मंच से अल्लाहू अकबर के नारे… किसान नेता राकेश टिकैत यह किस रास्ते पर जा रहे हैं?

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मंच से अल्लाहू अकबर के नारे… किसान नेता राकेश टिकैत यह किस रास्ते पर जा रहे हैं?

हाइलाइट्स

  • मुजफ्फरनगर में रविवार को हुई किसान महापंचायत के वीडियोज वायरल
  • मंच से लगा ‘अल्‍लाहू अकबर’ का नारा, जवाब में गूंज उठा ‘हर हर महादेव’
  • राकेश टिकैत बोले- जब नरेश टिकैत थे, तब भी यही नारे लगा करते थे
  • सोशल मीडिया पर उठ रहीं आवाजें, आंदोलन में धार्मिक नारों का क्‍या काम

नई दिल्ली
मुजफ्फरनगर के एक सरकारी इंटर कॉलेज का मैदान रविवार को ‘अल्‍लाहू अकबर’ और ‘हर हर महादेव’ के उद्घोष से गूंज उठा। मौका था एक महापंचायत का। अगले साल उत्‍तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सत्‍ताधारी बीजेपी को संदेश देने के लिए महापंचायत बुलाई गई थी। करीब 8 साल पहले सांप्रदायिक दंगों की आग में जले मुजफ्फरनगर में किसानों के मंच से धार्मिक एकजुटता की बानगी तो पेश हुई, मगर राजनीतिक इशारा भी साफ था। मंच से किसानों के मुद्दे पर बात कम और राजनीतिक आरोप ही ज्‍यादा लगे।

पश्चिमी यूपी से ही आने वाले जाट नेता राकेश सिंह टिकैत मंच से कहा कि ऐसे नारे पहले भी यहां लगते रहे हैं। उन्‍होंने अपने पिता महेंद्र सिंह टिकैत के समय का जिक्र करते हुए कहा कि उनके वक्‍त में ऐसे ही नारे लगा करते थे।

अल्लाहू अकबर और हर-हर महादेव के नारे पहले भी लगते थे और आगे भी लगेंगे। ये लोग बांटने का काम कर रहे हैं। हमें इन्हें रोकना है। हम यूपी की जमीन को दंगा करवाने वालों का नहीं होने देंगे।

राकेश टिकैत

मंच किसानों का, बातें राजनीति की
किसान महापंचायत बुलाई तो नए कृषि कानूनों के विरोध में गई थी, मगर जल्‍द ही इसने राजनीतिक मोड़ ले लिया। केंद्र और राज्‍य में सत्‍ताधारी बीजेपी को निशाना बनाकर खूब हमले किए गए। टिकैत ने मंच से कहा, ‘देश में ऐसी सरकारें हैं जो दंगे करवाती हैं। वो बांटेंगे, हम एक होंगे। टिकैत ने कहा कि ‘केंद्र सरकार ने संदेश दिया है कि भारत बिक रहा है- चाहे वह देश के एयरपोर्ट्स हों, पोर्ट्स या हो फिर जमीन। देश में 14 करोड़ बेरोजगार लोग हैं और वे किसानों के आंदोलन को आगे ले जा रहे हैं।’

टिकैत मंच से बीजेपी को ललकार रहे थे। सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेते हुए टिकैत ने कहा कि मोदी को यूपी नहीं , गुजरात से चुनाव लड़ना चाहिए। वहां वे हार जाएंगे क्‍योंकि बीजेपी ने गुजरात को बर्बाद कर दिया है। वह एक ‘पुलिस स्‍टेट’ बन गया है।

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MSP, सब्सिडी… कहां खो गए किसानों के वह मुद्दे?
पिछले साल नवंबर में दिल्‍ली की सीमाओं पर किसानों ने आंदोलन शुरू किया। विरोध तीन नए कृषि कानूनों को लेकर था जो मोदी सरकार ने पारित किए थे। दिल्‍ली के अलग-अलग बॉर्डर्स पर जमे किसान कई पॉइंट्स पर आपत्तियां जता रहे थे। किसानों की मांग थी कि तीनों कानूनों को वापस लिया जाए। यह भी मांग की गई कि न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) को लेकर अलग बिल लाया जाए। MSP और सरकारी खरीद को कानूनी अधिकार बनाने की मांग भी उठी।

