बायो मार्कर बताएगा आपके फेफड़े में है कितना दम | Bio marker test tell health condition of lungs | Patrika News

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बायो मार्कर बताएगा आपके फेफड़े में है कितना दम | Bio marker test tell health condition of lungs | Patrika News

सीरम प्रोटीन से पता चलता है फेफड़ों का हाल
एनआईओएच अहमदाबाद के वैज्ञानिकों ने इन हालात के मद्देनजर लबे अनुसंधान में पाया कि फेफड़ों की कोशिकाओं में मौजूद सीसी 16 नामक एक सीरम प्रोटीन फेफड़ों की सटीक स्थिति बता सकता है। इस आधार पर विशेष किट बनाया गया। इसमें कार्ड स्ट्रिप पर खून की एक बूंद रखकर ही सीसी 16 प्रोटीन सीरम से फेफड़ों का स्वास्थ्य जांचा जा सकता है।

सीरम सीसी-16 अगर 16 से कम तो समझो निकल गया फेफड़ों का दम
एनआईओएच में विकसित कार्ड स्ट्रिप पर खून की एक बूंद रखने से यह फेफड़ों में सीरम सीसी-16 का लेवल बता देता है। सामान्य शरीर में यह लेवल 16 नैनोग्राम प्रति मिलीग्राम होना चाहिए। यह मात्रा 9 और 12 नैनोग्राम/एमएल हो तो फिर इसे अदृश्य सिलिकोसिस या शुरुआती चरण मानकर इलाज शुरू किया जा सकता है। इससे टीबी का भी शुरुआत में ही पता चल सकता है। इस किट के बारे में दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से भी क्वेरी आनी शुरू हो चुकी है।

जल्द होगी बाजार में उपलब्ध
इस किट का उत्पादन और विपणन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। जल्द ही यह विशेष किट उपयोग के लिए उपलब्ध हो जाएगा। इसकी मदद से हर साल ही हजारों पत्थर मजदूरों की जान लेने वाली लाइलाज सिलिकोसिस ही नहीं, टीबी जैसी बीमारी पर भी प्रभावी अंकुश लग सकेगा, क्योंकि विशेष किट की मदद से ये बीमारियां शुरू में ही पकड़ में आ सकेगी।

दो कंपनियों को लाइसेंस
एनआईओएच की खोज के बाद आईसीएमआर ने दो कम्पनियों को उत्पादन का लाइसेंस दिया है। संभवतः अगले कुछ दिनों में उत्पाद की वेलिडेशन रिपोर्ट को ड्रग कंट्रोलर से मान्यता के साथ ही इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया जा सकेगा। इसके बाद यह बाजार में चिकित्सा प्रयोग के लिए उपलब्ध हो जाएगा।

सिलिकोसिस ले रही जान
देश में लगभग तीस लाख मजदूर खनन और पत्थर उद्योग में लगे हैं। इनमें धूलकणों के कारण फेफड़े खोखले कर देने वाली सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी की चपेट में आने की आशंका बनी रहती है। राजस्थान में ही जोधपुर, करौली, सिरोही, नागौर व भरतपुर जैसे जिले इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित हैं। प्रदेश में पिछले तीन साल में 15 हजार से ज्यादा मजदूरों की मौत हो चुकी है।

खून की एक बूंद बताएगी हाल एनआईओएच के निदेशक डॉ. कमलेश सरकार बताते हैं कि सिलिकोसिस का पता जब तक एक्स-रे से पता चलता है, तब तक पीड़ित श्रमिक के फेफड़े पूरी तरह खराब हो चुके होते हैं। ऐसे श्रमिक सांस नहीं ले पाते और कुछ अरसे बाद तड़प-तड़प कर इनकी मौत हो जाती है। दुनिया में कहीं भी इस बीमारी का इलाज नहीं है, लेकिन शुरुआत में पकड़ में आ जाए तो फेफड़े पूरी तरह खराब होने से रोके जा सकते हैं।



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