मौरिस ग्वायर: जिन्होंने बनाया था दिल्ली यूनिवर्सिटी को, कैंपस में जगह-जगह दिखती है इनकी मौजूदगी

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मौरिस ग्वायर: जिन्होंने बनाया था दिल्ली यूनिवर्सिटी को, कैंपस में जगह-जगह दिखती है इनकी मौजूदगी

मौरिस ग्वायर: जिन्होंने बनाया था दिल्ली यूनिवर्सिटी को, कैंपस में जगह-जगह दिखती है इनकी मौजूदगी

नई दिल्लीः दिल्ली यूनिवर्सिटी को शुरू हुए एक सदी पूरा होने पर चल रहे समारोह शुक्रवार को खत्म हो गए। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। इस मौके पर दिल्ली यूनिवर्सिटी अपने जिन पुरखों को याद कर रही है, उनमें सर मौरिस ग्वायर भी हैं। वह 1938-1952 तक डीय़ू के वाइस चासंलर रहे। सर मौरिस ग्वायर के नाम पर ग्वायर हॉल 1948 में बनाया गया था। उन्होंने इसे धूप में खड़े होकर बनवाया था, ताकि दिल्ली के बाहर से आने वाले स्टूडेंट यहां आराम से रह सकें। यूं ही डीयू बिरादरी उन्हें अपना आदरणीय अभिभावक नहीं मनाती। ग्वायर हॉल में शुरू से ही पोस्ट ग्रैजुएट या रिसर्च करने वाले स्टूडेंट रहते हैं। सर मौरिस ग्वायर के नाम पर ही मौरिस नगर का नाम रखा गया। इस बीच, ग्वायर हॉल में कभी रहे स्टूडेंट इसे छोड़ने के बाद भी इससे भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं। उन्हें इसकी दीवारें, दरख्त, हरियाली, बिल्लियां ख्वाबों में भी आती हैं। यह उन्हें एक-दूसरे से जोड़ता है। यह इधर आकर फिर से अपनी स्टूडेंट लाइफ जीवन में लौट जाते हैं। फिर उम्र की सीमाएं मिट जाती हैं। इन्हें ग्वायर हॉल में बार-बार आना पसंद है। कह सकते हैं कि ये यहां आने का बहाना तलाशते हैं।ब्‍लैक ड्रेस पर पाबंदी, अटेंडेंस अनिवार्य…पीएम मोदी के डीयू पहुंचने से पहले गाइडलाइन जारी

ग्वायर हॉल से सुजान पार्क तक


देश की आजादी के फौरन बाद 1948 में स्थापित ग्वायर हॉल का सेंट स्टीफंस कॉलेज, कनॉट प्लेस के रीगल ब्लॉक, मिरांडा हाउस और सुजान सिंह पार्क से भी करीबी नाता है। इन सभी आइकॉनिक इमारतों को वाल्टर स्काइयज जॉर्ज ने डिजाइन किया था। इन सभी के डिजाइन में आपको बहुत कुछ एक जैसा मिलेगा। उदाहरण के रूप में जॉर्ज ईंटों पर सीमेंट का लेप करवाने से बचे। कहना न होगा कि इन सभी इमारतों पर दिल्ली फख्र कर सकती है। ग्वायर हॉल तो सारी डीयू को बांधता है। डीयू में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की कई पीढ़ियां इधर के दिव्य मीठे समोसों का आनंद ले रही हैं। यह समोसे पंडित जयकिशन पांडे उर्फ पंडित जी की कैंटीन में मिलते हैं। मीठे समोसे में सूखे मेवे और मावा भरा होता है। ग्वायर हॉल में रहे हंसराज कॉलेज के प्रोफेसर प्रभांशु ओझा कहते हैं कि हम ग्वायर हॉल वाले जब कहीं मिलते हैं तो मीठे समोसों का भोग जरूर लगाते हैं। ग्वायर हॉल कैंटीन के मीठे समोसे खाने के लिए डीयू के छात्र जीवन के दौरान अरुण जेटली, अजय माकन, विनोद दुआ, रजत शर्मा से लेकर तमाम प्रोफेसर भी आते रहे हैं।

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मौरिस ग्वायर, मिरांडा हाउस और बिल्लियां

सर मौरिस ग्वायर की सरपरस्ती में ही 1948 में मिरांडा हाउस कॉलेज बना था। देश को आजादी मिलने के बाद मिरांडा हाउस और हंसराज कॉलेज दिल्ली यूनिवर्सिटी का हिस्सा बने थे। सर मौरिस ग्वायर ने 1952 में एक जगह लिखा था कि उन्होंने लड़कियों के इस कॉलेज ( मिरांडा हाउस) का नाम मिरांडा क्यों रखा? ग्वायर साहब ने इसकी तीन वजहें गिनवाई थीं। पहली, उनकी सबसे पसंदीदा हिरोइन का नाम केरमेन मिरांडा था। उनकी बेटी का नाम भी मिरांडा था। शेक्सपियर के एक नाटक द टेम्पेस्ट की एक किरदार का नाम भी मिरांडा था। कहते हैं कि उन्हें बिल्लियां बहुत प्रिय थीं। जिस ग्वायर हॉल को ग्वायर साहब ने बनवाया था, वहां पर हमेशा खूब बिल्लियां रहीं। यहां रहने वालों का बिल्लियों से एक आत्मीय संबंध बनता रहा। इन्हें यहां से निकालने की कोशिशें नाकाम ही हुईं। अब एक तरह से मान लिया गया है कि ग्वायर हॉल में तो बिल्लियां रहेंगी ही। ग्वायर साहब बिल्लियों को पालते भी थे।

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