फसलों की खरीद की वर्तमान व्‍यवस्‍था को भी जारी रहने की बात की गई। स्‍वामीनाथन पैनल की रिपोर्ट लागू करने और डीज पर सब्सिडी समेत कई और रियायतों की मांग हो रही थी। हालांकि रविवार को हुई किसान महापंचायत में तीनों कानून वापस लेने की मांग के अलावा बाकी मुद्दे कहीं खो से गए।

यूपी चुनाव पर हैं टिकैत की नजरें?
यूं तो टिकैत भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के नेता हैं, मगर राजनीति में उनकी दिलचस्‍पी खूब है। पिछले कुछ दिनों से उत्‍तर प्रदेश में खासे सक्रिय हैं जबकि आंदोलन के केंद्र में पंजाब और हरियाणा के किसान रहे हैं। टिकैत ने बार-बार यूपी चुनाव को लेकर बयान दिए हैं। यह भी ऐलान कर दिया कि यूपी में ऐसी कई महापंचायतें होंगी जिनके जरिए बीजेपी के खिलाफ आंदोलन होगा। टिकैत ने मंच से मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और यूपी सीएम योगी आदित्‍यनाथ को बाहरी करार दिया। फिर महापंचायत में बीजेपी के खिलाफ भी नारेबाजी हुई।

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हिंदू-मुस्लिम एकता के बहाने…
पश्चिमी यूपी में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच इतनी दूरियां पहले नहीं थीं। मगर साल 2013 में सब बदल गया। मुजफ्फरनगर के भीतर हिंदुओं (मुख्‍यत: जाट) और मुसलमानों में खूनी संघर्ष हुआ। दोनों समुदायों के बीच नफरत का फायदा बीजेपी ने उठाया। पहले 2017 के लोकसभा चुनाव और फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जाट-मुस्लिम एकता की काट निकाल ली। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वही कहानी दोहराई गई। मगर अब किसान आंदोलन के बहाने फिर से इन दो समुदायों को एकजुट कर बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश हो रही है।

बीजेपी ने कहा, राजनीति है इनका एजेंडा
बीजेपी के किसान मोर्चा प्रमुख एवं सांसद राजकुमार चाहर ने एक बयान में दावा किया कि ‘महापंचायत’ के पीछे का एजेंडा राजनीति से जुड़ा है, न कि किसानों की चिंताओं से। उन्होंने कहा कि यह किसान महापंचायत नहीं, बल्कि राजनीतिक एवं चुनावी बैठक थी तथा विपक्ष और संबंधित किसान संगठन राजनीति करने के लिए किसानों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

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पिता के नक्‍शेकदम पर राकेश टिकैत मगर…
राकेश टिकैत अबतक इस पूरे आंदोलन के अगुवा बनकर उभरे हैं। वे पिता महेंद्र सिंह टिकैत की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, मगर रास्‍ता थोड़ा अलग है। सीनियर टिकैत धर्मनिरपेक्षता के जबर्दस्‍त हिमायती थी। 1987 में मेरठ के भीतर सांप्रदायिक दंगे हुए थे। तब भयानक मंजर के गवाह एक शख्‍स ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि तीन महीने तक दंगे चलते रहे मगर टिकैत ने हिंसा की आगे मेरठ की सीमा से आगे नहीं जाने दी। गांव-गांव जाकर पंचायत करते थे और हिंदू-मुसलमान को एक रखने की बात करते।

एक बार मुफ्फरनगर के एक गांव की मुस्लिम युवती का अपहरण हो गया। जब कई दिन बाद भी उसका पता नहीं चला तो महेंद्र सिंह टिकैत ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। खुद मुख्‍यमंत्री को टिकैत से बात करके समझाना पड़ा। वे अपने आंदोलन में हिंदुओं और मुसलमानों को साथ लेकर चला करते थे। राकेश टिकैत मंच से अपने पिता की तरह बात करते हैं, मगर गाहे-बगाहे उनका राजनीतिक झुकाव दिख ही जाता है।

मुजफ्फरनगर में राकेश टिकैत।



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