाद मौर्य के तेवर देखते हुए यही लग रहा है कि वह फिर से बसपा का रुख कर सकते हैं। हालांकि, रामचरित मानस के ऊपर दिए गए विवादित बयान पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन फिर भी माना जा रहा है कि अगर स्‍वामी प्रसाद मौर्य बसपा जॉइन करने की मंशा जताएं तो मायावती की ओर से कोई रुकावट नहीं आएगी। उसके पीछे भी वजह यह है बसपा में इस समय बडे़ नेता नहीं बचे हैं। मायावती के लिए 2024 की लड़ाई प्रतिष्‍ठा बचाने की जंग साबित होगी। ऐसे में लग रहा है कि जो बडे़ नेता बसपा छोड़कर दूसरे दलों चले गए और अब वापस आना चाहते हैं उन्‍हें बसपा में जगह मिल सकती है।

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