बिहार के इस शहर में कुत्तों का आतंक, 100 दिन में 5000 को काटा; क्यों खुंखार हो रहे जानवर, जानें
बिहार के मुजफ्फरपुर में बीते एक जनवरी से 24 अप्रैल के बीच 100 दिनों में आवारा कुत्तों ने 5000 लोगों को काटा। रोज औसतन 50 लोग कुत्तों का शिकार हो रहे हैं। यह तो सिर्फ सदर अस्पताल का आंकड़ा है, ऐसे पीड़ित लोग भी हैं, जिनका इलाज प्राइवेट क्लिनिक या अस्पताल में हुआ है। आवारा कुत्तों का आतंक जब चरम पर पहुंच गया, तब निगम की नींद टूटी और डॉग कैचर हरकत में आया है।
बता दें कि दो साल पहले मिठनपुरा इलाके में कुत्तों के हमले में मासूम एंजल की मौत के बाद डॉग कैचिंग वाहन खरीदा गया। हालांकि इसका इस्तेमाल कुत्तों को पकड़ने के बदले अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान जब्त सामान ढोने में होता रहा। नतीजतन शहर की सड़कों पर आवारा कुत्तों की संख्या और आतंक का दायरा लगातार बढ़ता गया। मेन रोड व बाजार से लेकर रिहायशी इलाकों के गली-मोहल्लों तक आवारा कुत्तों का दिन-रात खतरा है।
निगम के पास कुत्ता पकड़ने को प्रशिक्षित कर्मी नहीं
निगम ने डॉग कैचर तो खरीद लिया, पर आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए प्रशिक्षित कर्मी का अभाव है। किसी तरह काम चलाया जा रहा है। ऐसे में अभियान की सफलता पर संशय है। आमगोला निवासी राजेंद्र माली, विमल शर्मा, अमन कुमार आदि ने निगम से लगातार कुत्तों को पकड़ने का अभियान चलाने की मांग की है।
क्यों खूंखार हुए कुत्ते?
जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ. कुमार कांता प्रसाद के मुताबिक बढ़ती गर्मी का असर भी कुत्तों को हिंसक बनाता है। भूखा होने पर भी कुत्ते खूंखार हो सकते हैं। मांसाहार कचरा खाने का असर भी पड़ता है। बताया कि पत्थर-डंडा मारने या तंग करने पर कुत्ते ज्यादा हिंसक हो जाते हैं। लोगों के लिए खतरा बने आवारा कुत्तों पर नियंत्रण की जिम्मेवारी नगर निगम की है।
महेश बाबू चौक के दोनों तरफ रात 10 बजे के बाद झुंड में कुत्ते खड़े रहते हैं। डर से लोग दूसरे रास्तों से आते-जाते हैं। आवारा कुत्तों पर नियंत्रण जरूरी है।
-रंजीत गुप्ता, जूरन छपरा
बच्चों को अकेले घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी है। बच्ची पर हमले के बाद कुत्तों को पकड़ने का क्या मतलब? यह काम पहले करना चाहिए था।
-बमबम झा, शिव मंदिर गली
सड़कों पर आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ गया है। सबसे अधिक इनसे बच्चों को खतरा है। फिर भी नियंत्रण का कोई प्रभावी उपाय नहीं हो रहा।
-विशेश्वर कुमार, आमगोला
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बिहार के मुजफ्फरपुर में बीते एक जनवरी से 24 अप्रैल के बीच 100 दिनों में आवारा कुत्तों ने 5000 लोगों को काटा। रोज औसतन 50 लोग कुत्तों का शिकार हो रहे हैं। यह तो सिर्फ सदर अस्पताल का आंकड़ा है, ऐसे पीड़ित लोग भी हैं, जिनका इलाज प्राइवेट क्लिनिक या अस्पताल में हुआ है। आवारा कुत्तों का आतंक जब चरम पर पहुंच गया, तब निगम की नींद टूटी और डॉग कैचर हरकत में आया है।
बता दें कि दो साल पहले मिठनपुरा इलाके में कुत्तों के हमले में मासूम एंजल की मौत के बाद डॉग कैचिंग वाहन खरीदा गया। हालांकि इसका इस्तेमाल कुत्तों को पकड़ने के बदले अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान जब्त सामान ढोने में होता रहा। नतीजतन शहर की सड़कों पर आवारा कुत्तों की संख्या और आतंक का दायरा लगातार बढ़ता गया। मेन रोड व बाजार से लेकर रिहायशी इलाकों के गली-मोहल्लों तक आवारा कुत्तों का दिन-रात खतरा है।
निगम के पास कुत्ता पकड़ने को प्रशिक्षित कर्मी नहीं
निगम ने डॉग कैचर तो खरीद लिया, पर आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए प्रशिक्षित कर्मी का अभाव है। किसी तरह काम चलाया जा रहा है। ऐसे में अभियान की सफलता पर संशय है। आमगोला निवासी राजेंद्र माली, विमल शर्मा, अमन कुमार आदि ने निगम से लगातार कुत्तों को पकड़ने का अभियान चलाने की मांग की है।
क्यों खूंखार हुए कुत्ते?
जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ. कुमार कांता प्रसाद के मुताबिक बढ़ती गर्मी का असर भी कुत्तों को हिंसक बनाता है। भूखा होने पर भी कुत्ते खूंखार हो सकते हैं। मांसाहार कचरा खाने का असर भी पड़ता है। बताया कि पत्थर-डंडा मारने या तंग करने पर कुत्ते ज्यादा हिंसक हो जाते हैं। लोगों के लिए खतरा बने आवारा कुत्तों पर नियंत्रण की जिम्मेवारी नगर निगम की है।
महेश बाबू चौक के दोनों तरफ रात 10 बजे के बाद झुंड में कुत्ते खड़े रहते हैं। डर से लोग दूसरे रास्तों से आते-जाते हैं। आवारा कुत्तों पर नियंत्रण जरूरी है।
-रंजीत गुप्ता, जूरन छपरा
बच्चों को अकेले घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी है। बच्ची पर हमले के बाद कुत्तों को पकड़ने का क्या मतलब? यह काम पहले करना चाहिए था।
-बमबम झा, शिव मंदिर गली
सड़कों पर आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ गया है। सबसे अधिक इनसे बच्चों को खतरा है। फिर भी नियंत्रण का कोई प्रभावी उपाय नहीं हो रहा।
-विशेश्वर कुमार, आमगोला