राजस्थान में सड़क हादसे रोकने के लिए इस अधिकारी ने तैयार की खास रणनीति, अपनाया अमरीकी मॉडल | Now investigation of accident in Rajasthan on lines of America | Patrika News

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राजस्थान में सड़क हादसे रोकने के लिए इस अधिकारी ने तैयार की खास रणनीति, अपनाया अमरीकी मॉडल | Now investigation of accident in Rajasthan on lines of America | Patrika News

जी हां, अजमेर आरटीओ डॉ. वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने यह अनूठा प्रयास संभवत: देश में पहली बार शुरू किया है। उन्होंने बताया कि सड़क दुर्घटनाओं में परिवार तबाह होते देखे हैं। ऐसे में उनके मन में ये ख्याल आया कि इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कुछ विशेष रणनीति तैयार कर एक्सीडेंट का ट्रेंड जाना जाए। इसके बाद उन्होंने अमेरिका से रोड एक्सीडेंट इन्वेस्टीगेटर कॉर्स किया और देखा कि वहां पर हादसे का इन्वेस्टीगेशन वैज्ञानिक तरीके से होता है। जबकि हमारे यहां इस संबंध में केवल योजना ही बनी है। लेकिन, उस पर अभी कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है। यही कारण है कि बार-बार एक ही हाईवे पर सड़क हादसे हो जाते हैं।

ये काम किया जाएगा अजमेर जिले में
-जिले से गुजरने वाले हाईवे को 10 भागों में बांटा जाएगा।
-बेस लाइन सर्वे में लोगों की ट्रैफिक हैबिट को जाना जाएगा।
-एक्सीडेंट ट्रेंड में यह समझा जाएगा कि एक्सीडेंट के क्या काराण रहे।
-पब्लिक ओपिनियन सर्वे में यह जानेंगे कि आखिर कैसे होते हैं एक्सीडेंट।
-ट्रैफिक वॉल्यूम सर्वे यानी ट्रैफिक का दबाव कैसा है।
-ओपरेशनल रोड सेफ्टी ऑडिट करेंगे।
-स्टेक हॉल्डर्स की बैठक करेंगे ब्लॉक एवं जिला लेवल पर।
-एजुकेशन, एन्फॉर्समेंट, इंजीनियरिंग, हेल्थ ड्राइव चलाया जाएगा।
-सबसे आखिर में एंड लाइन सर्वे किया जाएगा।

यूं होती है अमेरिका एवं यूरोप में जांच
आरटीओ वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि अमेरिका एवं यूरोपिय देशों में पुलिस की दो विंग होती है। दुर्घटना पर सिविल पुलिस जाती है और घायलों को अस्पताल पहुंचाने से लेकर ट्रैफिक फिर सुचारू कराने का काम करती है। यह पुलिस तत्काल मौके पर पहुंचती है और उसी समय दूसरी पुलिस यानी इंजीनियरिंग विंग को सूचना दे दी जाती है। यह विंग सूचना मिलते ही आधे घंटे के भीतर दुर्घटना स्थल पर पहुंचती है और वहां से सभी प्रकार के साक्ष्य एकत्रित करती है। वहां के हालात को देखते हुए वैज्ञानिक आधार पर यह पता लगाया जाता है कि दुर्घटना का कारण आखिर क्या रहा होगा। साथ ही स्पीड भी वैज्ञानिक आधार पर कैलकुलेट करते हैं। उन सभी तथ्यों के आधार पर घटनास्थल और उसके आसपास फिर दुर्घटना नहीं हो तो उसके लिए किए जाने वाले सभी प्रयास शुरू किए जाते हैं।

ब्लैक बॉक्स यानी सीडीआर वाहनों में होना जरूरी
राठौड़ बताते है कि हमारे यहां वाहन दुर्घटना का वास्तविक कारण इसलिए पता नहीं लगता है, क्योंकि वाहनों में ब्लैक बॉक्स यानी सीडीआर नहीं होता है। इसे क्रेश डेटा रिट्राइवल कहा जाता है, जो गाड़ी की नीचे की ओर लगा होता है। यह ठीक उसी तरह होता है जैसे विमानों में ब्लैक बॉक्स होता है। इसमें दुर्घटना के कुछ देर बाद तक की सभी जानकारियां रिकॉर्ड हो जाती है। ऐेसे में वैज्ञानिक अनुसंधान करने में आसानी होती है।

हमारे देश में यह काम है परिवहन विभाग का
बता दें कि परिवहन विभाग को सड़क सुरक्षा का भी जिम्मा दिया गया है। अब केवल लाइसेंस, वाहनों की फिटनेस, रजिस्ट्रेशन आदि काम ही परिवहन विभाग के नहीं है। बल्कि सड़क सुरक्षा भी उन्हीं का मुद्दा हो चुका है। राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां परिवहन विभाग का नाम परिवहन एवं सड़क सुरक्षा विभाग किया गया है। अब उनके कार्य में दुर्घटनाओं का वैज्ञानिक पद्धति से अनुसंधान, रोड सेफ्टी आॅडिट, इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम, शहरी एवं ग्रामीण सार्वजनिक परिवहन सेवा का विस्तार, रिसर्च आदि शामिल हो चुका है। लेकिन, दुर्घटनाओं की जांच के संबंध में उन्हें कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं है। हमारे यहां पुलिस ही एक्सीडेंट की जांच करती है। कई बार तो हादसे का कारण तेज गति लिख दिया जाता है। साथ ही हमारे यहां अक्सर दुर्घटना में बड़े वाहन की गलती बता दी जाती है।

सीएम ने सड़क हादसों पर जताई थी चिंता
बता दें कि तीन दिन पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बैठक में कहा था कि प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु में 82 प्रतिशत मृत्यु तेज गति से वाहन चलाने पर होती है। साथ ही नियमों का उल्लंघन करने से हर वर्ष हजारों नागरिक दुर्घटनाओं में मौत का शिकार हो जाते हैं। कई परिवार पूरी तरह बिखर जाते हैं। उन्होंने कहा प्रयास ऐसे होने चाहिए कि राजस्थान में यह आंकड़ा न्यूनतम स्तर पर आए। ऐसे में यदि यह प्रयोग सफल होता है तो दुर्घटनाओं का आंकड़ा कम होगा।



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