यूपी-उत्तराखंड का संपत्ति विवाद खत्म! क्या हैं सियासी नफा-नुकसान? पूरी बात समझ‍िए

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यूपी-उत्तराखंड का संपत्ति विवाद खत्म! क्या हैं सियासी नफा-नुकसान? पूरी बात समझ‍िए

जब भी उत्तराखंड का चुनाव नजदीक होता है, सरकार की तरफ से यह दावा जरूर किया जाता है कि यूपी के साथ उसकी परिसंपत्तियों के बंटवारे का विवाद सुलझा लिया गया है। वर्ष 2000 में यूपी से अलग होने के बाद दोनों राज्यों के बीच संपत्तियों का बंटवारा होना था। वैसे यह बंटवारा उतना मुश्किल नहीं था, जितना बन गया। बंटवारा आसान इसलिए था कि यूपी पुनर्गठन अधिनियम में परिसंपत्तियों और लेन-देन के बंटवारे का स्वरूप तय है। बंटवारे के लिए ‘जहां है और जैसा है’ का सिद्धांत लागू है। यह ठीक से लागू इसलिए नहीं हो सका कि इसके लिए जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत थी, वह अभी तक नहीं देखी गई। पिछले दिनों लखनऊ में उत्तराखंड और यूपी के मुख्यमंत्रियों की मुलाकात के बाद 21 साल पुराने संपत्तियों के विवाद को सुलझाने का एक बार फिर दावा किया गया है। बीजेपी उत्तराखंड में इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत कर रही है लेकिन सरकार के दावे के साथ जितने किंतु-परंतु लगे हुए हैं, उनके मद्देनजर यह यकीन करना मुश्किल है कि विवाद सचमुच सुलझा लिया गया है।

उत्‍तराखंड को विरासत में मिला था कर्ज
बहरहाल, एक बड़ा सवाल यह है कि आखिर हर चुनाव से पहले ऐसा दावा क्यों किया जाता है। इसे समझने के लिए पहले इस विवाद से जुड़ी पृष्ठभूमि पर एक नजर डालते हैं। उत्तराखंड जब यूपी से अलग होकर राज्य की शक्ल में आया था तो इस नवजात राज्य को करीब ढाई हजार करोड़ रुपये का कर्ज यूपी से विरासत में मिला था। अब जबकि यह राज्य 21 साल का हो गया है तो यह कर्ज बढ़कर अब 75 हजार करोड़ से अधिक का हो गया है। उत्तराखंड की डेढ़ लाख करोड़ से भी अधिक की संपत्ति आज भी यूपी के हिस्से में बताई जाती है। हरिद्वार कुंभ का मेला जहां लगता है वह लगभग सात सौ हेक्टेयर जमीन यूपी सिंचाई विभाग के स्वामित्व में है।

बांध उत्तराखंड में, पानी यूपी का
उत्तराखंड के सिंचाई विभाग की करीब 13,000 हेक्टेयर जमीन और 4000 इमारतें अभी तक यूपी के हिस्से में हैं। परिवहन विभाग की 5000 करोड़ रुपये की संपत्ति भी उत्तराखंड के हाथ नहीं आ पा रही है। टिहरी डैम पर भी मालिकाना हक यूपी का ही बना हुआ है। कुल मिलाकर 11 विभागों की जमीन, भवन और संपत्ति अब भी यूपी के अधिकार में है। एक ऐसा विरोधाभास देखने को मिलता है, जिसमें जो बांध उत्तराखंड में हैं उसके पानी पर यूपी का स्वामित्व है।

कई सवालों के नहीं मिले जवाब
इसी 18 नवंबर को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले और उसके बाद दोनों मुख्यमंत्रियों ने दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों के बंटवारे के विवाद सुलझा लिए जाने के दावे किए। राज्य में पार्टी और सरकार दोनों ही इस उपलब्धि को ऐतिहासिक बता रहे हैं। दावा यह है कि जो विवाद 21 सालों से नहीं सुलझाया जा सका, उसे लखनऊ जाकर एक दिन में सुलझा लिया गया। लेकिन कई सवाल अनुत्तरित हैं। जैसे सरकार की ओर से दावा किया गया है कि यूपी ने उत्तराखंड को उधमसिंह नगर स्थित धौरा, बैगुल, नानक सागर जलाशय में पर्यटन एवं वाटर स्पोर्ट्स की अनुमति दे दी है। इसी बिंदु पर यह सवाल खड़ा होता है कि अगर परिसंपत्ति विवाद हल हो गया तो फिर उत्तराखंड को अपने ही जलाशयों में पर्यटन एवं वाटर स्पोर्ट्स की अनुमति मांगने की जरूरत क्यों आन पड़ी? ऊपरी गंग नहर में वाटर स्पोर्ट्स की अनुमति यूपी से भी प्राप्त कर लिए जाने का दावा क्यों करना पड़ रहा है?

सिंचाई विभाग की 5700 हेक्टेयर भूमि और 1700 आवासों के लिए संयुक्त सर्वे होने की बात तय हुई। अब जब सर्वे होने की बात है तो यह कैसे कहा जा सकता है कि मसला हल हो गया। यह कैसे माना जाए कि सर्वे के बाद यह संपत्ति उत्तराखंड को ही मिलेगी। हालांकि यह संपत्ति उत्तराखंड के ही हिस्से में आनी चाहिए। एक दावा हरिद्वार के होटल अलकनंदा विवाद हल करने को लेकर भी है। वैसे यह दावा पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी अपने कार्यकाल में किया था। सचाई यह है कि होटल पर दावा छोड़ने के बदले उत्तराखंड सरकार ने यूपी को होटल से लगी जमीन दे दी है, जिस पर यूपी अपना होटल बना रहा है। बद्रीनाथ में भी त्रिवेंद्र सरकार ने यूपी को यूपी गेस्ट हाउस बनाने के लिए जमीन दी है।

क्या हैं सियासी नफा-नुकसान
उत्तराखंड में महीने भर में दो मुख्यमंत्री बदलने की वजह से बीजेपी दबाव में है। कांग्रेस इसे एक बड़ा मुद्दा बनाए हुए है। जुलाई महीने में मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी चुनाव मैदान में जाने से पहले अपने खाते में बड़ी उपलब्धि दिखाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि 21 साल पुराने विवाद का समाधान कराने का श्रेय अगर उनके हिस्से आ जाता है तो यह न केवल वोट बटोरने में सहायक होगा बल्कि उनकी प्रशासनिक सूझबूझ का भी सिक्का जमा देगा। बीजेपी और सरकार दोनों ही इसे उपलब्धि बताते हुए इसके व्यापक प्रचार में जुट गए हैं। उधर विपक्ष यह साबित करना चाहता है कि बीजेपी के पास जनता के बीच ले जाने के लिए कोई मुद्दा नहीं है तो वह एक ऐसा मुद्दा गढ़ रही है, जो हकीकत से काफी दूर है। विपक्ष यूपी-उत्तराखंड के बीच विवाद सुलझाने के लिए हुए समझौते पर श्वेत पत्र लाने की मांग कर रहा है। उसका आरोप है कि उत्तराखंड ने यूपी के आगे समर्पण कर दिया। विपक्षी नेताओं को लगता है कि उत्तराखंड राज्य का गठन स्थानीय लोगों की भावनाओं से जुड़ा है। यूपी के आगे समर्पण की बात उन्हें स्वीकार नहीं होगी। उसका फायदा वे लोग उठा सकते हैं।



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